Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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प्राचीन चरित्रकोश
मार्कंडेय के अनुसार, भ्रामरीदेवी ने अरुण नामक असुर | अवतार, उनका अवतीर्ण होने का स्थान, एवं शिष्यों के का वध किया था, जिससे प्रायः असीरिया एवं इराण | नाम निम्न प्रकार है:में रहनेवाले कई विपक्षीय जाति का बोध होता है। । (१) श्वेत--( छागल पर्वत )-श्वेत, श्वेतशिख,
सुमेर में-शुक्लयजुर्वेद मे प्राप्त 'शत्रुजय-सूक्त' रुद्र-शिव | श्वेताश्व, श्वेतलोहित । को उद्देश्य कर लिखा गया है, जिसकी सारी विचारधारा (२)सुतार--दुंदुभि, शतरूप, हृषीक, केतुमत् । सुमेरियन देवता नेयल को उद्देश्य कर लिखे गये सूक्त से | (३) दमन-विशोक, विशेष, विपाप, पापनाशन । काफी मिलतीजुलती है।
(४) सुहोत्र--सुमुख, दुर्मुख, दुदर्भ, दुरतिक्रम । • इन सारे निर्देशों से प्रतीत होता है की, अनातोलिया, (५) कंक--सनक, सनत्कुमार, सनंदन, सनातन । मेसोपोटॅमिया एवं सिन्धुघाटी सभ्यता में प्राप्त नानाविध
(६) लोकाक्षि-सुधामन् , विरजस् , संजय, अंडज । देवताओं से भारतीय रुद्रशिव कोई ना कोई साम्य जरूर | (७) जैगीषव्य--(काशी)-सारस्वत, योगीश, रखता. है (रॉय चौधरी--स्टडीज इन इंडियन अॅन्टि- | मेघवाह मवाद किटीज, पृष्ठ २००-२०४)।
(८) दधिवाहन-कपिल, आसुरि, पंचशिख, शिव के अवतार-अपने भक्तो के रक्षण के लिए एवं शाल्वल | शत्रु के संहार के लिए शिव ने नानाविध अवतार
(९) ऋषभ-पराशर, गर्ग, भार्गव, गिरीश। नानाविध कल्पों में लिये, जिनकी जानकारी विभिन्न पुराणों
(१०) भृगु-(भृगुतुंग)-भृग, बलबंधु, नरामित्र, में प्राप्त है। इन अवतारों की संख्या विभिन्न पुराणों केतशंग। में पाँच, दस, अठाईस एवं शत बताई गई है। शिव
(११) तप- (गंगाद्वार)-लंबोदर, लंबाक्ष, केशलंब, के इन सारे अवतारों में निम्नलिखित अवतार अधिक
| प्रलंबका प्रसिद्ध है:-- -.
(१२) अत्रि--(हेमकंचुक)- सर्वज्ञ, समबुद्धि, (१) चार अवतार--१. शरभ, जो अवतार इसने | साध्य, शर्व। नसिंह का पराजय करने के लिए धारण किया था, (१३) बलि-- (वालखिल्याश्रम)-- सुधामन् , २. मल्लारि, जो अवतार इसने मणिमल्ल का वध करने के
काश्यप, वसिष्ठ, विरजस् । लिए धारण किया था, ३. दुर्वासस् , जो अवतार त्रिमूर्ति |
(१४) गौतम--अत्रि, उग्रतपस् , श्रावण, श्रविष्ट । में स्थित माना जाता है; ४. पंचशिख, जो अवतार त्रिपुर
(१५) वेदशिरस्-(सरस्वती के तट पर)--कुणि, दाह के पश्चात् अवतीर्ण हुआ था।
कुणिबाहु, कुशरीर, कुनेत्रक। (२) पंच अवतार--शिव पुराण में शिव के निम्न- |
(१६) गोकर्ण-(गोकर्णवन)-काश्यप, उशनस् , लिखित पाँच अवतार दिये गये हैं:-सद्योजात, अघोर, | तत्पुरुष, ईशान, वामदेव (शिव. शत. १)।
च्यवन, बृहस्पति । (३) दश अवतार--विष्णु के समान शिव के द्वारा
(१७) गुहावासिन्-(हिमालय)--उतथ्य, वामदेव, भी दश अवतार लिये गये थे, जो निम्मप्रकार हैं:
महायोग, महाबल। महाकाल, तार, भुवनेश, श्रीविद्येश, भैरव, छिन्नमस्तक, (१८) शिखंडिन्--(सिद्धक्षेत्र या शिखंडिवन)-- भूमवत् , बगलामुख, मातंग, कमल (शिव शतरुद्र. १७)।
वाचःश्रवस् , रुचीक, स्यवास्य, यतीश्वर । (४) अठ्ठाईस अवतार--वाराह कल्प के वर्तमान | (१९) जटामालिन्--हिरण्यनामन् , कौशल्य, लोकाकल्प में शिव के द्वारा कुल अट्ठाईस अवतार लिये गये थे, | क्षिन् , प्रधिमि । जो तत्कालीन द्वापर युग के व्यास को सहाय्यता करने के (२०) अट्टहास--(अट्टहासगिरि)--सुमंतु, वर्वरि, लिए उत्पन्न हुये थे। पुराणों मे प्राप्त अवतारों की इस | कबंध, कुशिकंधर। नामावलि में हर एक अवतार के चार चार शिष्य बतायें (२१) दारुक--(दारुवन)--प्लक्ष, दार्भायणि, गये हैं, एवं कहीं कहीं इन अवतारों का अवतीर्ण होने का | केतुमत् , गौतम । स्थान भी बताया गया है। वायु में इन्हीं अवतारों | (२२) लांगली भीम-(वाराणसी)- भल्लविन् , को 'माहेश्वरावतार' कहा गया. है । शिव के अठाईस | मधु. पिंग, श्वेतकेतु ।
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