Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वसिष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
वसिष्ठ
सेवकों के द्वारा उसका वध किया (तै. सं. ७.४.७.१; मित्रावरुणों से उत्पन्न होने के कारण, इसे स्वयं का गोत्र • पं. वा. ४.७.३; ऋ. सर्वानुक्रमणी ७.३२)। नहीं था। इस कारण इसने पैजवन सुदास राजा के 'तृत्सु'
किंतु उपर्युक्त सारी कथाओं में, वसिष का सुदास राजा गोत्र को ही अपना लिया । इसी कारण, ऋग्वेद में इसे के साथ विरोध होने का निर्देश यहाँ भी प्राप्त नही अनेकबार 'तृसु' कहा है (ऋ. ७.६३.८)। यह एवं है । ऐतरेय ब्राह्मण में, वसिष्ठ को सुदास राजा का| इसके वंश के लोग दाहिनी ओर शिखा रखते थे। पुरोहित एवं अभिषेकका कहा गया है (ऐ. ब्रा. ७. ऋग्वेद में 'राक्षोघ्न' सूक्त नामक सूक्त के प्रणयन का श्रेय ३४.९)।
भी वसिष्ठ को दिया गया है (ऋ. ७.१०४)। इस सूक्त फिर भी सुदास राजा की मृत्यु के पश्चात् , विश्वामित्र में वसिष्ठ अपने पर गंदे आक्षेप करनेवाले लोगों को गालीपुनः एक बार सदास के वंशजों ( सौदासों ) का पुरोहित | गलौज दे रहा है, ऐसी इस सूक्त की कल्पना है। बृहबन गया (नि. २.२४; सां. श्री. २६.१२.१३)। देवता के अनुसार, इस सूक्त का संदर्भ वसिष्ठ-विश्वामित्र तत्पश्चात् अपने पुत्र के वध का प्रतिशोध लेने के लिए, के विरोध से जोड़ा गया है ( बृहहे. ६.२८-३४)। वसिष्ठ ने सौदासों को परास्त कर पुनः एक बार अपना तैत्तिरीय संहिता में प्राप्त ' एकोनपंचाशद्रात्रयाग' श्रेष्ठत्त्व स्थापित किया। .
का जनक वसिष्ठ माना गया है (तै. सं. ७.४.७.)। किंतु सौदासों के साथ वसिष्ठ का यह शत्रुत्त्व स्थायी उसी संहिता में प्राप्त 'स्तोमभाग' नामक मंत्रों का भी स्वरूप में न रहा । भरत राजकुल एवं राज्य का कुलपरंपग- | प्रवर्तक यही है ( तै. सं. ३.५.२)। गत पुरोहित पद वसिष्ठवंश में ही रहा, जिसके अनेकानेक आश्रम-विपाश नदी के किनारे वसिष्ठ का ' वसिष्ठनिर्देश ब्राह्मणग्रंथों में प्राप्त है (पं. बा. १५.४.२४; ते. शिला' नामक आश्रम था। इसका 'कृष्णशिला'
नामक अन्य एक आश्रम भी था, जहाँ इसने तपस्या की यज्ञकर्ता आचार्य--शतपथ ब्राह्मण में एक यज्ञकर्ता थी ( गो. ब्रा. १.२.८.) । इसी तपस्या के कारण, यह 'आचार्य के नाते वसिष्ठ का निर्देश अनेकबार प्राप्त है। पृथ्वी के समस्त लोगों का पुरोहित बन गया (गो. बा. यज्ञ के समय, यज्ञकर्ता पुरोहित ने 'ब्रह्मन् के रूप | १.२.१३)। में कार्य करना चाहिए,' यह सिद्धान्त वसिष्ठ के वैदिकोत्तर साहित्य में-वसिष्ठ एवं विश्वामित्र के द्वारा ही सर्वप्रथम प्रस्थापित किया गया। शुनःशेप विरोध की कथा वैदिकोत्तर साहित्य में भी प्राप्त है। के यज्ञ में वसिष्ठ ब्रह्मन् बना था (ऐ. ब्रा. ७.१६; सां. बृहद्देवता के अनुसार, वसिष्ठ वारुणि के सौ पुत्रों का श्री. १५.२१.४) । एक समय, केवल वसिष्ठगण ही सौदासस् ( सुदास) राजा ने वध किया, जिस कारण : ब्रह्मन् ' के रूप में कार्य करनेवाले पुरोहित थे, किन्तु क्रुद्ध हो कर, इसने उसे राक्षस बनने का शाप दिया बाद में अन्य सारे पुरोहितगण भी इस रूप में कार्य (बृहद्दे. ५.२८, ३३-३४) । लिंग के अनुसार, करने लगे (श. ब्रा. १२.६.१.४१)।
विश्वामित्र के द्वारा निर्माण किये गयें राक्षसों ने कल्माषकर्तत्व-बसिष्ट ने सुदास पैजवन राजा को सोम के | पाद सौदास राजा को घिरा लिया, एवं उसके द्वारा शक्ति विशेष सांप्रदाय की दीक्षा दी, जिस कारण सुदास को | आदि वसिष्ठ के सौ पुत्रों का वध किया । शक्ति की मृत्यु समस्त राजर्षियों में उँचा पद प्राप्त हुआ।
के पश्चात् उसकी पत्नी अदृश्यन्ती को पराशर नामक पुत्र एक बार यह तीन दिनों तक भूखा रहा । चौथे दिन उत्पन्न हुआ (लिंग. १.६३.८३)। किंतु पार्गिटर के अपनी क्षधा को शांत करने के लिए, इसने वरुण अनुसार, अयोध्या के कल्माषपाद सौदास के द्वारा मारे के भोजनगृह में घुसने का प्रयत्न किया । किन्तु रसोई गये कसिष्टपुत्रों का पिता वसिष्ठ मैत्रावरुणि न हो कर, घर के द्वार पर कुत्ते थे, जिन्होंने इसे अंदर जाने इससे काफी उत्तरकालीन वसिष्ठ श्रेष्ठभाज् नामक वसिष्ठको मना किया। उन रक्षक कुत्तों को सुलाने के लिए।
कुलोत्पन्न अन्य ऋषि था, एवं अयोध्या के सुदास राजा के इसने कुछ ऋचाएँ कही। ऋग्वेद की यही ऋचाएँ
| द्वारा वसिष्ठ मैत्रावरुणि के शक्ति नामक केवल एक ही 'निद्रासूक्त ' नाम से प्रसिद्ध है (ऋ. ७.५५) । ऋग्वेद पुत्र का वध हुआ था (पार्गि. २०९)। में प्राप्त सुविख्यात 'महामृत्युंजय' मंत्रों की रचना भी। पुराणों में-इन ग्रंथों के अनुसार, निमि राजा के द्वारा वसिष्ठ के द्वारा ही की गयी है (ऋ. ७.५९.१२)। शाप दिया जाने पर वायुरूप मे वसिष्ठ ब्रह्मा के पास गया,
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