Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रावण
प्राचीन चरित्रकोश
पश्चात् वह कैलास पर्वत को जड़मूल से उखाड़ देने की चेष्टा करने लगा | कैलास पर्वत को उठा कर यह लंका में ले जाना चाहता था। रावण के बल से पर्वत हिलने गा, किन्तु शिव ने अपने पादांगुष्ठ से कैलास पर्वत को नीचे दवाया, जिससे रावण की भुजाएँ उस पर्वत के नीचे गयीं।
फिर रायण विविध स्तोत्रों के द्वारा शिव का गुणगान करने लगा, एवं एक सहस्त्र वर्षों तक विलाप करता रहा। उत्पधात् शिव इस पर प्रसन्न हुवें एवं उन्होंने रायण की भुजाएँ मुक्त कर उसे चंद्रहास नामक खड्ग प्रदान किया एवं अपने भक्तों में शामिल करा दिया। तदोपरान्त रावण परमशिवभक्त बन गया एवं एक सुवर्णलिंग सदा ही साथ रखने लगा ( वा. रा. उ. ३१) । रावण की शिवभक्ति की कथाएँ आनंद रामायण, एवं स्कंद तथा पद्म पुराणों में भी प्राप्त है ( . . १.१३.२६-४४ पद्म २४२ ) ।
विवाह एक बार रावण ने मृगया के समय दिति के पुत्र मय को देखा, जो अपनी पुत्री मंदोदरी के साथ वन में टहल रहा था। रावण का परिचय प्राप्त करने के पश्चात् मय ने मंदोदरी का विवाह इससे करना चाहा रावण ने इस प्रस्ताव को स्वीकार लिया। विवाह के समय मय ने रायण को एक अमोघ शक्ति प्रदान की, जिससे राम-रावण युद्ध में इसने लक्ष्मण को भारत किया था ( वा. रा. उ. १२) ।
बेदवती से शाप एक बार कुशध्वज ऋषि की कन्या वेदवती, नारायण को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए प करती थी। इस समय रावण उसके रुपयोधन पर मोहित हो कर, उस पर अत्याचार करने पर प्रवृत्त हुआ । इस पर वेदवती ने इसे शाप दिया, 'मैं तुम्हारे नाश के लिए अयोनिजा सीता के रूप में पुनः जन्म ग्रहण करुँगी' ( वा. रा.उ. १७) ।
विजययात्रा रावण की विजययात्रा का सविस्तृत वर्णन वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है, जिसके अनुसार इसने निम्नलिखित राजाओ का पराभव किया : मस्त दुष्यन्त, सुरथ, गाधि, मय, पुरूरवस एवं अनरण्य तत्पश्चात् रावण ने नारद की सलाह से यमलोक पर आक्रमण किया, जिसमें इसने यम की सेवकों परास्त किया । अनंतर इसने वरुणालय में नागों का राजा वासुकि को परास्त किया, अछनगर में अपने बहनोई विद्युज्जिह्व का वध किया, एवं वरुणसेना को परास्त कर वह वापस आया (बा. रा. उ. १८-२३) ।
प्रा. च. ९४ ]
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रावण
अपनी विजययात्रा के उपलक्ष्य में रावण जब लंका में अनुपस्थित था, तब मधु नामक दैत्य ने इसकी बहन कुंभीनसी का हरण किया। यह सुन कर रावण ने अपने सैन्य के साथ, मधुपुर पर आक्रमण किया। किन्तु अपनी बहन के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर इसने मधु देय को अभय दिया ( वा. रा. उ. २५.४६ ) ।
मधुदैत्य के यहाँ से यह कैलासपर्वत की ओर गया, जहाँ इसने अपने भाई कुबेर की स्नुषा रंभा पर अत्त्याचार करना चाहा। रंभा ने इसे खूप समझाया कि, यह इसकी पुत्रवधू, अर्थात् कुबेरपुत्र नलकूचर की पानी है। किंतु इसने उत्तर दिया, 'अप्सराओं को कोई पति होता ही नहीं ( पतिरप्सरसां नास्ति ), एवं इसने रंभा के साथ ' बलात्कार किया पश्चात् यह वार्ता सुन कर नलकूबर ने इसे शाप दिया, न चाहनेवाली किसी स्त्री की इच्छा करने से तुम्हारे मस्तक के सात टुकड़े हो जाएँगे ( वा. रा. उ. २६.५५) ।
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तदोपरांत रावण ने कैलास पर्वत पार कर इंद्रलोक पर आक्रमण किया, जहाँ हुए युद्ध में इसके पितामह सुमालि का वध हुआ । पश्चात् इसके पुत्र मेघनाद ने इंद्र को परास्त किया, एवं उसे लंका में ले आया, जिस कारण उसे इंद्रजित् नाम प्राप्त हुआ ( वा. रा. उ. ३० ) ।
पराजय - इसकी विजययात्राओं के साथ इसके कई पराजयों का निर्देश भी वाल्मीकिरामायण में प्राप्त है । एक बार यह माहिष्मती नगरी के समीप नर्मदा नदी में स्नान कर शिवपूजा करने के लिए गया। वहाँ माहिष्मती का हैहय राजा कार्तवीर्य अर्जुन अपनी पत्नियों के साथ आया था। उसने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा की धारा रोक दी, जिस कारण नदी विपरीत दिशा से बहने लगी, एवं रावण के द्वारा चढ़ाई गयी शिवपूजा के फूल ले गयी। इस पर रावण अर्जुन से द्वंद्वयुद्ध करने गया किंतु इस युद्ध में कार्तवीर्य ने इसे परास्त कर माहिष्मती के कारावास में रख दिया। बाद में पुलस्त्य ऋषि ने मध्यस्तता कर रावण की मुक्ता की एवं कार्त वीर्य के साथ मित्रता प्रस्थापित की ( वा. रा. ३. ३१३३ ) ।
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पार्गेिटर के अनुसार, कार्तवीर्य अर्जुन पुलस्त्य से काफी पूर्वकालीन था, जिससे प्रतीत होता है कि, इस कथा में निर्दिष्ट रावण किसी अन्य द्रविड राजा था (पार्टि २४२) ।
कार्तवीर्य के कारागृह से मुक्त होने के पश्चात्, रावण फिर योग्य प्रतिद्वंद्वियों का शोध करने लगा। पश्चात् यह
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