Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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विदुर
पद्म में निर्दि इस कथा का संकेत सभ्यतः महाभारत में निर्दिह धर्मात्मा बिदुर से ही होगा, जिसे पूर्वजन्म में अणीमाण्डव्य ऋप से शार प्राप्त हुआ था ( बिदुर १. देखिये ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
विडुला -- एक प्राचीन क्षत्रिय स्त्री, जो महाभारत में निर्देशित 'विदुला पुत्र संवाद' के कारण अमर हो गयी है। यह सौवीर देश के राजा की पत्नी थी, जिसके पुत्र का नाम संजय था । इसका पुत्र जब छोटा था, उस समय इसका पति मृत हुआ। यही अवसर पा कर, सीवीर देश के पास ही बसे हुए सिन्नरेश ने संजय पर आक्रमण किया एवं उसे रणभूमि से मंगा कर उसका राज्य छीन लिया। रणभूमि से भाग कर आये हुए अपने पुत्र की इसने कटु आलोचना की, जिसका पुनर्निषेदन कुंती ने युधिष्ठिर को युद्धप्रवृत्त बनाने के लिए किया था । महाभारत में यही संवाद' विदुला पुत्र संवाद ' नाम से प्रसिद्ध है (म. उ. १३१-१३४ ) | इसके नाम के लिए 'विदुरा' पाठभेद भी प्राप्त है।
विदुला पुत्र संवाद -- महाभारत में राजनैतिक दृष्टि से उपदेश देनेवाले भी कुछ संवाद प्राप्त है, उनमें यह संवाद श्रेष्ठ माना जाता है । इस संवाद में महाभारत के नाम से प्रसिद्ध हुए बहुत सारे सुभाषित ग्रथित किये गये है। इसने अपने पुत्र से कहा था, 'पराक्रमी पुरुष के लिए वही योग्य है कि, पौरुषहीन जीवन दीर्घकाल तक जीने की अपेक्षा, यह अस्पकाल तक ही जी कर सारे संसार को अपने पराक्रम से स्तिमित करे (मुहूर्त ज्वलितं श्रेयः न तु धूमायितं चिरम् । आत्मसंतुष्टता के कारण ऐश्वर्य विनष्ट होता है (तो ये हन्ति । इसी कारण पराक्रमी पुरुष ने देवकार्यरत रहना चाहिए, एवं इसी धारणा से काम करना चाहिए कि, जान जायें, मगर मस्तक नीचा न हो जायें (उद्यच्छेदेव न नमेदुद्यमो ह्येव पौरुषम् ) ( म.उ. १३१.१२ ११३ १३२.२८ ) |
इसने आगे कहा था, 'उद्योगी पुरुष को यही चाहिये
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विदूरथ
विदुला के इसी संवाद का निर्देश युधिष्ठिर ने कुंती के पास पुनः एक बार किया था (म. आ. २२.२० ) । आव. जय' नामक महाभारत की रचना भी इसी संवाद को आधारभूत मान कर की गयी है।
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जागृतयोक्तन्यं भूतिकर्मसु । भविष्यतीत्येवमनः कृत्वा सततमव्यथैः ॥ ( म. उ. १३३.२७ ) । (सदैव विजिगिषु एवं जागृत रह कर ऐश्वर्य संपादन करें । जो कार्य अंगीकृत किया है, वह यशस्वी होनेवाला ही है, ऐसी धारणा मन में रख कर सतत प्रयत्न करते रहें)
विदुष (सो..) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार घृत राजा का पुत्र था।
विदूर - पूरु राजा विरथ का नामान्तर ( विरथ देखिये) ।
विदूरथ - (सो. ब. क्र. भजमान राजा का पुत्र था ( ब्रह्मांड.
यादव राजा ज २.७१.१३६ ) |
२. (सो. यदु. वृष्णि. ) एक यादव राजा, जो चित्ररथ राजा का पुत्र था। इसके पुत्र का नाम घर था (मा. ९.२४.१८ ) ।
३. ( सो. यदु. वृष्णि. ) एक वृष्णिवंशीय क्षत्रिय, जो वृद्धान् एवं वमुदेवभगिनी श्रुतदेवा का पुत्र था। इसके भाई का नाम दन्तवक था । यह रुक्मिणी तथा द्रौपदी के स्वयंवर में उपस्थित था ( म. आ. १८६ ) ।
यह शिशुपाल, शाल्व, जरासंध आदि का मित्र था एवं जरासंघ ने मथुरा नगरी के पूर्वद्वार का संरक्षण करने के लिए इसकी नियुक्ति की थी । इसका भाई दन्तवक्र तथा शाल्व, शिशुपाल आदि का श्रीकृष्ण के द्वारा वध होने के पश्चात् उनकी मृत्यु का बदला लेने के लिए इसने कृष्ण पर आक्रमण किया। किन्तु उसने इसका मस्तक काट कर इसका वध किया ( भा. १०.७८.११-१२ ) । ४. (सो. क्रोष्टु. ) एक यादव राजा, जो लोमपादवंशीय विवृति राजा का पुत्र था। इसे 'उदर्क' एवं
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दाशार्ह ' नामान्तर प्राप्त थे ( अभि. २७५.१९-२० ) । पद्म एवं मत्स्य में इसे निर्वृति राजा का पुत्र कहा गया है, एवं दशाई राजा का पिता कहा गया है (पद्म.. १२] मत्स्य ४४.४० ) 1
५. सावर्णि मनु के पुत्रों में से एक (ब्रह्मांड. ४.१.९४ ) । ६. (सो. पूरु. ) एक राजा, जो सुरथ राजा का पुत्र एवं सार्वभौम राजा का पिता था ( भा. ९.२२.१० ) । ७. चंपक नगरी के हंसध्वज राजा का भाई ।
८. दक्षिण भारत का एक राजा, जिसने अपनी कन्या दिष्टवंशीय राज्यवर्धन राजा को विवाह में प्रदान की थी ।
९. एक राजा, जो भलंदन ऋषि का मित्र था । इसके सुनीति एवं सुमति नामक दो पुत्र, एवं मुदावती नामक एक कन्या थी।
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