Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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लांगलिन्
प्राचीन चरित्रकोश
लिखित
लांगलिन्-इक्ष्वाकुवंशीय पुष्कल राजा का नामान्तर। लातव्य-कुशांब स्वायव नामक आचार्य का पैतृक भागवत में इसे शुद्धोद राजा का पुत्र कहा गया है (पुष्कल | नाम (पं. बा. ८.६.८)। लतु का वंशज होने से उसे २. देखिये)।
यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। लांगलिन् भीम---एक शिवावतार, जो वाराह
२. एक गोत्रनाम । इंद्र के द्वारा ओंकार के संबंधी कल्पान्तर्गत वैवस्वत मन्वन्तर के बाईसवें युगचक्र में उत्पन्न | जानकारी पूछी जाने पर, प्रजापति ने ओंकार का गोत्र हुआ था। कई पुराणों में इसका नाम 'लांगुलिन् ' प्राप्त 'लातव्य' बताया था (गो. ब्रा. १.१.३५)। है, किन्तु अढाइसवें युगचक्र में उत्पन्न हुए लकुलिन् | लामकायन-एक आचार्य, जो यज्ञकर्म से संबंधित नामक शिवावतार से यह विभिन्न है ।
समस्याओं का ज्येष्ठ अधिकारी व्यक्ति माना जाता था 'यह शिवावतार हाथ में हल ले कर उत्पन्न हुआ था,
(ला. श्री. ४.९.२२; द्रा. श्री. ४.३८.४; नि. सू. एवं इसके भल्लविन , मधु, पिंग एवं श्वेतकेतु नामक चार
३.१२.१३)। वंश ब्राह्मण में संवर्गजित् नामक आचार्य शिष्य थे (शिव. शत. ५)।
का पैतृक नाम 'लामकायन' बताया गया है (वं. बा. २,
संवर्गजित् देखिये) । लमक का वंशज होने से इसे यह लाट--एक क्षत्रिय जाति, जो ब्राह्मणों के साथ ईर्ष्या
नाम प्राप्त हुआ होगा। रखने से नीच बन गई।
लालवि-एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा का एक अशोक के शिलालेखो में इन लोगों का निर्देश 'लाटिक'
पुत्र था। नाम से प्राप्त है। ये लोग पश्चिम भारत में सुराष्ट्र के दक्षिण |
लालाटि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। में रहते थे।
लालावि-एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा का . लाट्यायन--एक आचार्य, जो सामवेद के पंचविंश | पत्र था। ब्राह्मण पर आधारित 'लाट्यायन श्रौतसूत्र' नामक ग्रंथ का
लावकि-विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। कर्ता माना जाता है । यह ग्रंथ सामवेदान्तर्गत कौथुमीय
लावकृत-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । शाखा का श्रौतसूत्र माना जाता है । वेबर के अनुसार, |
लावण्यवती-रथन्तर कल्प के पुष्पवाहन राजा की लाट्यायन, शाट्यायन एवं शालंकायन ये सारे आचार्य
कन्या (पन. सृ. २०)। . पश्चिम भारत के निवासी थे (वेबर, हिस्टरी ऑफ इंडियन
लाह्यायन अथवा लाह्यायनि--भुज्यु नामक आचार्य लिटरेचर, पृ. ७७)।
का पैतृक नाम (बृ. उ. ३.३.१.२.)। लह्य का वंशज लाट्यायन श्रौतसूत्र-इस ग्रंथ के कुल दस प्रपाठक | होने से उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा। (अध्याय) हैं। उनमें से पहले सात प्रपाठकों में | लिखित-एक मुनि, जो जैगीष्यव्य के दो पुत्रों में सोमयज्ञों की; आठवे एवं नववे प्रपाठक के पूर्वार्ध में से एक था। इसकी माता का नाम एकपर्णा, एवं भाई का विभिन्न 'एकाह' यज्ञों की; नववे प्रपाठक के उत्तरार्ध | नाम शंख था (ब्रह्मांड. ३.१०.२१)। में 'अहीन' यज्ञों की; एवं दसवे प्रपाठक में 'सत्र'। यह बाहुदा नदी के तट पर आश्रम बना कर रहता यज्ञों की जानकारी प्राप्त हैं । वेबर के अनुसार, इस ग्रंथ | था, जहाँ निकट ही इसके भाई शंख का भी आश्रम था। का रचनाकाल अन्य वेदों के श्रौतसूत्रों से काफ़ी पूर्व- | एक बार शंख के अनुपस्थिति में यह उसके आश्रम में कालीन था । इस ग्रंथ पर उपलब्ध भाष्यों मे अग्निस्वामिन् | गया, एवं बिना पूछे ही आश्रम में से कुछ फल खाने का भाष्य विशेष सुविख्यात है।
| लगा । इतने में शंख वहाँ उपस्थित हुआ, एवं इस पर पूर्वाचार्य-' लाट्यायन श्रौतसूत्र' में निम्नलिखित | चोरी का आरोप लगा कर, उसने इसे राजा के पास से पूर्वाचार्यों का निर्देश प्राप्त हैं :- स्थविर गौतम, | इस अपराध की सज़ा लेने के लिए कहा। शौचिवृक्षि, क्षैरकलंभि, कौत्स, वार्षगण्य, भाण्डिता- तदोपरांत, यह सुद्युम्न राजा के पास गया, एवं यन, लामकायन, राणायनीपुत्र, तथा शाट्याय नि एवं अपना अपराध उसे बता कर उसकी सजा पूछने लगा। शालंकाय नि परंपरा के विविध आचार्य । इनमें से फिर राजा ने इससे कहा, 'तुमने स्वयं अपना अपराध शौचिवृक्षि आचार्य का निर्देश पाणिनि के अष्टाध्यायी में । | कबूल किया है। इसलिए तुम्हे सज़ा देने की कोई भी प्राप्त है (पा. सू. ४.१.८१)।
ज़रूरत नहीं है। ७८६