Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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राम
करने की प्रतिज्ञा की। सीताहरण के समय गिरें हुए आभूषण सुग्रीव सुझव ने इसे बतायें। इसी समय, राम ने वालि के वध की प्रतिशा की। पश्चात् बालि एवं सुग्रीव का घमासान युद्ध होते समय वही सुअवसर मान कर वृक्ष के पीछे से इसने एक बाल वालि पर छोड़ दिया एवं उसका वध किया था. रा. कि. २६.१४ ) ।
बालिका आक्षेप राम ने बालिबध करते समय ये काटाचरण किया, वह क्षत्रिययुद्धनीति के विरुद्ध माना गया है। इस बुद्ध के पूर्व बालि ने अपनी पत्नी तारा से राम के संबंध में कहा था-
'धर्म
प्राचीन चरित्रकोश
و
पाप करिष्यति ।
( वा. रा. किं. १६ ) ।
(राम धर्मश एवं कृतश होने के कारण, उसके हाथों कौनसा भी पापकर्म होना असंभव है ) ।
कपटाचरण
इसी कारण, मृत्यु के समय, बालि ने राम को उसके कारण के लिए काफी दोष दिया, जिसका कोई भी उत्तर राम न दे सका। राम ने उसे इतना ही कहा 'अपने भाई के राज्य एवं पत्नी का अरहरण वरनेवाले तुम अत्यंत पापी हो, जिस कारण मैंने तुम्हारा वध किया है (बा. रा. कि. १७-१८) । रे बुल्के के अनु सार, राम-वालि संवाद के ये दोनों सर्ग प्रक्षिप्त है ( राम कृपा पृ. ४७९) ।
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सीता की फोड़ बालिब के पश्चात् राम ने -- किष्किंधा के राज्य पर मुझीव को राज्याभिषेक किया अनन्तर वर्षाऋतु अर्थात श्रावण से कार्तिक मास तक के चार महिने राम ने प्रस्त्रवणगिरी के एक गुफा में बितायें ( वा. रा. कि. २७-२८ ) । वर्षाकाल
वा समाप्त होने पर भी जब सुग्रीव ने सीताशोध के संबंध में कोई प्रयत्न नहीं शुरु किया, तब राम ने लक्ष्मण के द्वारा उसकी काफी निर्भत्सना की। फिर सुग्रीव ने सीता की खोड़ के लिए नाना दिशाओं में अपने निम्नलिखित वानर सेनापति भेज दियेः- उत्तर दिशा में
तब पूर्व दिशा में विनयः पश्चिम दिशा में सुषेण दक्षिण दिशा में-- हनुमत्, तार एवं वालिपुत्र अंगद ( वा. रा. कि. २९-४७ ) । हनुमत् के साथ गयें वानरसैन्य में निम्नलिखित बानर भी शामिल थे: अनंग, नील, सुहोत्र, शरारि, शरगुल्म, नज, गवाक्ष, गवय, वृप, सुग, मैद, द्विविद, गंधमादन, उल्कामुख एवं सुषेण, जांबवत् (वा. रा. कि. ४१ ) ।
राम
उपर्युक्त सेनापतियों में से हनुमत् की योग्यता जान कर राम ने उसे 'अमिशन' के रूप में 'वनामांकोपशोभित' अंगुठी सौंप दी थी ( वा. रा. क. ४४.१२) । रे. बुल्के के अनुसार, बाल्माकि रामायण में प्राप्त वानरों के प्रेषण की अधिकांश सामग्री प्रक्षिप्त है (रामकथा १.४८६ ) |
हनुमत् एवं उसके साथियों ने विंध्य पर्वत की गुफाओं में, एवं ऋबिल गुफा में, सीता का शोध किया। वह न लगने पर लगने पर, सभी वानर निरुत्साहित हो कर प्रायोपवेशन करने लगे। इतने में जटायु के माई संपाति ने एक सौ योजना की दूरी पर समुद्र में निवास करनेवाले रावण का पता वानरों को बताया। फिर हनुमत ने समुद्र लांघ कर सीता का शोध लगाया। इस कालावधी में सारे वानर एक पैर पर खड़े हो कर तपस्या करते रहे ( वा. रा. कि. ६७.२४ ) ।
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लंका पर आक्रमण मसीता को ढूँढ निकालने के उपलक्ष्य में राम ने हनुमत् की बड़ी प्रशंसा की, एवं सेवा के बारे में सारी जानकारी भी प्राप्त की पश्चात् नील को सेनापति बना कर उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र के सुमुहूर्त पर इसने लंका की ओर प्रयाण किया। इस तरह यह महेन्द्रपर्वत के शिखर पर आ पहुँचा (बा. रा. सु. १-५)
5.
. जब हनुमत् सीता से मिल कर वापस आया, तब उसके पर फम के कारण रावण के मंत्रिमंडल में काफी कोलाहल मच गया। रावण के छोटे भाई विभीषण ने उसे सलाह दी कि सीता को जल्द वापस किया जाए। रावण के द्वारा उसे इन्कार किये जाने पर, अपने अनल, पनस, संपाति एवं प्रमति नामक चार प्रधानों के साथ, विभीषण राम के पक्ष में शामिल होने के लिए उपस्थित हुआ।
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विभीषण से मित्रता -- विभीषण को अपने पक्ष में शामिल करने के संबंध में सुग्रीवादि वानर शुरु में अत्यंत नाराज थे किन्तु उस समय राम ने कहा-
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बद्धांजलिपुटं दीनं याचन्तं शरणागतम् । न हन्यादानृशंस्यार्थमपि शत्रु परंतप ॥ ( वा. रा. यु. १८.२७)
( शरण में आये हुए किसी भी व्यक्ति को, उसके सारे प्रमादों की माफी कर उसे अभयदान देना, यह मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ । )
राम ने आगे कहा, 'इस समय साक्षात् रावण भी मेरी शरण में आएगा, तो उसे भी मैं अभयदान दूँगा । ' विभीषण के द्वारा किया गया रावण पक्ष का त्याग एवं
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