Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
रुद्र का नाम पनी
संतान .
निवासस्थान
बन गये हैं, जिनमें से दस वायु के नाम निम्न हैं:-- | प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त एवं धनंजय।
३. भागवत में--इस ग्रंथ में ग्यारह रुद्रों के नाम, उनकी पत्नियाँ, एवं निवासस्थान दिये गये हैं, जो निम्न प्रकार है:--
सुवर्चला अथवा सती
शनैश्चर
सूर्य
| भव
उमा (उषा)
शुक्र
रुद्र का नाम
पत्नी
निवास्थान
अर्व (शिव) विकेशी
मंगल
मही
मन्यु
पशुपति शिवा मनोजव ।
हृदय मनु
वृत्ति भीम वाहा (स्वधा)
इंद्रिय स्कंद . अग्नि
सहिनस (सोम) उशना असु महत् .
उमा
व्योम ईशान दिशा .. स्वर्ग
आकाश शिव
नियुता वायु ऋत्तध्वज
सर्पि
अग्नि । उग्र दीक्षा संतान यज्ञीय ब्राह्मण उग्ररेतस्
इला भव
अंबिका
मही महादेव रोहिणी बुध चंद्र काल
इरावती वामदेव
सुधा कालिदास के शाकुन्तल की नांदी में, अष्टमूर्ति
सृतध्वज
दीक्षा
तप शिव का निर्देश है, जहाँ उपर्युक्त तालिका में दिये गये रुद्र के निवासस्थानों को ही 'अष्टमूर्ति' कहा गया हैं :--
(भा. २.१२.७-१८)। जल, वह्नि, सूर्य, चंद्र, आकाश, वायु, पृथ्वी (अवनी) विभिन्न पुराणों में-उपर्युक्त ग्रंथों के अतिरिक्त अन्य एवं यज्ञकर्ता (शा. १.१)।
पुराणों में प्राप्त एकादश रुद्र के नाम एवं उनके संभव- एकादश रुद्र-महाभारत एवं पुराणों में प्रायः सर्वत्र | नीय पाठभेद निम्न प्रकार है :-- १. अजैकपात् (अज. रुद्रों की संख्या एकादश बतायी गयी हैं, एवं उनकी | एकपात, अपात् ); २. अहिर्बुध्न्य; ३. ईश्वर (सुरेश्वर, उत्पत्ति ब्रह्मा के शरीर से उत्पन्न एक ही आद्य रुद्र से
विश्वेश्वर, अपराजित, शास्तृ, त्वष्ट); ४. कपालिन् ; होने का कथा बताई गयी है। किन्तु इन ग्रंथों में प्राप्त । ५. कपर्दिन् । ६. त्र्यंबक (दहन, दमन, उग्र, चण्ड, महाएकादश रुद्रों की नामावलि एक दूसरी से मेल नहीं
तेजस् , विलोहित, हवन), ७. बहुरूप (निंदित, निऋति खाती है। इनमें से प्रमुख ग्रंथों में प्राप्त नामावलियाँ निम्न
महेश्वर), ८. पिनाकिन् (भीम); ९. मृगव्याध ( रैवत, प्रकार है :
परंतप); १०. वृषाकपि (विरूपाक्ष, भग); ११. स्थाणु १. महाभारत-मृगव्याध, शर्व, निक्रति, अजैकपात्,
(शंभु, रुद्र, जयंत, महत् , अयोनिज, हर, भव, शर्व, अहिर्बुध्न्य, पिनाकिन् , दहन, ईश्वर, कपालिन्, स्थाणु,
| ऋत, सर्वसंज्ञ, संध्य एवं सर्प)। एवं भव (म. आ. ५०.१-३)।
| जन्म की कथाएँ--रुद्र के जन्म के संबंधी विभिन्न २. स्कन्द पुराण में--- भूतेश, नीलरुद्र, कालिन्, | कथाएँ पुराणों में प्राप्त है। सृष्टि के विस्तार का कार्य वृषवाहन, त्र्यंबक, महाकाल, भैरव, मृत्युंजय, कामेश, | ब्रह्मा के सनंदन आदि प्रजापतिपुत्रों पर सौंपा गया एवं योगेश (स्कंद. ७.१.८७ ) । इस पुराण के अनुसार, | था। किंतु वह काम उनके द्वारा यथावत् न किये जाने कृतयुग में अष्ट रुद्र उत्पन्न हुयें, एवं कलियुग में ग्यारह | पर ब्रह्मा क्रुद्ध हुआ, एवं अपनी भ्रुकुटि उसने वक्र की। रुद्रों का अवतार हुआ, जिनकी नामावलि यहाँ दी गयी ब्रह्मा के उस वक्र किये भृकुटि से ही रुद्र का जन्म हुआ है । ये ग्यारह रुद्र, दस वायु एवं एक आत्मा मिल कर | (विष्णु. १.७.१०-११)। पम एवं भागवत में भी इसे
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