Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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लिखित
प्राचीन चरित्रकोश
लुशाकपि
इस प्रकार राजा के द्वारा बेगुनाह साबित होने पर | २. रत्न नगरी के मयूरध्वज राजा की पत्नी । इसे भी, इसने आत्मग्लानि को वशीभूत हो कर, खुद के दोनों | कुमुद्वती नामांतर भी प्राप्त था । इसके पुत्र का नाम हाथ कटवाये । पश्चात् यह नदी पर स्नान करने के लिए | ताम्रध्वज था। गया, जहाँ शंख ऋषि के तपोबल से इसके दोनों हाथ इसे | ३. साधु वैश्य की पत्नी, जिसका जीवनचरित्र 'सत्यपुनः प्राप्त हुए (म. शां. २४; अनु. १३७.१९)। । नारायण माहात्म्य' की कथा में प्राप्त है (सत्यनारायण
यह एवं इसके भाई शंख के द्वारा लिखित 'शंख | ३)। सत्यनारायण व्रत की पूर्ति न करने के कारण, स्मृति' नामक एक स्मृतिग्रंथ उपलब्ध है (शंख ६. | इसे अनेकानेक कष्ट सहने पड़े। देखिये)।
४. वीर राजा की कन्या, जिसका अविक्षित् राजा ने २. चंपकापुरी के हंसध्वज राजा का एक दुष्टकर्मा
म हरण किया था (मार्क. ११९.१७)। पुरोहित । इसे शंख नामक एक भाई था, जो इसीके ही ५. एक वेश्या, जिसका राधाष्टमी का व्रत करने के समान हंसध्वज राजा का पुरोहित था, एवं इसीके ही | कारण उद्धार हुआ था (पा. ब्र. ७)। समान दुष्टबुद्धि था।
६. एक वेश्या, जिसने पुष्करक्षेत्र में चतुर्दशी के दिन पाण्डवों का अश्वमेधीय अश्व हंसध्वज राजा के द्वारा ।
लवणाचल एवं सुवर्णवृक्ष की पूजा कर, उन्हें ब्राह्मणों को रोक गया, जिस कारण उसका अर्जुन के साथ युद्ध हुआ।
दान में दिया था। इस पुण्यकर्म के कारण, मृत्यु की पश्चात्
इसे शिवलोक की प्राप्ति हुई (पद्म. स. २१)। उस समय हंसध्वज राजा ने अपने सैन्य को ऐसी आज्ञा दी कि, हरएक सैनिक सूर्योदय पूर्व सैन्यसंचलन के लिए
लुब्ध--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । उपस्थित हो, एवं जो इस आज्ञा का भंग करेगा उसे उबलते
लंपक--चंपावती नगरी के माहिष्मत राजा के पाँच तेल में डाला दिया जाए।
पुत्रों में से एक । 'सफला एकादशी का व्रत करने के
कारण इसे मुक्ति प्राप्त हुई (पद्म. उ. ४०)। दूसरे दिन हंसध्वज राजा के पुत्र सुधन्वन् को ही | संचलन के लिए आने में देर हुई, एवं राजा के आज्ञा- | लुश धानाक--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.३५ - नुसार सजा भुगतने की आपत्ति आई। अपने पुत्र को ३६; ३८)। इंद्र की कृपा प्राप्त करने में इसका एवं इतनी कडी सजा देने में राजा का मन हिचकिचाने लगा। कुत्स ऋषि का हमेशा द्वंद्व चलता था, जिसके अनेकानेक किन्तु इस दुष्टबुद्धि पुरोहित ने राजा को इस कार्य करने | निदश ऋग्वेद एवं ब्राह्मण ग्रंथों में प्राप्त है। पर विवश किया।
एक बार इसने एवं कुत्स ने एक ही समय पर इंद्र फिर राजा की आज्ञानुसार, सुधन्वन् को उबलते तेल में | को निमंत्रण दिया। पूर्वस्नेह के कारण. इंटर डाला गया, किन्तु वह सुरक्षित ही रहा । फिर तेल बराबर |
पास गया। उस समय अपना आदरातिथ्य छोड़ कर. उबला नहीं है, इस आशंका से इसने एक नारियल तेल | इंद्र लुश के पास जाएगा इस आशंका से कुत्स ने उसे में छोड़ दिया। तत्काल उस नारियल के दो ट्रकडे हो कर, चमडी के सो रस्सियों से बाँध रखा। किन्तु उसी अवस्था उनके द्वारा यह एवं उसके भाई शंख का कालमोक्ष
| में अपने पास आने के लिए लुश के द्वारा इंद्र की प्रार्थना हुआ (जै. अ. १७)
की गई । (ऋ. १०.३८.५. मं. बा. ९.२.२२, जै. ब्रा. लिंबुकि--नाकुलि नामक भृगुकुलोत्पन्न गोत्रकार का | १.१२८)।। नामान्तर।
लुशाकपि खार्गलि--एक आचार्य, जो केशिन् दाल्भ्य लील-सारस्वत नगरी के वीरवर्मन् राजा का पुत्र । | नामक आचार्य का समकालीन था (क. सं. ३०.२)।
लीला--पद्मराज की पत्नी, जिसने अपने पति की | खगल का वंशज होने के कारण, इसे 'खार्गलि' पैतक नाम मृत्यु के पश्चात् सरस्वती की कृपा से उसे पुनः प्राप्त किया | प्राप्त हुआ था। (यो. वा. ३.१५-४९)।
कुषीतक सामश्रवस नामक आचार्य ने शमनीचमेद लीलाढ्य--विश्वामित्र ऋषि के ब्रह्मवादी पुत्रों में से | नामक व्रात्य लोगों का आचार्यत्व का स्वीकार किया, जिस एक (म. अनु. ४.५३)।
कारण इसने उसे एवं उसके कौषीतकी नामक अनुलीलावती--कोसल देश के ध्रुवसंधि राजा के दो | गामियों को भ्रष्ट होने का शाप दिया (पं. बा. १७.४.३; पत्नियों में से एक । इसके पुत्र का नाम शत्रुजित् था। कुषीतक सामश्रवस देखिये)।
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