Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रायाण
प्राचीन चरित्रकोश
इसकी पत्नी का नाम राधा था । इसे 'रापाण ' नामान्तर के अनुसार, दशग्रीव शब्द किसी द्राविड़ नाम का संस्कृत भी प्राप्त था (ब्रह्मवै. ४.३ ) रूप होगा। वाल्मीकि रामायण में कई जगह इसे एक सुख एवं दो हाथ होने का स्पष्ट निर्देश प्राप्त है (वा. रा. सुं. २२.२८१ यु. ४०.१३ ९५.४६ १०७.५४-५७९ १०९.३ ११०. ९-१० १११.२४- २७ ) ।
रायोवाज एक सामद्रष्टा आचार्य (पं. बा. ८.१.४९ १४.४.१७ ) । वह यति लोगों में से एक था, एवं इन्द्र ने इसे वैश्य विद्या प्रदान की थी ( यति १. देखिये) ।
रावण 'दशग्रीव' - - लंका का सुविख्यात राक्षस सम्राट जो पुलस्यपुत्र विश्रवस् नामक राक्षस का पुत्र 'था। राम दाशरथि की पत्नी सीता का हरण करने के कारण, रावण प्राचीन भारतीय इतिहास में पाशवी वासना एवं दुष्टता का प्रतीक बन गया है।
नाम इसे रावण नाम क्यों प्राप्त हुआ, इस संबंधी कथा वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है। शिव के द्वारा इसकी भुजाएँ कैलास पर्वत के नीचे दबायी गयीं । उस समय इसने मोघं एवं पीड़ा से भीषण चीत्कार ( रावः सुदारुणः ) किया, जिस कारण इसे रावण नाम प्राप्त हुआ ( वा. रा. २.१६.२९) । इसी ग्रंथ में अन्यत्र शत्रु को भीषण चीत्कार करने पर विवश करनेवाला इस अर्थ से इसे ' शत्रु रावण ' कहा गया है ( वा. रा. २३.८ ) ।
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हनुमत् की तरह रावण का नाम भी एक अनार्य नाम का संस्कृत रुपान्तर प्रतीत होता है । पाटिर के अनुसार, रावण शब्द तामिल 'इरेवण' (राजा) का संस्कृत रूप है (पार्गि. २७७ ) | रायपुर जिलें में रहनेवाले गोंड लोग अपने को आज भी रावण के वंशज मानते है। राँची जिले के कटकयाँ गाँव में 'रावना' नामक परिवार आज भी विद्यमान है। इससे स्पष्ट है कि, रामकथा में निर्दिष्ट लंकाधिपति रावण एवं उसकी राक्षस प्रजा विंध्य प्रदेश एवं मध्य भारत में निवास करनेवाली अनार्य जातियों से कुछ ना कुछ संबंध ज़रूर रखती थी। इस तरह रावण एवं राक्षस वास्तव में यही नाम धारण करने बाले इसी प्रदेश के आदिवासी थे (बुल्के, रामकथा g १२३ ) ।
रावण का उपनाम 'दशग्रीव (दशशीपं दशानन) था, जिस कारण इसे दस सिर एवं बीस हाथ थे, ऐसा कल्पनारम्य वर्णन अनेकानेक रामायण ग्रंथों में एवं पुराणों मैं किया गया है। किन्तु संभव है, 'दशग्रीव' नाम पहले इसे रूपक के रूप में प्रयुक्त किया होगा (दशग्रीव, अर्थात् जिसकी ग्रीवा दश अन्य साधारण ग्रीवों के समान बलवान् हो), एवं बाद में यह रूपकात्मक अर्थ नष्ट हो कर इसे दस मुख होने की कल्पना प्रसृत हो गयी हो। पार्गेिटर
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रावण
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अथर्ववेद में एक 'दशास्य' वाले (देशमुख) ब्राह्मण का निर्देश प्राप्त है ( अ. वे. ४.६.१ ) । इस निर्देश का प्रभाव भी रावण के स्वरूप की कल्पना पर पड़ा होगा । स्वरूपवर्णन राम का शरीर प्रचंड बलिष्ठ एवं नीलांजनचयोपम अर्थात् कृष्णवर्णीय था। इसकी आँखे र विकृत एवं कृष्णपिंगल वर्ण की थी (बा. रा. सुं. २२.१८ ) । इसकी दोनों भुजाएँ इंद्रध्वज के समान बलिष्ठ थी, एवं उन पर स्वर्ण के बाहुभूषण रहते थे । इसके स्कंध अत्यंत विशाल थे, जिन पर इंद्रवज्र के आघात से उत्पन्न हुयें अनेक घाव स्पष्ट रूप से दिखाई देते थे । क्रोधित होने पर इसकी आँखे लाल महाभयंकर एवं देदीप्यमान बनती थी ( वा. रा. सु. १०.१५-२० ) ।
इसे केवल दों ही हाथ थे, किन्तु युद्ध के समय अपनी इच्छा के अनुसार, दश ( अथवा विंश) हस्तधारी बनने की शक्ति इसमें थी ।
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वाल्मीकि रामायण में कचित् इसे वाघ, उँट, हाथी अश्व आदि की नानाविध शीर्ष धारण करनेवाना, फैली हुयीं ( विवृत्त) आँखोवाला, एवं भूतगणों से परिवेष्टित कहा गया है ( वा. रा. यु. ५९.२३ ) । किन्तु इस प्रकार का वर्णन वाल्मीकि रामायण में बहुत ही कम है ।
जन्म - पुलस्त्य ऋपिका पुत्र विश्रवस् रावण का पिता था। उसकी माता का नाम केशिनी था, जो सुमालि राक्षस की कन्या थी ।
वाल्मीकि रामायण में इसकी जन्मकथा निम्न प्रकार दी गयी है ब्रह्मा ने अष्टि का निर्माण करने के : जलसृष्टि
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पश्चात् प्राणिसृष्टि का निर्माण किया, जिनमें से यक्ष एवं राक्षस उत्पन्न हुयें | इन राक्षसों का एक प्रमुख नेता हेति था, जिसके पुत्र का नाम विद्युत् सेवा एवं पौत्र का नाम मुकेश था। मुकेश को माल्यवान् सुमालि एवं मालि । नामक तीन पुत्र थे, जिन्होंने ब्रह्मा से अमरत्व का वरदान प्राप्त किया था। उन राक्षसों के लिए विश्वकर्मा ने त्रिकूट पर्वत पर लंका का निर्माण किया। ये तीनों भाई देवताओं तथा तपस्वियों को त्रस्त करने लगे, जिस कारण विष्णु मालि का वध किया, एवं सुमालि को छेका छोड़ कर, रसाताल जाने पर विवश किया।
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