Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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रावण
प्राचीन चरित्रकोश
रावण
नामक सारथी राम के सहाय्यार्थ भेजा । अगस्त्य ने भी | राजा को देख कर, पृथ्वी के चर प्राणी ही क्या, वायु, राम को आदित्य नामक स्तोत्र प्रदान किया । राम-रावण | वृक्ष, आदि अचर वस्तु भी कंपित होती थी (वा. रा. का यह युद्ध सात दिनों तक चलता रहा। इस युद्ध में | अर. ४६.६-८)। रावण एक बार मूर्छित हुआ, एवं अपने सारथि के द्वारा यह कुशल राजनीतिज्ञ एवं दिग्विजयी सम्राट् था। युद्धभूमि से दूर लाया गया (वा. रा. यु. १०२- | इसकी प्रजा ऐश्वर्यसंपन्न एवं धनधान्य से पूरित थी
(वा. रा. सु. ४.२१-२७, ९.२-१७)। इसके राज्य होश में आते ही रावण पुनः एक बार युद्धभमि में | में अनेकानेक वस्तुओं निर्माण करने की कला चरम सीमा आ उतरा। अंत में अगस्त्य के द्वारा दिये गये ब्रह्मास्त्र इसकी छाती पर मार कर, राम ने इसका वध किया। यह अपने मंत्रिगणों में अत्यधिक आदरणीय था, एवं (वा.रा. यु.१०८; म. स. परि. १. क्र. २१ पंक्ति. ५३६; | यह स्वयं मंत्रियों के विचारविमर्श पूछ कर ही राज्य का व. २९१.२९; द्रो. परि. १. क्र. ८. पंक्ति. ४४७)। कारोबार चलाता था (वा. रा. अर, ३८.२३-३३)। राम-रावण के इस अंतीम युद्ध में रावण के सिर पुनः परमपराक्रमी होने के साथ, यह उच्चश्रेणी का रसिक पुनः उत्पन्न होते थे, यहाँ तक कि, राम ने रावण के | एवं संगीतज्ञ भी था (वा. रा. सु. ४४. ३२)। अपने एकसौ सिर काट दिये (वा. रा. यु. १०७.५७)। । परिवार के लोगों के प्रति यह अत्यन्त स्नेहशील था।
परिवार--मंदोदरी के अतिरिक्त रावण के धान्य- अपनी बहन शूर्पणखा विधवा होने पर, यह बड़ा दुःखी मालिनी नामक अन्य एक पत्नी का निर्देश प्राप्त है, जो हुआ था (वा. रा. उ. २४)। अतिकाय की माता थी (वा. रा. सु. २२.३९; यु. ७१. महापंडित रावण--रावण वेदों का महापंडित, एवं ३०)।
समस्त शास्त्रो का माना हुआ विद्वान् था । वाल्मीकि इन दो पत्नियों के अतिरिक्त रावण को हज़ार पत्नियाँ रामायण में इसे 'वेदविद्या निष्णात' (वेदविद्याव्रतस्नातः) थी, जिनमें देव, गंधर्व, नाग आदि स्त्रियों का समावेश | एवं 'आचारसंपन्न ' (स्वकर्म निरतः ) कहा गया है (वा. था (वा. रा. अयो. १२३.१४; सु. १०-११, १८, २२ | रा. यु.९२.६०)। शाखाओं के क्रम के अनुसार वेदों यु. ११०; उ. २२)।
का विभाजन करने का काम इसके द्वारा किया गया था। रावण के पुत्रों में इंद्रजित् सर्वाधिक प्रसिद्ध है । उसके | इसके नाम पर ऋग्वेद का एक भाष्य एवं वेदों का एक पदअतिरिक्त इसे निम्नलिखित अन्य पुत्र भी थे:- अक्ष, पाठ भी प्राप्त है। बलराम रामायण के अनुसार, इसने (वा. रा. सुं. ४७); अतिकाय (वा. रा. यु. ७१. | वैदिक मंत्रों का संपादन कर, वेदों की एक नयी शाखा ३०); त्रिशीर्ष (वा. रा. यु. ७०); नरान्तक ( वा. रा. | का निर्माण भी किया था। यु. ६९); देवान्तक (वा. रा. यु.७०)।
| रावण के नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ भी प्राप्त है:-- रावण को कुंभकर्ण एवं विभीषण नामक दो भाई, अर्कप्रकाश, कुमारतंत्र, इंद्रजाल, प्राकृत कामधेनु, प्राकृतएवं शूर्पणखा नामक बहन थी। उनके अतिरिक्त मत्त एवं | लंकेश्वर, ऋग्वेदभाष्य, रावणभेट आदि । युद्धोंमत्त नामक इसके अन्य दो भाईयों का, एवं कुंभिनसी | कई अभ्यासकों के अनुसार, उपर्युक्त ग्रंथ लिखनेवाला नामक एक बहन का भी निर्देश प्राप्त है (वा. रा. यु. रावण, लंकाधिपति रावण से कोई अलग व्यक्ति था। ७१.२)।
'तुलसी रामायणा' में-'मानस' में चित्रित किया चरित्रचित्रण-राम जैसे परमवीर राजा को युद्ध में | गया रावण इंद्रियलोलुप, कुटिल राजनीतिज्ञ, क्रोधी ललकारने की हिंमत करनेवाला रावण, स्वयं एक एवं परम शक्तिशाली खलपुरुष है। यह एक वस्तुवादी, परमऐश्वर्युक्त, शोभासंपन्न एवं पराक्रमी राजा था। रावण अधार्मिक, अभिमानी एवं हठी व्यक्ती है, जो मारीच, स्वयं एक साधारण सम्राट न था, किन्तु समस्त पृथ्वी को | विभीषण, माल्यवत् , प्रहस्त, कुंभकर्ण एवं मंदोदरी के द्वारा जीतनेवाला एक लोकव्यापी आतंक भी था। स्वर्णा- | किये गये सदुपदेश पर किंचित भी ध्यान नहीं देता है। सन पर बैठ कर अग्नि जैसे तेजस्वी दिखनेवाले रावण को मानस' में रावण के अनाचारों, अत्याचारों एवं देख कर, स्वयं राम भी प्रभावित हो चुका था ( वा. रा. | निरंकुशता की ओर विशेष संकेत किया गया है; एवं अर. ३२.५, यु. ५९.२६)। इस उग्र तथा पाप करनेवाले | इसे नीच, खल, अधम आदि विशेषणों से भूषित किया
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