Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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राम
प्राचीन चरित्रकोश
सीता के प्रति राम का विशद्ध एवं निरतिशय प्रेम का | राम के तृतीय बन्धु भरत को अपनी माता कैकेयी चित्रण वाल्मीकि रामायण में प्राप्त है ( वा.रा. अर.३.६० | का केकय राज्य प्राप्त हुआ, जिसमें सिन्धु ( आधुनिक -६६, ७५; सुं. २७-२८; ३०; यु. ६६; उ. ५)। अत्रि | उत्तर सिंध ) प्रदेश भी शामिल था। भरत के तक्ष एवं ऋषि के आश्रम में सीता ने अत्रिपत्नी अनसूया से कहा | पुष्कल नामक दो पुत्र थे, जिन्होंने आगे चल कर गंधर्व था, 'राम मुझसे इतना ही प्रेम करते है, जितना मैं लोगों से गांधार देश को जीत लिया, एवं वहाँ क्रमशः उनसे करती हैं। इसी कारण, मैं अपने आप को अत्यंत | तक्षशिला एवं पुष्कलावती नामक राजधानियों की स्थापना माग्यवान् समझती हूँ।
की ( वा. रा.उ. १०१)। इनमें से तक्षशिला नगरी के रामचरित्र के दोष-राम स्वयं एक अत्यंत सच्चरित्र | खण्डहर आधुनिक रावलपिंडी के उत्तरीपश्चिम में २० एवं क्षत्रियधर्म का पालन करनेवाला आदर्श राजा होते | मील पर स्थित भीर में प्राप्त हैं, एवं पुष्कलावती के खण्डहर हुए भी, इसके चरित्र के कुछ दोष वाल्मीकि रामायण एवं | आधुनिक पेशावर के उत्तरीपश्चिम में १७ मील पर कुभा उत्तररामचरित में दिखाये गये है, जो निम्न प्रकार है:- एवं सुवास्तु नदियों के संगम पर स्थित चारसद्दा ग्राम १. स्त्री होते हुए भी इसने ताटका का वध किया: २. खर | में प्राप्त है। से युद्ध करते समय यह तीन पग पीछे हटा (वा. रा. राम के चतुर्थ बन्धु शत्रुघ्न ने यमुना नदी के पश्चिम में भर. ३०.२३); ३. वृक्ष के पीछे छिप कर इसने वालि | सात्वत यादवों को पराजित कर, उनका राजा मधु राक्षस का का वध किया (उत्तरराम. ५); ४. लोकापवाद के भय से पुत्र माधव लवण का वध किया, एवं मधुपुरी अथवा मधुरा निर्दोष सीता का त्याग किया; ५. अहिरावण के पत्नी के (मथुरा) में अपनी राजधानी स्थापित की। महल प्रवेश किया।
__शत्रुघ्न को सुबाहु एवं शत्रुघातिन् नामक दो पुत्र थे। इसमें से अंतिम आक्षेप अनैतिहासिक मान कर छोड़ा | शत्रुघ्न के पश्चात् उनमें से सुबाहु मधुरा नगरी में राज्य जा सकता है । ताटका का वध विश्वामित्र के संमति से किये करने लगा, एवं शत्रुघातिन् को वैदिश नगरी का राज्य प्राप्त जाने के कारण, एवं खर के वध के समय शरसंधान के हुआ ( वा. रा. उ. १०७-१०८)। लिए पीछे हटने के कारण, इन दोनों प्रसंग में राम निर्दोष |
| राम के परिवार के इन लोगों के राज्य काफी दिनों : प्रतीत होता है। सीतात्याग के संबंध में व्यक्तिधर्म | तक न रह सकें । गांधार देश में स्थित तक्ष एवं पुष्कल
एवं राजधर्म का संघर्ष प्रतीत होता है । रही बात वालि- | को उसी प्रदेश में रहनेवाले दृह्य लोगों ने जीत लिया। वध की, जिस समय राम का आचरण असमर्थनीय शत्रुघ्नपुत्र, सुबाहु एवं शत्रुघातिन् को यादव राजा भीम प्रतीत होता है।
सात्वत ने मधुराराज्य से पदभ्रष्ट किया, जहाँ पुनः एक बार परिवार-राम को अपनी पत्नी सीता से कुश एवं यादववंशीयों का राज्य शुरु हुआ । लक्ष्मणपुत्र अंगद एवं लव नामक दो पुत्र उत्पन्न हुये थे, जिनका जन्म राम के चंद्रकेतु के राज्य भी नष्ट हो गये, एवं लव के उत्तर कोसल द्वारा सीता का त्याग किये जाने पर वाल्मीकि ऋषि के देश के राज्य की भी वही हालत हुई। आगे चल कर आश्रम में हुआ था। राम के पश्चात् कुश दक्षिण कोसल | अयोध्या का सूर्यवंशीय राज्य भी नष्टप्राय हुआ, एवं का राजा बन गया । लव को उत्तर कोसल देश का राज्य | उत्तरी भारत का सारा राज्य पौरव एवं यादव राजाओं प्राप्त हुआ, जिसकी राजधानी श्रावस्ती नगरी में थी। | के हाथ में चला गया। राम के पश्चात् अयोध्या नगरी उजड़ गयी, जिस कारण वाल्मीकि रामायण---रामचरित्र का प्राचीनतम विस्तृत कुश ने विंध्य पर्वत के दक्षिण तट पर कुशावती नामक ग्रन्थ 'वाल्मीकि रामायण' है, जो आदिकवि वाल्मीकि नयी राजधानी की स्थापना की।
की रचना मानी जाती है। रे. बुल्के के अनुसार, इस ग्रंथ राम के छोटे भाई लक्ष्मण को अंगद एवं चंद्रकेतु का रचनाकाल ई. पू. ३०० माना गया है। इस ग्रन्थ नामक दो पुत्र थे । उन्हें राम ने क्रमशः हिमालय पर्वत की कुल श्लोकसंख्या २४००० हैं, जो बाल, अयोध्या, के समीप स्थित कारुपथ एवं मल्ल देशों का राज्य प्रदान अरण्य, किष्किधा, सुंदर, युद्ध एवं उत्तर आदि सात कांडों किया। उन प्रदेशों में 'अंगदिया' एवं 'चंद्रचक्रा' में विभाजित है। नामक राजधानियाँ बसा कर वे दोनों राज्य करने लगे। महाभारत में रामकथा- महाभारत के वनपर्व में ( वा. रा. उ, १०२)।
। 'रामोपाख्यान' नामक एक उपपर्व है, जिसमें उन्नीस ७३९