Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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राम
प्राचीन चरित्रकोश
राम
का प्रयत्न किया। उसने कहा, 'राक्षसों का संहार कर, पंचवटी में हुयें राक्षससंहार से अकंपन नामक एक ऋषिकुलों का रक्षण करना चतुरंगसेनाधारी राजा का | राक्षस ही केवळ बच सका, जिसने एवं शूर्पणखा ने कर्तव्य है; हमारे जैसे एकाकी एवं शस्त्र-विहीन वन- | लंकाधिपति रावण को जनस्थान प्रदेश में पंचवटी ग्राम में वासियों का नहीं। इसी कारण, स्वसंरक्षण के अतिरिक्त | राम के द्वारा किए गये राक्षससंहार की वार्ता कह सुनाई। अन्य किसी कारण से भी राक्षसों का वध करना हमारे सीताहरण-इस पर रावण ने मारीच नामक अपने वनवासधर्म के लिए योग्य नहीं है।
'कामरूपधर' (मन चाहे रूप धारण करनेवाले) मित्र __इस पर राम ने कहा, 'ब्राह्मणों को अभयदान देना, | से कांचनमृग का रूप धारण करने के लिए कहा, एवं यह हर एक क्षत्रिय का कर्तव्य है, चाहे वह राज्य पर | उसकी सहाय्यता से रामलक्ष्मण को आश्रम से बाहर हो या न हो। मैंने ऋषियों को अभयदान दिया है। अब निकाल कर, ऋषिवेश में सीता का हरण किया। चाहे आकाश भी गिर पड़े; मैं अपनी प्रतिज्ञा से हरने
। उसी समय सीता के द्वारा पुकारे जाने पर जटायु ने वाला नहीं हूँ ।
रावण से युद्ध किया। किंतु रावण ने उसके दोनों पंख राम के इसी प्रतिज्ञा के कारण, दण्डकारण्य निवासी काट लिये, जिस कारण वह आहत हो कर मच्छित गिर राक्षसों से इसका शत्रुत्व उत्पन्न हुआ, एवं सीताहरण, | पड़ा। रावण से युद्ध आदि अनेकानेक आपत्तियाँ इसके वनवास
बाद में जब रामलक्ष्मण सीता को ढूंढने के लिए काल में उत्पन्न हुयीं।
निकले, तब जटायु ने इन्हें रावण के द्वारा सीता के हरण __ इस तरह दण्डकारण्य के, ऋषियों के सहवास में राम किये जाने की, एवं दक्षिण की ओर प्रस्थान करने की ने अपने वनवास के दस साल बितायें। कई आश्रम में
वार्ता कह सुनाई । इतना कह कर जटायु ने देहत्याग यह तीन महिनें रहा, तथा कहींकहीं यह एक साल तक
किया । जटायु की मृत्यु देख कर राम अत्यधिक विह्वल भी रहा । जहाँ जहाँ यह गया, वहाँ इसका हार्दिक स्वागत
| हुआ, एवं इसने उसे साक्षात् अपना पिता मान कर ही हुआ।
उसका दाहसंस्कार किया (वा. रा. अर.७२)। . इस प्रकार दस साल बड़े ही आनंद से बिताने के कबंधवध-जटायु के दाहकर्म के पश्चात, सीता की बाद, यह अगस्त्य एवं लोपामुद्रा के दर्शन के लिए | खोज करते हए राम एवं लक्ष्मण अगस्त्याश्रम की और अगत्य आश्रम में गया। वहाँ अगस्त्य ने इसे विश्वकर्मा | मुड़े । मार्ग में इन्हें कबंध नामक एक राक्षस मिला, के द्वारा भगवान् विष्णु के लिए बनाया गया दिव्य धनुष्य, | जिसका राम ने वध किया। मरते समय, कबंध ने सीता एवं अक्षय्य तुणीर प्रदान किये, एवं पंचवटी में रह | की मक्ति के लिए. ऋष्यमूक पर्वत पर पंपा सरोवर के कर वहाँ के राक्षसों का संपूर्ण नाश करने का आदेश इसे किनारे वनवासी अवस्था में रहनेवाले सग्रीव वानर की दिया (वा. रा. अर. १२.२४-३०)।
सहाय्यता लेने की राम को सलाह दी । तदनुसार राम __पंचवटी में तत्पश्चात् राम पंचवटी में पर्णकुटी बाँध | ऋष्यमूक पर्वत की ओर मुड़ा, जहाँ जाते समय, इसने कर रहने लगा। वहाँ गरुड के भाई अरुण का पुत्र जटायु | मतंगाश्रम में मतंग ऋषि की शिष्या शबरी के आतिथ्य इनसे मिला, एवं उसने रामलक्ष्मण का आश्रम में न होने | का स्वीकार किया। . के काल में, सीता के संरक्षण का भार स्वीकार लिया | वालिवध-बाद में यह सप्तसागर तीर्थ पर जा कर, (वा. रा. अर. १४)।
पंपा सरोवर की ओर चल पड़ा, जहाँसे यह ऋष्यमूक शूर्पणखावध--पंचवटी में वास करते समय, एक | पर्वत पर पहुँच गया। अपने भाई वालि के द्वारा बार लंकाधिपति रावण की बहन शूर्पणखा राम से मिलने विजनवासी किया गया सुग्रीव, राम को देख कर शंकित आई । इसे देख कर उसकी कामवासना जागृत हुई, हुआ, जिस कारण उसने अपने मंत्री हनुमत् को राम के एवं उसने इससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की। फिर पास भेज दिया। इसकी आज्ञा के अनुसार, लक्ष्मण ने उस राक्षसी के हनुमत् ने बड़ी कुशाग्र बुद्धि से इसका परिचय पूछा, नाक एवं कान काट दियें तथा उसके भाई खर एवं उसके | एवं अंत में अपनी पीठ पर बिठा कर सुग्रीव के पास ले दूषण, त्रिशिरस् आदि चौदह सेनापतियों का भी वध आया । सुग्रीव एवं राम ने आपस में मिल कर बात की, किया।
| एवं पश्चात् अग्नि की सौगंध खा कर, परस्परों को सहायता ७३०