Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रावण
प्राचीन चरित्रकोश
रावण
द्वाभ्यामूर्ध्वं तु मासाभ्यां भर्तारं मामनिच्छतीम् । सेनावर्णन-रावण की सेना बहुत बड़ी थी, जिसके मम त्वां प्रातराशार्थे सूदाश्छेत्स्यन्ति खण्डशः ॥ छः सेनापति प्रमुख थे:-महोदर, प्रहस्त, मारीच, शुक,
(वा. रा. सु. २२.९) सारण एवं धूम्राक्ष (वा. रा. उ. १४.१)। युद्ध के प्रारंभ (दो महिने में अगर तुम स्वेच्छा से मेरी पत्नी न | में इसने प्रहस्त, महापार्श्व, महोदर एवं अपने पुत्र इंद्रजित बनोगी. तो रसोयें तुम्हारे शरीर के टुकड़े कर, मेरे
को लंका के चारों द्वार के संरक्षण के लिए नियुक्त किया प्रातःकाल के भोजन के लिए पकायेंगे।)
| था। लंका के मध्यभाग के संरक्षण का भार विरुपाक्ष पर
सौंपा गया था, एवं यह स्वयं शुक, सारण एवं अन्य सेना • इतना कह कर रावण ने पहारा देनेवाली राक्षसियों को
के साथ उत्तरद्वार पर खड़ा हुआ था (वा. रा. यु. ३६)। आदेश दिया कि, वे सीता को इसके वश में लाने का
युद्ध के प्रारंभ में, राम एवं लक्ष्मण को नागपाश में प्रयत्न करती रहें। किन्तु सीता को वश में लाने के उनके
बँधा जाने का प्रसंग इसने सीता त्रिजटा से विदित कराया, हर प्रयत्न असफल रहे, एवं सीता अपने वचनीं पर दृढ
| एवं सीता को वश में लाने का आखिरी प्रयत्न किया । रही (वा. रा. यु. ३१-३२; म. व. २८१)।
किन्तु उस प्रयत्न में यह असफल रहा। रावण-विभीषण संवाद-रावण के छोटे भाई विभीषण
बाद में राम के साथ किये गये युद्ध में एक एक कर के ने, धर्म एवं नीति का अनुसरण कर, सीता को राम के
प्रहस्त, धुम्राक्ष, वज्रदंष्ट्र, अकंपन आदि इसके सारे सेनापति, पास लौटाने के लिए इससे पुनः अनुरोध किया, एवं ऐसे
एवं इसका भाई कुंभकर्ण एवं पुत्र इंद्रजित् मारे गये। न करने पर इसका एवं इसके लंका के राज्य का नाश
तत्पश्चात् क्रोध में आकर यह सीता के वध के लिए उद्यत होने की आशंका भी व्यक्त की।
हुआ। किन्तु सुपार्श्व नामक इसके अमात्य ने स्त्रीवध से इसने विभीषण की एक न सुनी, एवं कहा - इसे रोक दिया (वा. रा. यु. ९२.५८)। • घोराः स्वार्थप्रयुक्तास्तु ज्ञातयो नो भयावहा :
रामरावणयुद्ध--राम एवं रावण का युद्ध कुल दो बार (वा. रा. यु. १६.७)।
हुआ था। इसमें से पहले युद्ध में विभीषण ने इसके रथ
के घोड़ों का वध किया था। तत्पश्चात् इसने रथ से उतर (अप्रामाणिक, संशयात्मा एवं स्वयं की जबाबदारी
कर, शक्ति नामक एक बरछी विभीषण की ओर फेंक दी, टालनेवाले स्वजातीय लोग ही राज्य के सबसे बड़े शत्रु
किन्तु लक्ष्मण ने उस शक्ति को छिन्नभिन्न कर फेंक होते है।)
दिया । पश्चात् मय के द्वारा दी गयी 'अमोघा' शक्ति 'आगे चल कर विभीषण को राक्षसकुल का कलंक | लक्ष्मण पर छोड़ कर इसने उसे मूञ्छित किया। तत्पश्चात् (कलपांसन ) बता कर इसने कहा, 'वीर पुरुष के सबसे | राम ने लक्ष्मण को हनुमान आदि वानरों की रक्षा में छोड़ बड़े शत्र उसके भाई ही होते है, जैसे कि रानहाथी का | कर, रावण पर ऐसा हमला किया कि, यह रणभूमि छोड़ सबसे बड़ा शत्रु व्याध के पक्ष में मिलनेवाला उसका भाई | कर भाग गया । वा. ग य ही होता है । इस कठोर निर्भर्त्सना से घबरा कर विभीषण | इंद्रजित् के वध के पश्चात् यह 'जयप्रापक' नामक ने चार राक्षसों के साथ लंका छोड़ दी, एवं वह राम के | मंत्र का जाप करने बैठा । इस वार्ता को सुन कर, विभीषण पक्ष में जा मिला । रावण के मातामह माल्यवत् ने मी | ने राम से किसी तरह भी इस जाप में बाधा डालने की इसे बहुत समझाया। किन्तु उसके उपदेशों का इसके | सूचना दी, क्यों कि, इस जाप का पूरा होते ही यह शिव उपर कुछ प्रभाव न पड़ा (वा. रा. यु. ३५)। की प्रसाद से अजेय होने की संभावना थी।
युद्धारंभ-राम से युद्ध शुरू होने के पूर्व रावण ने शुक | विभीषण की सूचना के अनुसार, अंगद मंदोदरी के को रामसेना की जानकारी प्राप्त करने के लिए भेजा था, | केशों को खींच कर रावण के पास ले आया, जिस कारण एवं सुग्रीव के पास संदेश भी भेजा था कि, वह युद्ध में | क्रुद्ध हो कर रावण ने अपना जाप यज्ञ अधुरा ही छोड़ राम की सहाय्यता न करे (वा. रा. यु. २०)। किन्तु | दिया, एवं यह युद्धभूमि में आ डटा (वा. रा. यु. ८२ उसका कुछ भी परिणाम न हुआ, एवं शान्ति के सारे | प. उ. पाठ)। प्रयत्न अयशस्वी हो कर इसका राम के साथ युद्ध शुरू | वध-इसके उपरान्त राम-रावण का विकराल युद्ध हुआ।
| हुआ। इस युद्ध के समय इन्द्र ने अपना रथ, एवं मातलि ७४७