Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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वसिष्ठ
प्राचीन चरित्रकोश
वसिष्ठ
मिताक्षरादि ग्रन्थों में वसिष्ठ के धर्मशास्त्र से उद्धरण | पराशर के द्वारा नही, बल्कि शंतनु राजा के समकालीन लिये गये हैं । उसी तरह बृहदारण्यकोपनिषद के शंकरा- किसी अन्य पराशर के द्वारा हुई होगी (पार्गि. पृ. २१३)। चार्यभाष्य में भी वसिष्ठ के धर्मसूत्र के बहुत से सूत्र जन्म--ऋग्वेद में वसिष्ठ ऋषि को वरुण एवं उर्वशी लिये गये हैं। वसिष्ठ ने अपने ग्रन्थों में वेद तथा संहिता | अप्सरा का पुत्र कहा गया है (ऋ.७.३३.११)। ऋग्वंद के से उद्धरण लिए हैं । निदानसूत्रों की मालविन द्वारा- इसी सूक्त में इसे मित्र एवं वरुण के पुत्र अर्थ से 'मैत्राविरचित एक गाथा भी वसिष्ठ ने अपने स्मृति में दी है । | वरुण' अथवा 'मैत्रावरुणि' कहा गया है। एक बार मित्र इसके अतिरिक्त मनु, हरीत, यम एवं गौतम आदि एवं वरुण ने उर्वशी अप्सरा को देखा, जिसे देखते ही धर्मशास्त्रप्रकारों के मत भी कई बार दिये गये हैं। उनका रेत स्खलित हुआ। उन्होंने उसे एक कुंभ में रख मनुस्मति तथा याज्ञवल्क्यस्मृति में वसिष्ठस्मृति का | दिया, जिससे आगे चल कर वसिष्ठ एवं अगस्त्य ऋषिओं उल्लेख प्राप्त है।
का जन्म हुआ (ऋ. ७.३३.१३)। इसी कारण, इन दोनों _ 'वृद्धवसिष्ठ' नामक अन्य एक ग्रंथ की रचना इसने | का कुभयानि' उपाधि प्राप्त हुइ, एवं उनक
को 'कुंभयोनि' उपाधि प्राप्त हुई, एवं उनके वंशजों को की थी, जिसका निर्देश विश्वरूप (१.१९.) एवं मिताक्षरा 'कुण्डिन्', 'कुण्डिनेय' एवं 'कौण्डिन्य' नाम प्राप्त (२.९१) में प्राप्त हैं। इसके 'ज्योतिर्वसिष्ठ' नामक |
हुए (ऋ. सर्वानुक्रमणी. १,१६६; नि. ५.१३ )। ऋग्वेद ग्रंथ के कुछ उद्धरण 'स्मृतिचंद्रिका' में लिये गये हैं। ।
में अन्यत्र वसिष्ठ का जन्म कुंभ में नहीं, बल्कि उर्वशी के __ ग्रन्थ--उपनिर्दिष्ट ग्रंथों के अतिरिक्त, इसके नाम पर
गर्भ से होने का निर्देश प्राप्त है (ऋ. ७.३३..१२)। निम्नलिखित ग्रंथ प्राप्त है:-१. वसिष्ठ-कल्प; २.वसिष्ठ
| पार्गिटर के अनुसार, 'मैत्रावरुण' वसिष्ट का पैतृक नाम तंत्र, ३. वसिष्ठपुराण, ४. वसिष्ठ लिंगपुराण, ५. वसिष्ठ- | न हो कर, उसका व्यक्तिनाम था, जो मित्रावरुण का ही शिक्षा, ६. वसिष्ठश्राद्धकल्प, ७. वसिष्ठसंहिता, ८. वसिष्ठ- अपभ्रष्ट रूप था (पार्गि. पृ. २१६; बृहद्दे. ४.८२.)। इसी होमप्रकार (C.C.)
