Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रुद्र
(४) शिवस्तुति, महाभारत में शिवस्तुति के निम्नलिखित आख्यान प्राप्त हैं : १. अश्वत्थामन् कृत (म. मो. ७) २. कृष्णकृत (म. अनु. १४.६ २.७४.२२-२४ ); ३. कृष्णार्जुनकृत ( म. द्रो. ५७ ); ४. तण्डिन्कृत ( म. अनु. ४७ ); ५. दक्षकृत ( म. शां. परि. १.२८ ); मरुचकृत (म. आय. ८.१४.) ।
प्राचीन चरित्रकोश
(५) शिवमहिमा, जो महाभारत के एक स्वतंत्र आख्यान में वर्णित है।
(५) सिंगान महिमा, जो महाभारत के एक स्वतंत्र आख्यान में प्राप्त है ( म. अनु. २४७ ) ।
(७) शिवना, दक्ष के द्वारा की गई शिवनिंदा भागवत में प्राप्त है (मा. ४.२.९-१६) ।
रुद्र- शिव के तीर्थस्थान रूद्र शिव के नाम से एवं इनके प्रासादिक विभूतिमत्त्व से प्रभावित हुए अनेक तीर्थ स्थानों का निर्देश महाभारत एवं पुराणों में प्राप्त है, जिन में निम्नलिखित तीर्थस्थान प्रमुख हैं:
( १ ) ज्योर्तिलिंग--जिनकी संख्या कुल बारह बतायी गयी है (ज्योर्तिलिंग देखिये) ।
(५) मुंजपृष्ठ - एक मद्रसेवित स्थान, जो हिमालय के शिखर पर स्थित था ( म. शां. १२२.२-४ ) !
(३) मुंजवट - - गंगा के तट पर स्थित एक तीर्थस्थान, जहाँ शिव की परिक्रमा करने से गणपति पद की प्राप्ति होती है (म. व. ८३.४४६ ) ।
(४) मुंजवत् - - हिमालय में स्थित एक पर्वत, जहाँ भगवान् शंकर तपस्या करते है ।
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रुमण्वत्
आगे चल कर इसके पुत्र देवान्तक एवं नरान्तक का भगवान् विनायक ने वध किया ( गणेश. क्री. २) |
रुद्रभूति द्राह्यायण -- एक आचार्य, जो त्रात ऐकमत नामक आचार्य का शिष्य था । इसके शिष्य का नाम शर्वदत्त गार्ग्य था ( वं. बा. १.) ।
रुद्रश्रेण्य - - (सो. सह . ) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार महिष्मत राजा का पुत्र था ।
रुद्र सावर्णि - बारहवें मन्वन्तर का अधिपति मनु, को भय राजा का पुत्र था। इसकी माता का नाम मुता था, जो प्राचेतस् दक्ष की कन्या थी (मार्क. ९१ विष्णु २.२.१२)
।
देवी भागवत में इसे तेरहवें मन्वन्तर का अधिपति कहा गया है, एवं वैवस्वत मनु के पुत्र शर्याति को बारहवें मन्वन्तर का अधिपति कहा गया है (दे. भा. १०.१३ ) वायु के अनुसार, यह चाक्षुष मन्वन्तर में हुआ था भी कहा गया है ( वायु. १००.५८ ) । कई ग्रंथों में इसे चतुर्थ मेरुसावर्णि
।
पक्ष में शामिल था ( म. द्रो. १३३.३० ) । पाउमेद-रुद्रसेन -- एक राजा, जो भारतीययुद्ध में पाण्डवों के 'भद्रसेन ' ।
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( ५ ) रुद्रकोटि - एक तीर्थस्थान, जहाँ शिवदर्शन की अभिलाषा से करोड़ो मुनि एकत्रित हुये थे एवं उन पर प्रसन्न हो कर शिव ने करोड़ो शिवलिंगों के रूप में उन्हें दर्शन दिया था (म. व. ८०.१२४ - १२९ ) । (६) पद एक तीर्थ, जहाँ शिव की करने पूजा से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है (म. व. ८०. १०८ पाठभेद वस्त्रापथ ' 1 )
(७) हिमवत् - - एक पवित्र पर्वत, जो त्रिपुरदाह के समय भगवान् रुद्र के रथ में आधारकाष्ठ बना था ! इस पर्वत में स्थित आदि-यगिरि नामक स्थान में शिव का आश्रम स्थित था ( म. शां. ३१९ - ३२० ) ।
था,
रुद्रकेतु एक असुर इसकी पत्नी का नाम शारदा जिससे इसे देवान्तक एवं नरान्तक नामक पुत्र उत्पन्न थे। इसके पुत्रों के पराक्रम से संतुष्ट हो कर नारद ने इसे 'पंचाक्षरी महाविद्या का उपदेश दिया था ।
हुए
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रुधिका -- एक असुर, जिसका पिप्रु नामक असुर के साथ निर्देश प्राप्त है | इन्द्र ने इन दोनों का वध किया (ऋ. २.१४.५ ) ।
रुधिराक्ष -- एक असुर, जो लवणासुर का मामा था। रुधिराशन -- एक राक्षस, जो खर राक्षस के बारह अमात्यों में से एक था ( वा. रा. अर २३.३२) ।
रुन्द -- एक राजा, जो पहले क्षत्रिय था, किन्तु पश्चात् ब्राह्मण हुआ (बा. ९२.११४ ) ।
रुम - एक वैदिक जातिसमूह । रुशम, श्यावक, कृप राजाओं के साथ रुम लोगों के राजा का निर्देश भी इंद्र के कृपापात्र लोगों के नाते प्राप्त हैं (ऋ. ८.४.२ ) ।
रुमण -- राम की सेना का एक सुविख्यात वानर । रुमण्वत्-परशुराम का भ्राता, जो जमदमि एवं रेणुका के पाँच पुत्रों में से ज्येष्ठ था। इसके अन्य भाइयों के नाम सुषेण, वसु, विश्वावसु एवं परराम थे।
इसे इसकी माता रेणुका का वध करने की आशा जमदग्नि ने दी । किन्तु इसने उसका पालन नहीं किया, जिससे कुपित हो कर जमदग्नि ने इसे मृगपक्षियों की माँति जडबुद्धि होने का शाप दिया ( म. व. ११६.१० )