Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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राम
प्राचीन चरित्रकोश
राम
यह सुन कर रावण ने सीता एवं त्रिजटा को पुष्पक | मृत्यु की पश्चात् , कुंभकर्ण का सिर सूर्योदयकालीन चंद्रमा विमान में बैठा कर, रणभूमि मे मूछित पड़े हुए राम- के समान आकाश में दिखाई पड़ा, एवं वह स्वयं पृथ्वी पर लक्ष्मण को दिखलाया। सीता इन दोनों को मृत समझ | गिर कर, उसके प्रचंड देह के कारण अनेक भवन गिर पड़े। कर विलाप करने लगी, किन्तु त्रिजटा ने उसको वास्तव
| युद्ध के सातवें दिन रामपक्षीय वानरों ने देवान्तक, परिस्थिति का ज्ञान दिला कर सांत्वना दी ( वा. रा. यु:
नरांतक, त्रिशिरस् एवं अतिकाय नामक चार रावणपुत्रों ४७-४८)।
का वध किया। महोदर एवं महापार्श्व नामक रावण के बाद में राम को जैसे ही होश आया, यह. लक्ष्मण | भाईयों का भी वध किया गया। उनमें से नरान्तक का को मटित देख कर विलाप करने लगा (वा. रा. | वध अंगद के द्वारा,देवान्तक एवं त्रिशिरस् का वध हनुमत् यु. ४९) । पश्चात् सुषेण ने राम को कहा कि, ओषधि | के द्वारा, महोदर का वध नील के द्वारा, एवं अतिकाय लाने के लिए हनुमत् को द्रोणाचल भेज दिया जाये। | का वध लक्ष्मण के द्वारा हुआ किन्तुं इसी समय, गरुड का युद्धभूमि में आगमन हुआ,
इंद्रजेत् का वध- युद्ध के आठवें दिन रावण का जिसको देखते ही नागपाश के सारे नाग भाग गयें, एवं उसके स्पर्शमात्र से ही राम एवं लक्ष्मण स्वस्थ हो गये
पुत्र इंद्रजित् अदृश्य रूप से रणभूमि में आया, एवं उसने
वानरसेना पर ऐसा जोरदार हमला किया कि, उसमें ६८ (वा. रा. यु. ५०)। रे. बुल्के के अनुसार, गरुड़ के
करोड़ वानर मारे गयें। इंद्रजित् के द्वारा छोड़े गये ब्रह्मास्त्र आगमन का यह कथाभाग प्रक्षिप्त है (रामकथा. ५६२)।
के कारण, राम एवं लक्ष्मण मूर्छित हुयें (वा. रा. यु. - राक्षससंहार-युद्ध के दूसरे दिन हनुमत् ने रावणपक्षीय योद्धा धूम्राक्ष का वध किया ( वा. रा. यु. ५१-५२)। तीसरे दिन अंगद ने वज्रदंष्ट्र आदि राक्षसों का वध किया |
| रात्री के समय विभीषण एवं हनुमत् मशाल ले कर
रात्री के सम (वा. रा. यु.५३-५४)।.चौथे दिन हनुमत् ने अकं- युद्धभूाम म आय, एव उन्हान देखना शुरू किया कि, पनादि राक्षसों का वध किया ( वा. रा. यु. ५५-५६)।
कौन मरा एवं कौन बचा। उस समय उन्हें सर्वप्रथम पाँचवे दिन रावण का प्रमुख सेनापति प्रहस्त, अग्निपुत्र
जांबवत् मिला, जिसने हनुमत् से आज्ञा दी, 'इसी नील वानर के द्वारा मारा गया, एवं उसके सैन्य में से
समय, हिमालय के ऋषभ शिखर पर जा कर, वहाँसे नरान्तक, महानंद, कुंभहनु आदि राक्षसों का भी संहार
संजीवनी, विशल्यकरिणी, सुवर्णकरिणी एवं संधानी हुआ (वा. रा. यु.५७-५८)।
नामक चार ओषधियाँ ले आना'। हनुमत् के द्वारा ___ युद्ध के छठवें दिन, रावण स्वयं अपना पुत्र इंद्र जित् | उपयुक्त वनस्पा
। उपर्युक्त वनस्पतियाँ लाने के उपरान्त, जांबवत् ने राम एवं आतिकाय आदि राक्षसों के साथ स्वयं युद्धभूमि में
एवं लक्ष्मण को होश में लाया, एवं संपूर्ण वानरसेना को प्रविष्ट हुआ। उसने सुग्रीव, गवाक्ष आदि वानरों को | पुनः जीवित किया (वा. रा. यु. ७४)। परास्त किया, एवं 'अग्नि-अस्त्र के द्वारा नील वानर | युद्ध के नौवें दिन वानरों ने लंका में घुस कर, उसे का पराजय किया।
आग लगा दी, एवं कुंभ, निकुंभ, यूपाक्ष आदि राक्षसों का तत्पश्चात् रावण एवं लक्ष्मण का युद्ध हुआ, जिसमें | वध किया (वा. रा. यु. ७५-७७)। इसी दिन राम के 'ब्रह्मास्त्र' के द्वारा उसने लक्ष्मण को मूछित किया । द्वारा मकराक्ष राक्षस मारा गया (वा. रा. यु. ७८-७९)। रावण उसे उठा कर ले जाने लगा, किंतु हनुमत् लक्ष्मण बाद में इंद्रजित ने अपने मायावी युद्ध के कारण, को रणभूमि से उठा कर राम के पास ले आया। तत्पश्चात् । वानरसेना में हाहाकार मचा दिया, एवं उन्हे घबराने के राम ने हनुमत् के स्कंध पर आरूढ हो कर, रावण को | लिए, उनकी आँखों के सामने सीतावध का मायावी
आहत किया, एवं उसके मुकुट को बाण मार कर नीचे | दृश्य निर्माण किया। तत्पश्चात् वह निकुंभिला नामक गिरा दिया । पश्चात् राम ने रावण को रणभूमि से भाग | स्थान में जा कर, वानरसंहार के लिए आसुरी-यज्ञ करने जाने पर मजबूर कर दिया ( वा. रा.यु. ५९)। लगा। विभीषण की सलाह के अनुसार, लक्ष्मण ने वहाँ __ उसी दिन शाम को राम ने कुंभकर्ण का भी वध किया, | | जा कर इंद्रास्त्र छोड़ कर उसका वध किया। पश्चात् इस जिस समय इसने सर्वप्रथम उसकी भुजाएँ, तत्पश्चात् उसके | युद्ध में मूञ्छित एवं मृत हुयें वानरों को सुषेण ने पुनः पैर, एवं अंत में उसका सिर अपने बाणों से काट दिया। | जीवित किया (वा. रा. यु. ९१ )।
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