कारण, वसिष्ठ के 'मैत्रावरुण'पैतृक नाम का स्पष्टीकरण देने के
लिए, इसकी जो जन्मकथा ऋग्वेद में प्राप्त है, वह कल्पनावसिष्ठ मैत्रावरुणि--एक ऋषि, जो उत्तरपांचाल के |
रम्य प्रतीत होती है । वसिष्ठ मित्रावरुण का पुत्र कैसे हुआ सुविख्यात सम्राट् पैजवन सुदास राजा का पुरोहित था।
इसके संबंध में, अपनी पूर्वजन्म में इसने विदेह के निमि वैदिक परंपरा के सर्वाधिक प्रसिद्ध पुरोहित में से यह
राजा के साथ किये संघर्ष की जो कथा बृहद्देवता एवं एक माना जाता है। ऋग्वेद के सातघे मंडल के प्रणयन |
पुराणों मे प्राप्त है,वह भी कल्पनारम्य है (बृहदे.५.१५६; का श्रेय इसे दिया गया है (ऋ. ७.१८.३३)।
| मत्स्य. २०१.१७-२२; निमि विदेह देखिये)। ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी में, ऋग्वेद के नवम मंडलांगत विश्वामित्र से विरोध-वसिष्ठ ऋषि का विश्वामित्र के सत्तानवे सूक्त के प्रणयन का श्रेय भी वसिष्ठ एवं उसके प्रति विरोध का स्पष्ट निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है । वसिष्ठ वंशजों को दिया गया है । इस ग्रंथ के अनुसार, इस सूक्त ऋषि के पूर्व सुदास का पुरोहित विश्वामित्र था (ऋ. ३. की पहली तीन ऋचाओं का प्रणयन स्वयं वसिष्ठ ने किया,
३३.५३) । किन्तु उसके इस पदं से भ्रष्ट होने के पश्चात् , एव इस सूक्त के चार स तास तक का ऋचाओं का वसिष्ठ भरत राजवंश का एवं सुदास राजा का पुरोहित बन प्रणयन, वसिष्ठ ऋषि के कुल में उत्पन्न निम्नलिखित नौ गया। तदोपरान्त विश्वामित्र ऋषि सुदास के शत्रपक्ष में वसिष्ठों के द्वारा किया गया थाः-इंद्रप्रमति-ऋचा ४-६; शामिल हुआ, एवं उसने सुदास के विरुद्ध दाशराज्ञ युद्ध वृषगण-ऋचा ७-९; मन्यु-ऋचा १०-१२, उपमन्यु- में भाग लिया था। ऋचा १३-१५, व्याघ्रपाद--ऋचा १६-१८; शक्ति-- गेल्डनर के अनुसार, ऋग्वेद में वसिष्ठ एवं विश्वामित्र ऋचा १९-२१; कर्णश्रुत-ऋचा २२-२३; मृलीक-- के शत्रत्व का नहीं, बल्कि वसिष्ठपुत्र शक्ति के साथ हुए . ऋचा २५--२७; वसुक्र--ऋचा २८-३०। विश्वामित्र के संघर्ष का निर्देश प्राप्त है । ऋग्वेद के तृतीय
इस सूक्त में से ३१-४४ ऋचाओं की रचना | मंडल में 'वसिष्ठ द्वेषिण्यः' नामक वसिष्ठविरोधी मंत्र पराशर शाक्य (शक्ति पुत्र) के द्वारा की गई थी, जो | प्राप्त है, जो वसिष्ठपुत्र शक्ति को ही संकेत कर रचायें वयं वसिष्ठपुत्र शक्ति का ही पुत्र था । किन्तु पार्गिटर के | गये थे (ऋ. ३.५३.२१-२४)। कालोपरांत शक्ति से अनुसार, इन अंतिम ऋचाओं की रचना वसिष्ठकुलोत्पन्न | प्रतिशोध लेने के लिए, विश्वामित्र ने सुदास राजा के