Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वयुन
प्राचीन चरित्रकोश
वररुचि
वयुन--एक ऋषि, जो कृशाश्व ऋषि का पुत्र था। (सदुक्तिकरणामृत पृ. २९७ )। इसने पाणिनि के इसकी माता का नाम धिषणा था (भा. ६.६.२०)। अष्टाध्यायी पर एक वृत्ति लिखी थी, जिसका निर्देश
वयुना--एक पितृकन्या, जो भागवत के अनुसार हस्तलेखों के सूचि में प्राप्त है ( C. C.)। पितर एवं वधा की कन्या थी।
कातंत्र व्याकरण के वृत्तिकार दुर्गसिंह के अनुसार, उस वय--एक राजा. जिसका निर्देश ऋग्वेद में प्रायः सर्वत्र व्याकरण का कदंत नामक उत्तराधे इसके द्वारा विरचित तुर्वीति राजा के साथ प्राप्त है (ऋ. १.५४.६; २.१३.
| था। १२, ४.१९.६)।'अश्वियों ने इसका रक्षण किया था
वररुचि के द्वारा यास्क के निरुक्त पर 'निरुक्त (ऋ. १.११२.६)।
समुच्चय' नामक टीका का निर्माण किया गया था। स्कंदसायण के अनुसार, तुर्वीति राजा का पैतृक नाम वय्य
स्वामिन् के द्वारा विरचित निरुक्त टीका में 'वाररुच था, किन्तु रौथ इसे तुर्वीति राजा का एक मित्र मानते है ।
निरुक्त समुच्चय' की पर्याप्त सहाय्यता ली गयी हैं, एवं वर--पितरों में से एक ।
इसके अनेकानेक उद्धरण भी लिये गये हैं। वरंवरा---एक अप्सरा, जो कश्यप एवं मुनि की।
प्राकृतप्रकाश--वररुचि का 'प्राकृतप्रकाश' उपलब्ध कन्याओं में से एक थी।
प्राकृत व्याकरणों में सब से अधिक प्राचीन माना जाता है। वरतंतु--एक व्याकरणाचार्य, जिसका निर्देश एक
इस ग्रंथ में बारह परिच्छेद हैं, जिनमें से पहले नौ परिच्छेदों शाखाप्रवर्तक आचार्य के नाते पाणिनि के अष्टाध्यायी में में 'महाराष्टी' प्राकृत के नक्षणों का वर्णन है। दसवें प्राप्त है (पाणिनि देखिये)।
| परिच्छेद में 'पैशाची', एवं ग्यारहवें परिच्छेद में वरत्रिन--शुक्र के चार पुत्रों में से एक। इसके 'मागधी ' के लक्षण बताये गये हैं। बारहवें परिच्छेद में पृथुरश्मि, बृहदांगिरस एवं रजत नामक तीन पुत्र थे, जो 'शौरसेनी' का विवेचन प्राप्त है। यज्ञकर्मविरोधी होने के कारण इंद्र के द्वारा मारे गयें। इस ग्रंथ में से आखिरी तीन परिच्छेद उत्तरकालीन कालोपरान्त उनके कटे हुए सर से खजूर के पेड़ निर्माण माने जाते हैं, जो स्वयं वररुचि के द्वारा नहीं, बल्कि भामह हुए (ब्रह्मांड. ३१.८३-८४)।
अथवा अन्य कोई टीकाकार के द्वारा लिखे गये होंगे। पंचविंश ब्राह्मण में पृथुरश्मि के संबंध में विभिन्न कथा
इस ग्रंथ की प्राचीनतम टीका कात्यायन द्वारा विरचित दी गयीं हैं, जहाँ उसे यज्ञविरोधी कहते हुए भी, वह इंद्र
'प्राकृतमंजरी' है, जिसका रचनाकाल लगभग ई.स.६ वीके द्वारा बचाया जाने का निर्देश प्राप्त है (पृथुरश्मि |
७ वीं शताब्दी माना जाता है । इस ग्रंथ की अन्य सुविख्यात देखिये)।
टीकाएँ निम्न है :--भामहकृत 'मनोरमा'; वसंतराजकृत वरद-पितरों में से एक।
'प्राकृत संजीवनी' तथा सदानंद कृत 'सदानंदा'। २. स्कंद का एक सैनिक (म. स ४४. ५९)। वरण--महौजस वंश का एक कुलांगार राजा, जिसने
प्राकृत व्याकरण का सर्वमान्य संस्करण कॉवेल द्वारा दुर्व्यवहार के कारण अपने ज्ञातिबांधवों का एवं स्वजनों
संपादित, एवं ई. स. १८६८ में लंदन में प्रकाशित किया का नाश किया (म. उ. ७२.१५)। पाठभेद-'वरयु'।
गया है, जिसमें भामह की टीका के साथ अंग्रेजी
अनुवाद एवं टिप्पणियाँ भी प्राप्त है :वररुचि--एक सुविख्यात प्राकृत व्याकरणकार, जिसके द्वारा रचित 'प्राकृतप्रकाश' नामक ग्रंथ प्राकृत व्याकरण
ग्रंथ--वररुचि क नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त का आद्य ग्रंथ माना जाता है।
है -१. तैत्तिरीयप्रातिशाख्यव्याख्या (त्रिभाष्यरत्न. यह पाणिनीय व्याकरण के सुविख्यात वार्तिककार | १.१८.२.१४); २. निरुक्तसमुच्चय; ३. लिंगविशेषविधि कात्यायन वररुचि से भिन्न, एवं उससे काफी उत्तरकालीन | (लिंगानुशासन); ४. प्रयोगविधि; ५. कातंत्रउत्तरार्ध; था। विक्रम संवत् के प्रवर्तक सम्राट विक्रमादित्य के | ६. प्राकृतप्रकाश; ७. उपसर्गसूत्रः ८. पत्रकौमुदी; विद्वत्सभा का यह एक सभासद, एवं उसका धर्माधिकारी | ९. विद्यासुंदर काव्य; १०. यंत्रकौमुदी। था (वाररुच निरुक्त सम्मुच्चय पृ. ४२)।
२. एक सुविख्यात व्याकरणकार, जो पाणिनीय व्याकरण वार्तिककार वररुचि के समान इसका गोत्र भी कात्यायन | के वार्तिकों का कर्ता माना जाता है। इसका संपूर्ण नाम ही था, एवं इसे श्रुतिधर नामान्तर भी प्राप्त था | कात्यायन वररुचि था (कात्यायन देखिये)।
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