Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वररुचि
प्राचीन चरित्रकोश
वराह
३. एक सुविख्यात नाट्यशास्त्रप्रणेता (मत्स्य. १०. ऋग्वेद में इंद्र के द्वारा वराह का वध होने की कथा २५)।
| दी गई है (ऋ. १०.९९.६)। प्रजापति के द्वारा वराह, वरशिख-एक ज्ञातिप्रमुख, जिसके ज्ञाति का अभ्या-का रूप लेने की कथा तैत्तिरीय-संहिता में प्राप्त है। पृथ्वी वर्तिन् चायमान एवं वृचिवत् राजाओं ने पराजय किया था। के उत्पत्ति के पूर्वकाल में प्रजापति वायु का रूप धारण कर (ऋ. ६.२७.४-५)। झिमर के अनुसार, बरशिख तुर्वश अंतरिक्ष में घूम रहा था। उस समय समुद्र के पानी में एवं रुचीवन्त लोंगों का नेता था (अल्टिन्डिशे लेबेन. डूबी हुई पृथ्वी उसने सहजवश देखी । फिर प्रजापति ने १३३) । किन्तु यह विधान केवल अनुमानात्मक ही प्रतीत वराह का रूप धारण कर पानी में प्रवेश किया. एवं पानी होता है। ऋग्वेद के इसी सूक्त में अभ्यावर्तिन् चायमान में डूबी हुई पृथ्वी को उपर उठाया। तत्पश्चात् उसने के भय से इसका पुत्र मृत होने का निर्देश प्राप्त है। पृथ्वी को पांछ कर स्वच्छ किया, एवं वहाँ देव, मनुष्य
| आदि का निर्माण किया (तै. सं. ७.१.५.१)। संभवतः इसके ही वंशज होंगे (बृहद्दे. ५.१२४ )। तैत्तिरीय ब्राह्मण में यही कथा कुछ अलग ढंग से दी
वरस्त्री-बृहसति की एक बहन, जो प्रभास नामक गई है, जिसके अनुसार ब्रह्मा के नाभिकमल के निचले वसु की पत्नी थी (म. आ. ६०.२६; वायु. ८४.१५)।
भाग में स्थित कीचड़ प्रजापति ने वराह का रूप धारण कर यह ब्रह्मवादिनी थी, एवं योगसामर्थ्य के कारण समस्त
क्षीरसागर से उपर लाया, एवं उसे ब्रह्मा के नाभिकमल के सृष्टि में संचार करती थी।
पन्नों पर फैला दिया। आगे चल कर उसी कीचड़ ने पृथ्वी वरा-हेमधर्म राजा की कन्या, जिसने अविक्षित्
का रूप धारण किया (ते. बा. १.१.३)। राजा का स्वयंवर में वरण किया था (मार्क. ११९.
'पुराणों में--इन ग्रंथों में निर्दिष्ट विष्णु के अवतार
प्रायः ‘वराह अवतार' से ही प्रारंभ होता हैं। वरांग--(पौर. भविष्य.) एक राजा, जो विष्णु के |
हिराण्याक्ष नामक असुर पृथ्वी का हरण कर उसे पाताल
में ले गया । उस समय विष्णु ने वराह का रूप धारण अनुसार धर्म राजा का पुत्र था।
कर, अपने एक ही दाँत से पृथ्वी को उपर उठा कर समुद्र वरांगना--मथुरा के उग्रसेन राजा की कन्या।
के बाहर लाया, एवं उसकी स्थापना शेष नाग के मस्तक वरागिन्--दिवंजय राजा का एक पुत्र (ब्रह्मांड. २. ।
पर की । तत्पश्चात् उसने हिराण्याक्ष का भी वध किया ३६.१०१)।
(म. व. परि. १. क्र. १६. पंक्ति ५६-५८; क्र. २७. वरांगी-वज्रांग नामक असुर की पत्नी (मत्स्य.
पंक्ति. ४७-५०%; शां. २६०; मत्स्य. ४७.४७.२४७१४५)। ब्रह्मा ने इसे वज्रांग दैत्य की पत्नी बनने के |
२४८; भा. १.३.७, २.७.१; ३.१३.३१; लिंग. १.९४; लिए ही उत्पन्न किया था ( पन. सृ. ४२)। वज्रांग से |
स वायु. ९७.७; ह. वं. १.४१; पद्म. उ. १६९; २३७)। इसे तारकासुर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (वज्रांग
विष्णु का यह अवतार वारसह-कल्प के प्रारंभ में देखिये)। इसे वरांगा नामान्तर भी प्राप्त था।
हुआ (वायुः २३.१००-१०९)। कई पुराणों में इसका २. सोमवंशीय संयाति राजा की पत्नी, जो दृशद्वत् | स्वरूपवर्णन प्राप्त है, जहाँ इसे चतुबाहु, चतुष्पाद, राजा की कन्या थी। इसके पुत्र का नाम अहंयाति था | चतर्नेत्र एवं चतुर्मुख कहा गया है । हिरण्याक्ष के वध के (म. आ. ९०.१४)।
पश्चात् इसने यथाविधि श्राद्ध किया था (म. शां. ३३३. वराह--विष्णु का तृतीय अवतार, जो हिरण्याक्ष | १२-१७)। नामक असुर के वध के लिए उत्पन्न हुआ था। इसे 'यज्ञ- __वराहस्थान-जिस स्थानपर इसने पृथ्वी का उद्धार वराह' नामांतर भी प्राप्त था (म. स. परि. १ क्र. २१ किया, उस स्थान को ' वराहतीर्थ' कहते हैं (म. व. पंक्ति. १४०)।
८१.१५, पद्म. उ. १६९)। वराह पुराण के अनुसार, वैदिक साहित्य में--वराह अवतार का अस्पष्ट निर्देश यह 'वराहक्षेत्र' अथवा 'कोकामुखक्षेत्र' बंगाल में वैदिक साहित्य में प्राप्त है। किन्तु वहाँ कौनसी भी जगह | त्रिवेणी नदी के तट पर नाथपूर ग्राम के पास स्थित है वराह-अवतार को विष्णु का अवतार नहीं बताया गया (वराह. १४०.)। गंगानदी के तट पर सोरोन ग्राम में
वराह-लक्ष्मी का मंदीर है (वराह. १३७)।
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