Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रुक्मिणी
प्राचीन चरित्रकोश
रुक्मिन्
एवं कृष्ण विदर्भ देश से क्रथ तथा कौशिक देश में गये, अन्त में बड़ी धूमधाम के साथ इसका एवं कृष्ण का जहाँ के राजाओं ने उनका काफी सत्कार किया (ह. वं. विवाह द्वारका में संपन्न हुआ (भा. १०.५४, ८३; ह. २.५९)।
वं. २.६०, विष्णु. ५.२६; पद्म. उ. २४७-२४९)। भागवत एवं विष्णु के अनुसार, कृष्ण एवं बलराम प्रासादवर्णन--विश्वकर्मा ने इन्द्र की प्रेरणा से कृष्ण शिशुपाल एवं रुक्मिणी के विवाहसमारोह में शामिल एवं रुक्मिणी के लिए एक मनोहर प्रासाद का निर्माण होने के बहाने कुंडिनपुर आये थे (भा. १०.५३; विष्णु. किया था, जिसका विस्तार एक योजन था। उसके शिखर ५.२६)।
पर सुवर्ण चढाया था, जिस कारण वह मेरु पर्वत के चेदिराज शिशुपाल एवं रुक्मिणी का विवाह भली उत्तुंगशंग की शोभा धारण करता था (म. स. परि. १. प्रकार निर्विघ्न सम्पन्न हो, इसके लिए निम्नलिखित राजा । २१.१२४०) अपनी सेनाओं सहित विद्यमान थे--दंतवक्त्रपुत्र सुवक्त्र, भाग्यश्री किस तरह प्राप्त हो सकती है, इस संबंध में पौंडाधिपति वासुदेव, वासुदेवपुत्र सुदेव, एकलव्यपुत्र, पांड्य- इसका स्वयं भाग्यश्री देवी से संवाद हुआ था, जिस राजपुत्र, कलिंगराज, वेणुदारि, अंशुमान्, काथ, श्रुतधर्मा, समय श्रीकृष्ण भी उपस्थित था (म. अनु. ३२)। कालिंग, गांधाराधिपति, कौशांबीराज आदि । इसके अपने स्वयंवर की कहानी इसने द्रौपदी को सुनाई थी अतिरिक्त भगदत्त, शल, शाल्व, भूरिश्रवा तथा कुंतिवीर्य | (भा १०.८३)। आदि राजा भी आयें हुए थे।
भागवत में इसके द्वारा श्रीकृष्ण से किये गये प्रणथरुक्मिणीहरण-विवाह के एक दिन पूर्व, कलपरंपरा कलह का सुंदर वर्णन प्राप्त है (भा. १०.६०)। के अनुसार रुक्मिणी शहर के बाहर भवानी के दर्शन पुत्रप्राप्ति--विवाह के पश्चात् इसे प्रद्युम्न नामक पुत्र करने के लिए गई. तथा वहाँ जाकर कृष्ण को ही पति उत्पन्न हुआ। उसके बचपन में ही शंबरासुर ने उसका के रूप में प्राप्त करने की प्रार्थना इसने की। हरिवंश हरण किया, जिस कारण इसने अत्यधिक शोक किया के अनुसार, यह इन्द्र एवं इन्द्राणी के दर्शन के लिए | था । प्रद्युम्न साक्षात् मदन का ही अवतार था, जिसे इसके गई थी।
भाई रुक्मिन् ने अपनी कन्या रुक्मवती विवाह में प्रदान
की थी। ___ दर्शन करने के उपरांत, रुक्मिणी बाहर आकर कृष्ण
___ अग्निप्रवेश--श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् इसने एवं को इधर उधर देखने लगी। तब शत्रुओं को देखते देखते |
श्रीकृष्ण की अन्य चार पत्निओं ने चितारोहण किया। कृष्ण ने इसे अपने रथ में बैठा दिया, एवं शत्रुओं की
ब्रह्मा के अनुसार, श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् उसकी सेना को पराजित करने का भार अपनी यादवसेना को
आठ पत्नीयों ने अग्निप्रवेश किया, जिसमें यह प्रमुख थी। सौंप कर कृष्ण ने इसका हरण किया । तब बलराम तथा
महाभारत में रुक्मिणी के एक आश्रम का निर्देश प्राप्त अन्य यादवों ने विपक्षियों को पराजित किया।
| है, जो उज्जानक प्रदेश की सीमा में स्थित था । इस स्थान रुक्मी का पराजय-बाद में रुक्मिणी के ज्येष्ठ भ्राता पर इसने क्रोध पर विजय पाने के लिए घोर तपस्या की रुक्मी, कृष्ण को भली प्रकार दण्डित करने के लिए, नर्मदा | थी (म. व. १३०.१५)। तट से पीछा करता हुआ कृष्ण के पास आ पहुँचा ।। परिवार--रुक्मिणी को श्रीकृष्ण से चारुमती नामक जैसे ही उसने रुक्मिणी तथा कृष्ण को एक दूसरे से निकट | एक कन्या, एवं निम्नलिखित दस पुत्र उत्पन्न हुये थे:-- बैठा हुआ देखा, वह क्रोध से पागल हो उठा, एवं उसने | प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, कृष्ण से युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया । भीषण संग्राम के | भद्रचारु, चारुचंद्र, विचार, एवं चारु (भा. १०.६१; उपरांत कृष्ण ने रुक्मी को पराजित किया। कृष्ण उसका | ह. वं. २.६०)। वध करनेवाला ही था, कि इसने अपने भाई का जीवन- महाभारत में इसके पुत्रों के नाम निम्न प्रकार प्राप्त दान उससे माँगा । तब कृष्ण ने रुक्मी को विद्रूप कर | हैं:--चारुदेष्ण, सुचारु, चारवेश, यशोधर, चारुश्रवस् , क छोड़ दिया। भाई को विद्रूप देखकर यह रोने लगी, चारुयशस् , प्रद्युम्न एवं शंभु (म. अनु. १४.३३-३४)। तब बलराम ने इसे सान्त्वना दी, एवं कृष्ण को उसके | रुक्मिन्--विदर्भदेश का एक श्रेष्ठ राजा, जो विदर्भाधिइस कृत्य के लिए काफी डाटा ।
पति भीष्मक (हिरण्यरोमन् ) के पाँच पुत्रों में से ज्येष्ठ ७५२