Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
वात्स्यायन
प्राचीन चरित्रकोश
वानर
से हानी पहुँचती है। इसी कारण, मनुष्य जाति को काम | २. वाधूलवृत्तिरहस्य; ३. वाधूलगृह्यागमवृत्तिरहस्य; का सुयोग्य एवं प्रमाणित सेवन करने को सिखाना, यह | ४. वाधूलस्मृति । कामशास्त्र का प्रधान हेतु है । जनावरों के भय से कोई
| वाध्यश्व-सुमित्र नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का खेती करना नहीं छोड़ते है, उसी प्रकार कामविकार के
नामान्तर (ऋ. १०.६९.१)। वयश्व का पुत्र होने से डर से कामसेवन का त्याग करना उचित नहीं है ( का.
उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। सू. १.२.३८)।
२. अग्नि की एक उपाधि (ऋ. १०. ६९.)। श्रेष्ठत्व-स्त्री-पुरुषों का रतिसुख मानवी जीवन का
३. यमसभा का एक राजा (म. स. ८.१२)। साध्य नहीं, बल्कि यशस्वी विवाह का केवल साधनमात्र
वानर--दक्षिण भारत में निवास करनेवाला एक ही है, यह तत्त्वज्ञान आचार्य वात्स्यायन ने सर्वप्रथम
प्राचीन मानवजातिसमूह, जिसका अत्यंत गौरवपूर्ण उल्लेख प्रस्थापित किया । स्त्री-पुरुषों के रतिसुख पर ही केवल
वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है । जोर देनेवाले पाश्चात्य कामशास्त्रज्ञों की तुलना में, वात्स्या
___इन लोगों का राज्य किष्किंधा में था एवं वालिन् , यन का यह तत्त्वज्ञान कतिपय श्रेष्ठ प्रतीत होता है।
सुग्रीव एवं अंगद उनके राजा थे। वानरराज सुग्रीव का __किन्तु अपना यह तत्त्वज्ञान प्रसृत करते समय, विवाह
प्रमुख अमात्य हनुमत् था, जो आगे चल कर भारतीयों के यशस्वितता के लिए, स्त्री-पुरुषों का रतिसुख अत्यधिक
की प्रमुख देवता बन गया । सुग्रीव, हनुमत् आदि. वानरों आवश्यक है, यह तत्त्व वात्स्यायन के द्वारा दोहराया गया
की सहाय्यता से ही राम दाशरथि ने लंका के बलाढ्य है, जो आधुनिक शारीरशास्त्र की दृष्टि से सुयोग्य प्रतीत
राक्षस राजा रावण को परास्त किया ( राम दाशरथि होता है। इसी कारण, वात्स्यायन कामसूत्र के अंतर्गत
देखिये)। . रतिशास्त्रविषयक चर्चा भी क्रांतिदर्शी मानी जाती है ।
राज्य एवं समाजव्यवस्था--रामायण में निर्दिष्ट ____२. एक न्यायदर्शनकार, जो अक्षपाद गौतम नामक |
वानर, मनुष्यों की तरह बुद्धिसंपन्न हैं, मानवभाषा आचार्य के द्वारा लिखित 'न्यायसूत्र' का प्राचीनतम ।
बोलते हैं, कपड़े पहनते हैं, घरों में निवास करते हैं, भाष्यकार माना जाता है। इसके ग्रंथ पर उद्योतकर ने
विवाह संस्कार को मान्यता देते हैं, एवं राजा के शासन . 'न्यायवार्तिक' नामक सुविख्यात भाष्यग्रंथ की रचना
| के अधीन रहते है। इससे स्पष्ट है कि, रामायणकालं की है।
में ये लोग आज की तरह गिरे हुए जानवर नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के सुविख्यात विद्याकेंद्र कांची में यह
वास्तव में एक मानवजाति के लोग थे। निवास करता था। इसका काल ई. स. ४७० लगभग |
पुराणों में--इन ग्रंथों में वानरों को हरि नामांतर माना जाता है।
दिया गया है, एवं उन्हे पुलह एवं हरिभद्रा की संतान ३. पंचपर्ण नामक आचार्य का पैतृक नाम ( तै. आ.
बताया गया हैं। १.७.२)। 'वात्स्य' का वंशज होने से उसे यह पैतृक
ब्रह्मांड के अनुसार, पुलह ऋषि की कुल बारह पत्नियाँ नाम प्राप्त हुआ होगा। ४. एक ज्योतिषशास्त्रज्ञ (C.C.)।
थी, जो क्रोधा की कन्याएँ थी। उनके नाम निम्न थे:-- वात्स्यायनि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। १. हरिभद्रा; २. मृगी; ३. मृगमंदा; ४. इरावती; वाद--अमिताभदेवों में से एक (ब्रह्मांड. २.३६. |
५. भूता; ६. कपिशा; ७. दंष्ट्रा; ८. ऋषा, ९. तिया;
१०. श्वेता; ११. सरमा; १२. सुरसा (ब्रांड. ३.७. ५४)। वादुलि-विश्वामित्र के ब्रह्मवादी पुत्रों में से एक। । १७१-१७३)।
वाधल--एक कृष्णयजुर्वेदी आचार्य, जो श्रौतसूत्र | अपनी उपर्युक्त पत्नियों से पुलह को अनेकानेक आदि अनेकानेक ग्रंथों का रचयिता था। कल्पसूत्रों के | प्राणि पुत्र के रूप में प्राप्त हुए, जिनमें से हरिभद्रा की सुविख्यात भाष्यकार महादेव ने यजुर्वेदीय कल्पसूत्रों | संतति निम्नप्रकार थी:--वानर, गोलांगुल, नील, द्वीपिन . के आचायों में, इसका निर्देश बौधायन, हिरण्यकेशी, नील, मार्जार, तरक्षु, किन्नर । हरिभद्रा नामक माता से वैखानस आदि ग्रन्थकारों के साथ किया है। इसके नाम | उत्पन्न होने के कारण, वानरों को 'हरि' नामांतर पर निम्नलिखित ग्रन्थ प्राप्त हैं:-१. वाधूलश्रौतसूत्र; | प्राप्त हुआ।
८२२