Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
प्राचीन चरित्रकोश
विद्युदक्ष
, ब्रह्मांड के अनुसार, जरासंध के भय से मथुरा से | नामक दानव था (वा. रा. उ. १२.२) राम ने इसका विजनवासी हुए यादव लोग विदेह देश में रहने के लिए | आये थे ( ब्रह्मांड, २.१६.५४ )।
२. रावण का एक प्रधान, जिसने माया-जाल से राम ४. ( सो. वसु.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार | का टूटा हुआ मस्तक, एवं धनुष्य सीता को दिखाया था। वसुदेव एवं देवकी के पुत्रों में से एक था।
इसने सीता को रावण के वश में जाने के लिए पुनः पुनः विदैवत--एक पिशाच, जो पूर्वजन्म में हरिवीर अनुरोध किया, किन्तु सीता अपने सतीत्व पर अटल रही। नामक क्षत्रिय था। नास्तिकता के कारण, इसे पिशाच- ३. एक राक्षस, जो विश्रवस् एवं वाका के पुत्रों में से योनि प्रप्त हुई ( पन. पा. ९५, ९८)।
एक था। यह महातल नामक पाताललोक में स्थित विद्य-विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं प्रवर। अक्तिलम् नामक नगर में रहता था (वायु. ५०.३५)। पाठ-'क्षितिमुखाविद्ध।
४. घटोत्कच का साथी एक राक्षस, जिसका दुर्योधन विद्या---एक देवता, जो वैदिक साहित्य में मुख्यतः के द्वारा वध हुआ (म. भी. ८७.२०)। " • तीन वेदों के ज्ञान ( त्रयी विद्या) की देवता मानी गयी ५. अमृत की रक्षा करनेवाले दो सर्प (म. आ. २९. है । सायणाचाय के ऋग्वेद भाष्य की प्रस्तावना में इस ५-६)। विद्युत् के समान जिह्वा होने के कारण, इन्हें यह देवता के संबंधी एक कथा . दी गयी है । एक बार यह नाम प्राप्त हुआ होगा। एक ब्राह्मण के पास गयी, एवं इसने उसे कहा, 'मैं तुम्हारी विद्युज्जिड्डा--स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. भमानत (शेवधि ) हूँ। तुम्हारा यही कर्तव्य है कि, | श. ४५.८)। . तुम्हारे शिष्यों में से जो पवित्र, ब्रह्मचारी, नियमनिष्ठ, विद्युत्--एक राक्षस, जो यातुधान नामक राक्षस का निधिरक्षक एवं अनवधानशून्य होंग, उन्हीकों तुम मुझे पुत्र, एवं रसन नामक राक्षस का पिता था (ब्रह्मांड. ३.७. प्रदान करना । असूया करनेवाले शिष्यों से मैं अत्यधिक | ९५)। घृणा करती हूँ, इसी कारण तुम मुझे उन्हें प्रदान नहीं । २. सहिष्णु नामक शिवावतार का एक शिष्य । करना ( सायणाचार्य, ऋग्वेद प्रस्तावना )।
विद्युता--कुबेरसभा की एक अप्सरा, जिसने अष्टा. विद्याचंड-कांपिल्य नगरी के सुदरिद्र नामक ब्राह्मण | वक्र से स्वागतसमारोह में नृत्य किया था (म. अनु.
के चार पुत्रों में से एक ( पितृवर्तिन् देखिये)। ५०.४८)। • विद्याधर--एक देवयोनिविशेष । पुराणों में इनके विद्युत्केश-एक राक्षस, जो हेति राक्षस का पुत्र था।
राजाक्षों का नाम चित्रकेतु, चित्ररथ अथवा सुदर्शन मयासुर की कन्या इसकी माता थी। संध्या की कन्या दिया गया है ( भा. ६.१७.१, ११, १६, २९)। वायु सालकटंकटरा से इसका विवाह हुआ था। कालोपरांत मैं पुलोमन् को 'विद्याधरपति' कहा गया है (वायु. ३८. उसने इससे उत्पन्न हुआ गर्भ मंदर-पर्वत पर छोड़ दिया, १६)। इन लोगों की स्त्रियाँ 'विद्याधरी' कहलाती थी जिसका भरण-पोषण शिव ने किया। (ब्रह्मांड, ३.५०.४०)।
विद्युत्पर्णा-एक अप्सरा, जो कश्यप एवं प्राधा की इन देवताओं के शैवेय, विक्रान्त एवं सौमनस नामक कन्या थी (म. आ. ५९.४८)। तीन प्रमुख गण थे ( वायु. ३०.८८)। इन देवताओं का विद्युत्प्रभ--एक ऋषि, जिसकी इंद्र से 'पापमोचन' विद्याधरपुर नामक नगर ताम्रवर्ण सरोवर एवं पतंग एवं 'सूक्ष्म-धर्म के संबंध में चची हुई थी (म. अनु. पहाड़ियों के बीच बसा हुआ था (मत्स्य. ६६.१८)। । १२५.४५-५७)। विद्याधीश--सुराष्ट्र देश के सोमकांत राजा का प्रधान । | २. एक दानव, जिसे रुद्रदेव की कृपा से एक लाख वर्षों
विद्यापति--उज्जैनि के इंद्रद्युम्न राजा का उपाध्याय तक तीनों लोगों का आधिपत्य, शिव का नित्यपार्षदपद एवं (खंद. २.२.८)।
कुशद्वीप का राज्य, वरों के रूप में प्राप्त हुए थे (म. विधुच्छत्रु--एक राक्षस, जो मार्गशीर्ष माह में सूर्य अनु. १४.८२-८४)। के साथ भ्रमण करता है ( भा. १२.११.३१)। वित्प्रभा-उत्तर दिशा में रहनेवाली दस अप्सराएँ
विद्युजित--एक राक्षस, जो खशा राक्षसी का पुत्र, | (म. उ. १०९.१८)। एवं शूर्पणखा का पति था । पूर्वजन्म में यह कालकेंद्र | विद्युदक्ष--रकंद का एक सैनिक (म. श. ४४.५७) ।
प्रा. च. १०७]