Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रेणुका
प्राचीन चरित्रकोश
दिये गये हैं ( रेणू. १३)। कलिका पुराण में 'रुमण्वत्' २. भरद्वाज ऋषि की बहन, जो उसने अपने कठ नामक के ददले 'मरुत्वत् ' नाम प्राप्त है (कालि. ८६ )। शिष्य को विवाह में दी थी (ब्रह्म. १२१)। रेणुमती--नकुलपत्नी करेणुमती का नामान्तर ।
३. मित्र नामक आदित्य की पत्नी (भा. ६.१८. रेपलेद्र-एक राक्षस, जिसका घटोत्कचपुत्र बर्बरिक | ६)। के द्वारा वध हुआ था।
___४. रैवत नामक पाँचवे मन्वन्तर के अधिपति रैवत
| राजा की माता । इसकी जन्मकथा मार्कंडेय पुराण में प्राप्त रेभ--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा, जो अवत्सार काश्यप |
| है, जो निम्नप्रकार है:नामक आचार्य के पुत्रों में से एक था (ऋ. ८.९७)।
ऋतवाच् नामक एक सच्छील मुनि था, जिसे रेवती ' यह अश्वियों के कृपापात्र व्यक्तियों में से एक था।
नक्षत्र के अवसर पर एक दुःशील पुत्र उत्पन्न हुआ। यह एक बार असुरों के इसे बाँध कर कुए में डाल दिया, जहाँ
दुर्घटना रेवती नक्षत्र के प्रभाव से हो हुई है, यह गर्ग ऋषि इसे नौ दिन एवं दस रात्रियों तक भूखा एवं प्यासा रहना
से ज्ञान होते ही, ऋतवाच ऋषि ने रेवती नक्षत्र को शाप पड़ा (ऋ. १.११२.५)। तदोपरान्त अश्वियों ने इसकी
दिया, एवं उसे नीचे गिरा दिया। मुक्तता की (ऋ. १.११६.२४; ११७.४)।
रेवती नक्षत्र के पतन के स्थान पर एक सरोवर निर्माण एक गुफा की बंदिशाला में एकबार यह रखा गया था,
हआ, जिस में से कालोपरांत एक कन्या उत्पन्न हुई । वही जिस समय भी अश्वियों ने इसकी मुक्तता की (ऋ. १०.
रेवती है। ३९.९)।
इस कन्या को प्रमुच मुनि ने पाल-पोस कर बड़ा किया, रेव--(स. शर्याति.) एक शर्यातिवंशीय राजा, जो
| एवं विक्रमशीले राजा के पुत्र दुर्गम से इसका विवाह कर हरिवंश, भागवत विष्णु एवं वायु के अनुसार आनर्त |
दिया। राजा का पुत्र था। पद्म में इसे, आनर्त का पौत्र, एवं
___ इसके द्वारा प्रार्थना की जाने पर, प्रमुच ऋषि ने रोचमान राजा का पुत्र कहा गया हैं। भागवत एवं विष्णु
इसका विवाह रेवती नक्षत्र के मुहूर्त पर ही किया, एवं के अनुसार, इसे 'रेवत' नामान्तर प्राप्त था। ब्रह्म में
| इसे मन्वन्तराधिप पुत्र होने का आशीर्वाद भी दिया । इसे रैव कहा गया है।
इस आशीर्वाद के अनुसार, रैवत नामक पराक्रमी पुत्र इसने पश्चिम समुद्र में कुशस्थली नामक नगरी की | उत्पन्न हुआ (मार्क. ७२)। स्थापना कर उसे अपनी राजधानी बनाई (भा. ९.३.
५. सत्ताईस नक्षत्रों में से एक (म. भी. १२.१६ )। २८)। आगे चल कर यही नगरी द्वारका नाम से प्रसिद्ध
रेवन्त-एक सूर्यपुत्र, जो अश्व के रूप में उत्पन्न हुआ हुई (मत्स्य. ६९.९)।
था। इसकी माता का नाम संज्ञा था। बड़ा होने पर इसे द्वारका नगरी पर शर्याति राजवंशीय लोगों का राज्य | गुह्यकों का आधिपत्य दिया गया (मार्क. १०३) । भविष्य अधिककाल न रहा सका, जिसे पुण्यजन राक्षसों ने नष्ट | के अनुसार, इसे अश्वों का अधिपत्य दिया गया था किया. एवं यह राजवंश हैहय वंश में विलीन हुआ। (भवि. ब्राह्म. ८९.१२४ )।
इसे रैवत ककुमिन् आदि सौ पुत्र थे। शर्याति राजा से | रेवाग्नि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। ले कर रैवत तक का वंशक्रम इसप्रकार है:--शर्याति- रेवोत्तरस्-पाटव चाक स्थपती नामक आचार्य का आनते--रोचमान--रेव--रैवत ककुमिन् ।
उपनाम (श. ब्रा. १२.९.३.१; चाक देखिये)। रेवत--(सो. कुकुर.) एक राजा, जो वायु के | रैक्व 'सयुग्वा'--एक तत्त्वज्ञानी आचार्य, जिसका अनुसार कपोतरोमन् राजा का पुत्र था।
जीवनचरित्र एवं तत्त्वज्ञान छांदोग्योपनिषद में प्राप्त हैं। २. शातिवंशीय रेव राजा का नामांतर । यह सदैव बैलों के गाडी के नीचे ही निवास करता था,. ३. एकादश रुद्रों में से एक।
जिस कारण इसे 'सयुग्वा'(गाडी के नीचे रहनेवाला) रेवती-शर्यातिवंशीय रैवत ककुमिन् राजा की कन्या, उपाधि प्राप्त हुई थी। जो बलराम की पत्नी थी। यह उम्र में बलराम से बड़ी थी जानश्रुति राजा से भेंट-एक बार जानश्रुति नामक (पद्म. भू. १०३)। बलराम की मृत्यु होने पर, इसने | राजा जंगल में शिकार के लिये घूमता था, जिस समय उसके चिता में अग्निप्रवेश किया (ब्रह्म. २१२.३)। उसने दो हंसी के बीच हुआ संवाद सहजवश सुन लिया। प्रा. च. ९७]]
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