Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वालिन
शुद्ध हो कर सर्प से शाप दिया, 'इन फलों से तुम्हारे शरीर पर ताड़ के सात वृक्ष उगंगे तब साँप ने भी बालि से शाप दिया, 'इन सातों ताड़ के वृक्ष जो अपने बाण से तोड़ेगा, उसी के द्वारा तुम्हारी मृत्यु होगी राम के द्वारा इन वृक्षों का भेदन होने के कारण, उसीके हाथों वालिबध हुआ (आ. रा. ८ ) ।
वालिबध राम के कहने पर सुग्रीव ने वालि को द्वंद्वयुद्ध के लिए ललकारा (वा. रा. कि. १४ ) । पहले दिन हुए वालि एवं सुग्रीव के द्वंद्वयुद्ध के समय, ये दोनों भाई एक सरीखे ही दिखने के कारण, राम अपने मित्र सुग्रीव को कोई सहायता न कर सका । इस कारण सुग्रीव को पराजित हो कर ऋष्यमूक पर्वत पर लौटना पड़ा । दूसरे दिन राम ने 'अभिज्ञान' के लिए सुग्रीव के गले में एक की माला पहनायी एवं उसे पुनः एक र वालि से युद्ध करने भेज दिया। सुग्रीव का आह्वान सुन कर, यह अपनी पत्नी तारा का अनुरोध टुकरा कर पुनः अपने महल से निकला। इंद्र के द्वारा दी गयी सुवर्णमाला पहन कर यह युद्ध के लिए चल पड़ा | आनंद रामायण के अनुसार, गले में सुवर्णमात्य धारण करनेवाला वालि युद्ध में अजेय था, जिस कारण बुद्ध के पूर्व राम ने एक सर्प के द्वारा इसकी माला को चुरा लिया था (आ. रा. ८ ) । तलात् हुए इंद्रयुद्ध । के समय राम ने वृक्ष के पीछे से शण छोड़ कर इसका
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• वध किया ( वा. रा. कि. १६३.१६ ) ।
पड़ा । •
प्राचीन चरित्रकोश
राम की आलोचना - मृत्यु के पूर्व इसने वृक्ष के . पीछे से बाण छोड़ कर अपना वध करनेवाले राम का क्षत्रिय वर्तन ताते समय राम की अत्यंत कठ मोचना की
अयुक्तं धर्मेण ययाऽहं निहतो रणे।
(बा.रा. कि. १७.५२)
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वाल्मीकि
तो एक ही दिन में मैं सीता की मुक्ति कर देता। दशमुखी रावण का वध कर उसकी लाश की गले में रस्सी बाँध कर एक ही दिन में मै तुम्हारे चरणों में रख देता। मैं मृत्यु से नहीं डरता हूँ किन्तु तुम जैसे स्वयं को क्षत्रिय कहलानेवाले एक पापी पुरुष ने विश्वासघात से मेरा वध किया है, यह शल्य मैं कभी भी भूल नहीं सकता ' ।
अंत्यविधि-वालि के इस आक्षेप का राम ठीक प्रकार से जवाब न दे सका ( राम दाशरथि देखिये ) । मृत्यु के पूर्व वालि ने अपनी पत्नी तारा एवं पुत्र अंगद को सुग्रीव के हाथों सौंप दिया ।
स्वभावचित्रण राम का शत्रु होने के कारण, उत्तरकालीन बहुत सारे रामायण ग्रन्थों में एक क्रूरकर्मन् राजा के रुप में वालि का चरित्र चित्रण किया गया है। राम के द्वारा किये गये इसके वध का समर्थन देने का प्रयत्न भी अनेक प्रकार से किया गया है।
इसने राम से कहा, 'मैंने तुम्हारे साथ कोई अन्याय नहीं किया था। फिर भी जब मैं सुप्रीय के साथ युद्ध करने में यथा, उस समय तुमने वृक्ष के पीछे से बाण छोड़ कर मुझे आहत किया । तुम्हारा यह बर्तन संपूर्णतः अक्षत्रिय है। । तुम नहीं कि खुनी हो तुम्हें मुझसे युद्ध ही करना क्षत्रिय बल्कि था, तो क्षत्रिय की भाँति चुनौति दे कर युद्धभूमि में चले आते। मैं तुम्हारा आवश्य ही पराजय कर लेता ' । बालि ने आगे कहा, 'ये सब पापकर्म तुमने सीता की मुक्ति के लिए ही किये। अगर यह बात तुम मुझसे कहते,
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किन्तु ये सारे वर्णन अयोग्य प्रतीत होते हैं। वालि स्वयं एक अत्यंत पराक्रमी एवं धर्मनिष्ठ राजा था। इसने चार ही वेदों का अध्ययन किया था, एवं अनेकानेक यज्ञ किये थे। इसकी धर्मपरायणता के कारण स्वयं नारद ने भी इसकी स्तुति की थी (ब्रह्मांड २.७.२१४ - २४८ ) । मृत्यु के मृत्यु के पूर्व राम के साथ इसने किया हुआ संवाद भी इसकी शूरता, तार्किकता एवं धर्म नेता पर काफी प्रकाश डालता है।
२. वरुणलोक का एक असुर ( म. स. ९.१४ ) । वालिशय - वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । वालिशिख -- एक नाग, जो कश्यप एवं कद्रू के पुत्रों में से एक था।
वालिशिखायनि - एक आचार्य (सां. आ. ७.२१) ।
वाल्मीकि एक व्याकरणकार, जिसके विसर्गसंधी के संबंधित अभिमतों का निर्देश तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में प्राप्त है ( . . ५०२६९२४१८८६)। (तै. प्रा.
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२. एक पक्ष को वंशीय सुपर्णपक्षियों के वंश में उत्पन्न हुआ था। दास के अनुसार, वे पक्षी न हो कर, सप्तसिंधु की यायावर आर्य जाति थी ( सम्वेदिक इंडिया, पृ. ६५, १४८ ) । ये कर्म से क्षत्रिय थे, एवं बड़े ही विष्णुभक्त थे (म. उ. ९९.६८ ) ।
२. एक व्यास (व्यास देखिये) ।
४. एक शिवभक्त, जिसने शिवभक्ति के संबंध में अपना अनुभव युधिष्ठिर को कथन किया था (म. अनु. १८.८ - १० ) ।