Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वत्सति
प्राचीन चरित्रकोश
वध्यश्व
सौनंदा अथवा मुद्रावती से विवाह किया था ( मार्क. | करने के लिए कहा। वह यात्रा पूरी होने पर इसने सुप्रभा
का विवाह अष्टावक्र से कराया (म. अनु. ५०.११; वत्सप्रीति--दिष्टवंशीय वत्सपि राजा का नामांतर | अष्टावक्र देखिये)। (वत्सप्रि भालंदन २. देखिये)।
वध--एक राक्षस, जो यातुधान नामक राक्षस का क्समित्र गोभिल--एक आचार्य, जो गौल्गुलवी- पुत्र था। इसके पुत्रों के नाम विघ्न एवं शमन थे (ब्रह्मांड. पुत्र गोभिल नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य ३.७.९४ ) का नाम मूलमित्र गोभिल था (वं. ब्रा.३)।
वाध्रिमती-पुरंधि नामक स्त्री का नामान्तर (ऋ. । वत्सर--(खा. उत्तान.) एक राजा, जो ध्रव राजा के | ११६.१२)। अश्वियों की कृपा से इसके पति को पुनः दो पुत्रों में से कनिष्ठ था। इसकी माता का नाम भ्रमी था।। पुरुषत्व प्राप्त हुआ था। आगे चल कर इसे हिरण्य हस्त इसका ज्येष्ठ भाई उत्कल प्रारंभ से ही विरक्त था, जिस | नामक पुत्र भी उत्पन्न हुआ था (ऋ.१. ११६.१३; ११७. कारण कनिष्ठ होते हुए भी यह राजगद्दी पर बैठा। २४, ६.६२.७; १०.३९.७; ६५.१२)। | इसकी पत्नी का नाम स्वर्वीथी था, जिससे इसे निम्न- लो. तिलक के द्वारा वध्रिमती के इस कथा का अन्वयार्थ लिखित छः पुत्र उत्पन्न हुए थे:--पुष्पार्ण, तिग्मकेतु, अन्य प्रकार से लगाया गया है, जिसमें उन्होंने आर्यों ईश, ऊज, वसु एवं जय (भा. ४.१०.१, १३.११)। का मूलस्थान उत्तरध्रुव में होने के अपने सिद्धान्त का २. कश्यपकुलोत्पन्न एक प्रवर।
संकेत पाया है (आर्यों का मूलस्थान, पृ. २२८)। वत्सराज--कोसल नरेश वत्स राजा का नामान्तर | वयश्व-(सो. नील.) एक राजा, जो मुद्गल राजा (वत्स ५. देखिये)।
का पुत्र था। | वत्सल--वसन नामक स्कंद के एक सैनिक का ___ऋग्वेद में अग्निपूजा के समर्थक राजा के रूप में इसका नामान्तर।
निर्देश प्राप्त है, एवं सरस्वती के द्वारा इसे दिवोदास वत्सला-अभिमन्यु की पत्नी, जिसकी जीवनकथा नामक पुत्र प्रदान किये जाने का निर्देश प्राप्त है (ऋ. ६. मराठी 'वत्सलाहरण' नामक लोकप्रिय काव्य में प्राप्त है।
३१.१; १०.६९.१; अ. वे. २.२९.४)। इसका पुत्र २. श्रीकृष्ण की एक गोपी (पद्म. भू. ७७)। दिवोदास भी इसीके तरह श्रेष्ठ यज्ञकर्ता था । वध्यश्व का
वत्सवालक--(सो, क्रोष्ट.) एक यादव राजा, जो | शब्दशः अर्थ 'बधिया अश्वोंवाला' होता है । कई अभ्यासकों विष्णु के अनुसार शूर राजा का पुत्र था।
के अनुसार, इसे सुमित्र नामान्तर भी प्राप्त था । वत्सवृद्ध--(सू. इ. भविष्य.) इक्ष्वाकुवंशीय वत्स | पुराणों में इसके 'बध्यश्व, ' ' वध्रश्व, ' 'वल्याश्व' राजा का नामान्तर (वत्स. ४. देखिये)। भागवत में इसे | एवं 'विंध्याश्व' नामान्तर प्राप्त है। मत्स्य में इसे उरुक्रिय राजा का पुत्र कहा गया है।
इंद्रसेन राजा का, एवं वायु में 'ब्रह्मिष्ठ' राजा का पुत्र वत्सव्यूह--(सू. इ. भविष्य.) इक्ष्वाकुवंशीय वत्स | कहा गया है । मत्स्य में इसका वंशक्रम ब्रह्मिष्ठ-इंद्रसेनराजा का नामान्तर (वत्स ४. देखिये )। वायु में इसे क्षय विन्ध्याश्व-दिवोदास इस क्रम से दिया गया है। कई राजा का पुत्र कहा गया है।
अभ्यासकों के अनुसार, यह ब्रह्मिष्ठ एवं इंद्रसेना का पुत्र वत्सार--कश्यप ऋषि के अवत्सार काश्यप नामक | था। किन्तु मत्स्य में 'इंद्रसेना' के बदले 'इंद्रसेन' पाठ का पुत्र का नामान्तर (अवत्सार काश्यप देखिये) काश्यप | स्वीकार कर, इसे इंद्रसेन राजा का पुत्र कहा गया है, जो कुलोत्पन्न एक मंत्रकार के नाते इसका निर्देश प्राप्त है, गलत प्रतीत होता है। किन्तु ऋग्वेद में इसके नाम पर एक भी मंत्र उपलब्ध इसकी पत्नी का नाम मेनका था, जिससे इसे दिवोदास नहीं है। इसे निध्रुव एवं रेभ्य नामक दो पुत्र थे । । एवं अहल्या नामक संतान उत्पन्न हुई (मत्स्य. ५०.७;
वत्स्य--वात्स्य नामक भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकार का | वायु. ९९.१९५; ह. वं. १.३२.७०)। नामान्तर (वात्स्य ७. देखिये)।
२. भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। वदान्य--एक ऋषि, जिसकी कन्या का नाम सुप्रभा | वध्यश्व अनूप--एक सामद्रष्टा आचार्य (पं. ब्रा. था । अष्टावक्र राजा ने सुप्रभा से विवाह करने की इच्छा | १३.३.१७) । अनूप का वंशज होने के कारण, इसे प्रकट की, जिस पर इसने उसे उत्तर दिशा की यात्रा | 'अनूप' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था।
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