Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
वाल्मीकि
प्राचीन चरित्रकोश
वाल्मीकि
तथा वीणा के स्वरों में कौन गायक कर सकेगा, इस संबंध | अनुसार, वाल्मीकि स्वयं उत्तर भारत का निवासी था, में वाल्मीकि खोज करने लगा।)
एवं गंगा नदी को मिलने वाली तमसा नदी के किनारे . वाल्मीकि के काल में रामायण का केवल गायन ही अयोध्या नगरी के समीप इसका आश्रम था। वाल्मीकि नही, बल्कि अभिनय भी किया जाता था, ऐसा स्पष्ट | रामायण में निर्दिष्ट प्रमुख भौगोलिक स्थल निम्न निर्देश वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है। वहाँ रामायण का | प्रकार है:-- गायन करनेवाले कुशलव को 'स्थानकोविद ' ( कोमल, (१) उत्तर भारत के स्थल:-१.अयोध्या (वा.रा. मध्य एवं उच्च स्वरोच्चारों में प्रवीण), 'मार्गगानतज्ज्ञ' | बा.६.१); २. सरयू नदी (वा. रा. बा. २४.१०); ३. (मार्ग नामक गायनप्रकार में कुशल) ही नहीं, बल्कि तमसा नदी (वा. रा. बा. २.४ ); ४. कोसल देश (वा. 'गांधर्वतत्वज्ञ' (नाट्यशास्त्रज्ञ), एवं 'रूपलक्षण संपन्न' | रा. अयो. ५०.१०); ५. शंगवेरपुर (वा. रा. अयो. (अभिनयसंपन्न) कहा गया है (वा. रा. बा. ४.१०. ५०.२६); ६. नंदिग्राम (वा. रा. अयो. ११५.१२); ११; कुशीलव देखिये)।
७. मिथिला, सिद्धाश्रम, गौतमाश्रम, एवं विशाला नगरी वाल्मीकिप्रणीत रामकथा को आधुनिक काव्य के गेय (वा. रा. बा. ३१.६८); ८. गिरिव्रज अथवा राजगृह छंदों में बाँध कर गीतों के रूप में प्रस्तुत करने का सफल | (वा. रा. अयो. ६८.२१); ९. भरद्वाजाश्रम (वा. रा. प्रयत्न, मराठी के सुविख्यात कवि ग. दि. माडगूलकर के | अयो. ५४.९); १०. बाह्रीक (वा. रा.अयो. ६८.१८); द्वारा 'गीतरामायण' में किया गया है। गेय रूप में | ११. भरत का अयोध्या-केकय-गिरिव्रज प्रवास (वा. रा. रामायणकाव्य अधिक मधुर प्रतीत होता है, इसका | अयो. ६८. १२-२१,७१.१-१८)। अनुभव 'गीतरामायण' के श्रवण से आता है।
(२) दक्षिण भारत के स्थल-१. पंचवटी (या. रा. आर्ष महाकाव्य-जिस प्रकार वाल्मीकि संस्कृत भाषा |
अर. १३.१२०); २. पंपा नदी, (वा. रा. अर.६.१७); का आदिकवि है, उसी प्रकार इसके द्वारा विरचित
३. दण्डकारण्य (वा. रा. बा. १०.२५); ४. अगस्त्याश्रम रामायण संस्कृत भाषा का पहला 'आर्ष महाकाव्य'
(वा. रा. अर. ११, ८३); ५. जनस्थान (वा. रा. उ. माना जाता है। 'आर्ष महाकाव्य' के गुणवैशिष्टय
८१.२०); ६. किष्किंधा (वा. रा. कि. १२.१४ ).७. महाभारत में निम्नप्रकार दिये गये है- .
लंका (वा. रा. कि. ५८१९-२०); ८. विध्याद्रि (वा. इतिहासप्रधानार्थ शीलचारित्र्यवर्धनम् । रा. कि. ६०.७)। .. धीरोदात्तं च गहनं श्रव्यवृत्तैरलंकृतम् ।। लोकयात्राक्रमश्चापि पावनः प्रतिपाद्यते।
रामायण का रचनाकाल--रामायण के सात कांडों में विचित्रार्थपदाख्यानं सूक्ष्मार्थन्यायबृंहितम् ॥
से, दूसरे से ले कर छटवे तक के कांडों (अर्थात् अयोध्या,
अरण्य, किष्किंधा, सुंदर एवं युद्ध) की रचना स्वयं (इतिहास पर आधारित, एवं सदाचारसंपन्न आदशों वाल्मीकि के द्वारा की गयी थी। बाकी बचे हुए दो कांड का प्रतिपादन करनेवाले काव्य को आर्ष महाकाव्य कहते हैं। (अर्थात् पहला बालकांड, एवं सातवा उत्तरकांड) वाल्मीकि वह सदगुण एवं सदाचार को पोषक, धीरोदात्त एवं गहन | के द्वारा विरचित 'आदि रामायण' में अंतभत नही थे। आशय से परिपूर्ण, श्रवणीय छंदों से युक्त रहता है)। उनकी रचना वाल्मीकि के उत्तरकालीन मानी जाती है।
वाल्मीकि रामायण में प्राप्त भूगोलवर्णन--इस ग्रंथ इन दोनों कांडों में वाल्मीकि का एक पौराणिक व्यक्ति के में उत्तर भारत, पंजाब एवं दक्षिण भारत के अनेकानेक | रूप में निर्देश प्राप्त है। . भौगोलिक स्थलों का निर्देश एवं जानकारी प्राप्त है । कोसल आधुनिक अभ्यासकों के अनुसार, वाल्मीकि के देश एवं गंगा नदी के पडोस के स्थलों का भौगोलिक स्थान, 'आदिकाव्य ' का रचनाकाल महाभारत के पूर्व में, एवं स्थलवर्णन उस ग्रंथ मे जितने स्पष्ट रूप से प्राप्त है, उतनी | अर्थात् ३०० ई. पू. माना जाता है; एवं वाल्मीकि के स्पष्टता से दक्षिण भारत के स्थलों का वर्णन नही मिलता। प्रचलित रामायण का रचनाकाल दूसरि शताब्दी ई. पू. इससे प्रतीत होता है कि, वाल्मीकि को उत्तर भारत एवं | माना जाता है। पंजाब प्रदेश की जितनी सूक्ष्म जानकारी थी, उतनी दक्षिण | वाल्मीकि के 'आदिकाव्य' के रचनाकाल के संबंध भारत एवं मध्यभारत की नहीं थी। कई अभ्यासकों के | में विभिन्न संशोधकों के अनुमान निम्नप्रकार हैं:-- १.