Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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लोमश
प्राचीन चरित्रकोश
लोहगंध
अगस्त्यचरित्र (म. व. ९६-९९); भगीरथचरित्र | उत्तर में सत्रह मील पर स्थित तिमाणाग्राम में उपर्या नामक (म. व. १०६-१०९); ऋश्यशंगचरित्र (म. व. ११० शिवमंदिर एवं लोमश ऋषि का आश्रम प्राप्त है; २. पंजाब -११३ ); च्यवनकन्या सुकन्या का चरित्र (म. व. | में स्थित ज्वालामुखी ग्राम से पचपन मील पर स्थित १२१-१२५); मांधातृचरित्र (म. व. १२६-१२७)। रिवालसर (रेवासर ) ग्राम में लोमश आश्रम सुविख्यात है।
वरप्रदान-लोमश ने दुर्दम राजा को देवी भागवत | इसके अतिरिक्त गया जिले में स्थित बराबर पहाड़ी का पाठ पाँच बार पढ़ कर सुनाया था, जिस कारण उसे | मैं दशरथ राजा के द्वारा खोदी गई एक गुफा 'लोमश पाँचवे मन्वन्तर के अधिपति रैवत नामक पुत्र की प्राप्ति | गुफा' नाम से प्रसिद्ध है। हुई थी ( दे. भा. महात्म्य. ५) पिशाचयोनि में प्रविष्ट | २. रावणपक्षीय एक राक्षस (वा. रा. सु. ६)। हुए सुशाला, सुस्वरा, सुतारा एवं चंद्रिका आदि गंधर्व- लोमहर्षण--पुराणों का आद्य कथनकर्ता रोमहर्षण कन्याओं का, एवं वेद निधि नामक ऋषिपुत्र का इसने | 'सूत' का नामांतर (रोमहर्षण देखिये)। नर्मदास्तान का उपदेश का उद्धार किया था (पद्म. सु. लोमायन--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ब्रह्मांड २३)।
| में निर्दिष्ट व्यास के शिष्यपरंपरा में इसका निर्देश प्राप्त है। ग्रंथ---इसके नाम पर 'लोमशसंहिता' एवं 'लोमश- | लोल--सिद्धवीर्य ऋषि का पुत्र । अपने अगले जन्म शिक्षा' नामक दो ग्रंथ उपलब्ध है (C.C.)। उनमें से | में, इसने उत्पलावती नामक रानी के उदर में तामस मनु लोमशशिक्षा सामवेद का शिक्षा ग्रंथ है, जो आठ खण्डों के रूप में जन्म लिया (मार्क. ७१, तामस देखिये)। में विभाजित है। इस ग्रंथ के पहले ही श्लोक में इसका लोलजि--एक राक्षस, जो धर्मारण्य जलाने के लिए गर्गाचार्य के साथ निर्देश प्राप्त है, जिसका संदर्भ ठीक | प्रवृत्त हुआ था। इस कारण विष्णु ने इसका वध किया प्रकार से ध्यान में नहीं आता है।
(स्कंद ३.२.११)। कश्यपसंहिता में प्राप्त ज्योतिषशास्त्र के प्रवर्तक लोला--मधु नामक राक्षस की माता (वा. रा. उ. अठारह महर्षियों में, लोमश ऋषि का निर्देश प्राप्त है।। ६१.३)। उन आचार्यों के द्वारा सिद्धान्त, होरा एवं संहिता इन | लोलाक्षि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। तीन स्कंदों में विभाजित ज्योतिषशास्त्र की रचना किये लोह-एक.असुर, जिसके नाम से लोहतीर्थ नामक जाने का निर्देश वहाँ प्राप्त है।
एक तीर्थ प्रचलित हुआ (स्कंद. ३.२.२९)। लोमशकथित रामकथा--पद्म में प्राप्त रामकथा का २. एक असुर । अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने अपने वक्ता लोमश ऋपि बताया गया है (पन. पा. ३६)।| शस्त्र नीचे रख दिये । यही सुअवसर पा का इसने उन महाभारत में प्राप्त परशुराम के तेजोभंग के आख्यान | पर आक्रमण किया, किन्तु देवताओं ने इसे अंधा बन का वक्ता लोमश ही है (म. अनु, ३५१)।
कर पाण्डवों की रक्षा की। उस स्थान को लोहणपुर कहते __लोमश के नाम पर लोमशरामायण' नामक एक ग्रंथ है। ( स्कंद. १.२.६५)।
भी उपलब्ध है, जिसमें बैतीस हज़ार श्लोक हैं । उस ग्रंथ ३. एक लोकसमूह, जिसे अर्जुन ने उत्तर दिग्विजय में राजा कुमुद एवं वीरमती के द्वारा दशरथ एवं कौसल्या के समय जीता था (म. स. २४.२४)। . के रूप में जन्म लेने की कथा प्राप्त है, एवं जालंधर के लोहगंध--गार्ग्यकुलोत्पन्न एक ऋषि, जिसका जनमेशाप के कारण रामावतार होने का आख्यान भी वहाँ | जय पारिक्षित (प्रथम) राजा ने वध किया था । इस दिया गया है।
ब्रह्महत्या के कारण, लोगों ने जनमेजय पारिक्षित को तुलसी के द्वारा विरचित 'रामचरितमानस' में भी राज्यभ्रष्ट कर, उसे हद्दपार किया (वायु. ९३.२०भशाण्डि ऋषि को लोमश के द्वारा रामकथा प्राप्त होने का | २६)। इस पाप से छुटकारा पाने के लिए जनमेय राजा निर्देश है ( मानस. उ. ११३)। रसिक सांप्रदाय में भी | ने 'इंद्रोत शौनक' नामक आचार्य के द्वारा एक अश्वमेध एक 'लोमशसंहिता' प्रचलित है, जिसमें इसका एवं पिप्प- | यज्ञ किया (जनमेजय पारिक्षित १. देखिये)। लाद ऋषि का एक संवाद प्राप्त है।
कई अभ्यासकों के अनुसार, 'गार्ग्य' लोहगंध की भाश्रम-लोमश ऋषि के आश्रम निम्नलिखित दो स्थानों | उपाधि न हो कर जनमेजय (प्रथम) की उपाधि में दिखायें जाते हैं:-- १. राजस्थान में बुंदी शहर के | थी, जो उसके शरीर से आनेवाली दुर्गंधी के कारण उसे
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