Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
प्राचीन चरित्रकोश
डॉ. भांडारकरजी के अनुसार, रुद्र-शिव सर्वप्रथम | स्वरूप से मिलता जुलता है (म. अनु. १४.१६२, वैदिक देवता था, किन्तु आगे चल कर, वह व्रात्य, | १६५, ३२८; १७.४६; ७७; ९९)। इन सिक्कों के निषाद आदि वन्य एवं अनार्य लोगों का भी देक्ता बन | आधार पर, सर जॉन मार्शल के द्वारा यह अनुमान व्यक्त गया। उन लोगों के कारण रुद्र-शिव के संबंधी | किया गया है कि, ई. पू. ३००० कालीन सिन्धुघाटी प्राचीन वैदिक आर्यों के द्वारा प्रस्थापित की गयी सभ्यता में शिव के सदृश कई देवताओं की पूजा अस्तित्व कल्पनाओं में पर्याप्त फर्क किये गये, एवं भूतपति, सर्प- में थी। धारण करनेवाला, स्मशान में रहनेवाला एक नया देवता मुँहेंजोदड़ो में प्राप्त देवता के बाये बाजू में व्याघ्र एवं का निर्माण हुआ। रुद्र के इस नये रूपान्तर के साथ हाथी है, एवं दाये बाजू में बैल एवं गण्डक हैं । यह चित्र ही साथ उसके प्रतिकृति की उपासना करने की पुरातन | महाभारत में प्राप्त शिव के वर्णन से मिलता जुलता है, परंपरा नष्ट हो गयी, एवं उसका स्थान शिवलिंग की जहाँ इसे 'पशुपति', 'शार्दूलरूप', 'व्यालरूप', उपासना करनेवाली नयी परंपरा ने ले लिया। 'मृगबाणरूप', 'नागचर्मोत्तरच्छद', 'व्याघ्राजीन', __ अन्य कई अभ्यासकों के अनुसार, अनार्य लोगों से | 'महिषघ्न', 'गजहा' एवं 'मण्डलिन्', तथा इसकी पूजित रुद्रदेवता, वैदिक रुद्र देवता से काफी पूर्व पत्नी दुर्गा को 'गण्डिनी' कहा गया है (म. अनु. १४. कालीन है, एवं इन्हीं रुद्रपूजक लोगों का निर्देश ऋग्वेद में | ३१३; १७.४८; ६१, ८५, ९१)। यज्ञविरोधी, शिश्नपूजक अनार्य लोगों के रूप में किया गया पश्चिम एशिया में- इस प्रकार महाभारत में प्राप्त है। अनार्य लोगों के इस मद्यमांसभक्षक, भूतों से शिववर्णन में एवं मुँहेंजोदडो में प्राप्त त्रिशिर देवता में वेष्टित, एवं अत्यंत क्रूरकर्मा तामस देवता को वैदिक रुद्र काफ़ी साम्य दिखाई देता है। किन्तु शिव का प्रमुख देवता से सम्मीलित कर, उसके उदात्तीकरण का एक महान् | विशिष्टता जो वृषभ, वह मुँहेंजोदड़ो में प्राप्त सिक्कों में प्रयोग वैदिक आर्यों के द्वारा किया गया। इस प्रयोग नही दिखाई देता है । महाभारत में शिव को सर्वत्र 'वृषभके कारण, रुद्र देवता अपने नये रूप में जनमानस की वाह' एवं 'वृषभवाहन' कहा गया है (म. अनु. १४.२९९; एक अत्यंत लोकप्रिय देवता बन गई, एवं उसके अनार्य ३९०)। इस विशिष्ट दृष्टि से ई. पू. २००० में वन्य एवं अंत्यज भक्तों के भक्ति का भी एक नया उदात्ती- पश्चिम एशिया में हिटाइट लोगों के द्वारा पूजित तेशत्र करण हो गया। अनार्यों के इस देवता के तामस स्वरूप देवता से शिव का काफ़ी साम्य दिखाई देता है। बाबिको उदारता का, शक्ति का एवं तपश्चरण का एक नया | लोनिया में प्राप्त अनेक शिल्पों में एवं अवशेषों में तेशब पहलु वैदिक आर्यों के द्वारा प्रदान किया गया। श्वेताश्वतर | देवता की प्रतिमा दिखाई देती है, जहाँ उसे वृषभवाहन जैसे उपनिषदों ने तो रुद्र-शिव को समस्त सृष्टि का नियंता एवं त्रिशुलधारी बताया गया है। उसकी पत्नी का नाम माँ एवं परब्रह्म प्राप्ति करानेवाला परमेश्वर बना दिया। यह था, जिसकी जगन्माता मान कर पूजा की जाती थी। उदात्तीकरण का कार्य करते समय, अनार्य रुद्र देवता के कुछ | वैदिक एवं पौराणिक वामय में निर्दिष्ट रुद्र में एवं तामस पहलु वैदिक रुद्र देवता में आ ही गये, जिनमें से | तेशब देवता में काफी साम्य है। तेशब से समान रुद्रशिवलिंगगोपासना एवं लिंगपूजा एक है।
शिव हाथ में विद्युत्, धनुष (धन्वी, पिनाकिन् ), त्रिशूल मुंहेंजोदड़ो में-शिव की अत्यधिक प्राचीन प्रतिकृति | (शूल), दंण्ड, परशु, पट्टीश आदि अस्त्र धारण करता है मुँहेंजोदड़ो एवं हड़प्पा के उत्खनन में प्राप्त हुए सिन्धु । (ऋ.२.३३.३; म. अनु. १४.२८८ २८९; १७,४३; सभ्यता के खंडहरों में दिखाई देती हैं। इस उल्खनन में | ४४, ९९)। तेशत्र के समान रुद्रशिव भी अंबिका का शिवस्वरूप से मिलते जुलते देवता के कई सिक्के | पति है, जिसे पार्वती, देवी एवं उमा कहा गया है (म. प्राप्त है, जहाँ तीन मुखवाले एक देवता की प्रतिमा | व. ७८.५७; अनु. १४.३८४, ४२७)। तेशब देवता की चित्रांकित की गई है। यह देवता योगासन में बैठी है, एवं | पत्नी सिंहारूढ वर्णित है, जो सिंहवाहिनी देवी दुर्गा से उसके शरीर के निचला भाग विवस्त्र है। मुँहेंजोदड़ो के | साम्य रखती है (मार्क. ४.२)। सुसा में प्राप्त तेशव इस देवता का स्वरूप महाभारत में वर्णित किये गए शिव | देवता के पत्नी का चित्रण-प्रायः मधुमक्षिका के साथ किया के 'त्रिशीर्ष' (चतुर्मुख), 'विवस्त्र' (दिग्वासस् ), | गया है, जो मार्कंडेय में निर्दिष्ट 'भ्रामरीदेवी' से 'ऊर्ध्वलिंग' (ऊर्ध्वरेतस् ), 'योगाध्यक्ष' (योगेश्वर), | साम्य रखता है (मार्क, ८८,५०; दे. भा. १०.१३)।
७६२