Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वत्स
२. (सो. क्षत्र.) काशी देश का एक राजा, जो वायु के अनुसार प्रतर्दन राजा का पुत्र था । परशुराम के भय से, यह गोशाला में गावों के बछड़ो (वत्सों) के बीच पालपोस कर बड़ा हुआ, जिस कारण इसे 'वत्स' नाम प्राप्त हुआ (म. शां. ४९.७१ ) ।
४. ( इ. भविष्य ) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार गुरुक्षेप राजा का पुत्र था। इसे 'वत्सद्रोह', 'वत्सवृद्ध' एवं ' बत्सव्यूह' आदि नामांतर प्राप्त थे। ५. कोसल देश का एक राजा, जो द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.२० ) ।
वत्सप्रि
कर इसने अपनी जातिविषयक शुद्धता प्रस्थापित की (पं. बा. ८.६.१ ) । हेमाद्रि के 'परिशेष खंड' में इसका निर्देश प्राप्त है।
प्राचीन चरित्रकोश
वत्सक - - (सु. इ. ) एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा, जो मत्स्य के अनुसार आवस्त राजा का पुत्र एवं बृह राजा का भाई था। पुराणों में इसे ' वंशक' कहा गया है।
२. (सो. क्र. ) एकादशीय राजा, जो यमुदेव का भाई, एवं शूर राजा के दस पुत्रों में से एक था। इसकी माता का नाम मारिया था। मिश्रकेशी नामक अप्सरा से इसे वृक आदि पुत्र उन हुए ( मा. ६२४. २९-४३) ।
६. सोम नामक शिवावतार का एक शिष्य । ७. कंस के पक्ष का एक दैत्य, जो 'गोवत्स ' का रूप धारण कर कृष्ण का नाश करने गोकुल में उपस्थित हुआ था। इसे 'वत्सक ' नामांतर भी प्राप्त था ( भा. १०. ४३.३० ) । कपित्थ के वृक्ष पर पटक कर, कृष्ण ने इसका वध किया (मा. १०.११.४२ ) ।
८. एक वैश्य, जो मंत्रविद्या में प्रवीण था (ब्रह्मांड, २.३२.१२१ ) ।
९. एक आचार्य, जो ब्रह्मांड के अनुसार, व्यास की यजुःशिष्यपरंपरा में से याज्ञवल्क्य का वाजसनेय शिष्य था ( व्यास देखिये) ।
१०. एक आचार्य, जो ग्यास की ऋशिष्यपरंपरा में से देवमित्र नामक आचार्य का शिष्य था पाउमेद "वास्य ।
११. पूर्व भारत में रहनेवाला एक लोकसमूह, जो भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में शामिल था ( म. उ. ५२.२ ) । इस देश के योद्धा धृष्टद्युम्न के द्वारा निर्मित
न्यूह के वाम पक्ष में खड़े थे ( म. भी. ४६.५१ ) । काशिराज की कन्या अंबा इन्ही लोगों के देश में तपश्चर्या करने आयी थी (म. उ. १८७.२३ ) । वत्स आय एक वैदिक सूक्त (ऋ. १०. १८७ ) | यह एवं अन्य एक सुस्तद्रष्टा कुमार आत्रेय, एक ही वंश में उत्पन्न हुए होंगे।
वत्स काण्व - एक वैदिक सूक्तद्रष्टा, एवं 'चरका ध्वर्यु । कण्व ऋषिका सूत्रका रचयिता ( ८८६.११) पुत्र होने से, इसे 'काय' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था (ऋ. ८.८.८ ) ।
काण्व
तिरिंदर पारशव्य राजा से इसे विपुल धन प्राप्त हुआ था (ऋ. ८.६.४६; सां. श्र. १६.११.२० ) । मेधातिथि नामक इसके प्रतिद्वंद्वी ने इसे शुद्रपुत्र कहा, किंतु अग्निदिव्य |
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३. वत्स नाम कंसपक्षीय राक्षस का नामांतर ( वत्स. ७. देखिये) ।
वत्सद्रोह (सू. इ. भविष्य ) इयाय वत्स राजा का नामान्तर ( वत्स. ४. देखिये ) । मत्स्य में इसे उरुक्षय राजा का पुत्र कहा गया है ।
वत्सनपात् वाभ्रव्य - एक आचार्य, जे पथिन् सौमर नामक आचार्य का शिष्य था . . १०५.२२० ४.५.२८. माध्यं.) । बभ्रुमा होने से इसे 'वाय' पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
वत्सनाभ -- एक महर्षि । एक बार यह वर्षा में फँस गया, जब इंद्र ने भैंस का रूप धारण कर इसकी रक्षा की आगे चल कर इसने कृतता से उसी भैंस को भग करने चाहा, किंतु योग्य समय पर इसे अपने विचारों से लज्जा उत्पन्न हुई, एवं यह प्राणत्याग करने निकला ( म. अनु. १२ ) । किंतु धर्म ऋषि ने इसे रोक लिया, एवं मनःशांति के लिए 'शंखतीर्थ' में इसे स्नान करने के लिए कहा ( स्कंद. ३.१.२५ ) ।
वा
वत्सपाल -- (सू. इ. भविष्य.) एक राजा, जो भविष्य के अनुसार उरुक्षेप राजा का पुत्र था । वत्सनि भालंदन - एक वैदिक जो सामन्' नामक साम का द्रष्टा था . ९.६८।१० ४५-४६ से.सं. ७.२.१.६. सं. १९१२. सं. २० २.२, पं. बा. १२.११.२५५ श. बा. ६.४.४.१ ) । प्रज के दीर्घायुष्य के लिए, इस साम का पठन किया जाता है।
२. (सु. दिष्ट. ) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार मलंदन राजा का पुत्र था। भागवत में इसे 'वत्सप्रीति' कहा गया है, एवं इसके पुत्र का नाम प्रांशु बताया गया है। इसने कुजृंभ राक्षस का वध कर, विदूरथ राजा की कन्या