Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
राम
प्राचीन चरित्रकोश
अपने पुत्र इंद्रजित् के वध की वार्ता सुन कर रावण अत्यधिक कुद्ध हुआ, एवं अपने खड्ग से सीता का वध करने के लिए प्रवृत्त हुआ किन्तु सुपार्थ नामक उसके आमात्य ने इस पापकर्म से उसे रोक लिया, एवं चैत्र कृष्ण १४ का दिन युद्ध की तैयारी में व्यतीत कर, अमावास्या के दिन राम पर आखिरी हमला करने की सलाह उसने उसे दी ( वा. रा. यु. ९२.६२ ) ।
रावणवध—–चैत्र अमावास्या के दिन रावण ने राक्षसों के अब के लिए हवन शुरु किया, किन्तु वानरों ने उसके यसकार्य में बाधा उत्पन्न की फिर में तमतमाता हुआ रावण, महापार्थ, महोदर एवं विरुपाक्ष नामक तीन सेनापतियों के साथ युद्धभूमि में प्रविष्ट हुआ । राम ने उसके साथ घमासान युद्ध किया । उस समय राम की सहाय्यार्थ आये हुए विभीषण एवं लक्ष्मण को रावण ने मूर्च्छित किया। सुपेण ने हिमालय से प्राप्त वनस्पतियों से उन दोनों को पुनः होश में लाया ( वा. रा. यु. १०२ ) तत्पश्चात् राम इंद्र के द्वारा दिये गये दिव्य रथ पर आरुढ हुआ, एवं अगस्त्य के द्वारा दिये गये ब्रह्मास्त्र से रावण का हृदय विदीर्ण कर इसने उसका वध क्रिया ( वा. रा. यु. ११०;म.व. २७४.२८ ) । वाल्मीकि रामायण के दक्षिणात्य पाठ के अनुसार अगस्त्य ऋषि ने राम को 'आदित्य हृदय' नामक स्तोत्र सिखाया था, जिसके पाठन से रावण का वध करने में यह यशस्वी हुआ ।
।
राम-रावण के इस अंतीम युद्ध में रावण के सिर पुनः पुनः उत्पन्न होने की कथा काल्मीकि रामायण में प्राप्त है। इस कथा के अनुसार, राम ने रावण के कुछ एक सिर काट दियें (एकमेव शतं छिन्नं शिरसा तुल्यवर्चसः) ( वा. रा. यु. १०७.५० ) ।
अध्यात्म रामायण के अनुसार, रावण के नाभिप्रदेश में अमृत रखा था। विभीषण की सलाह के अनुसार, राम ने ‘आग्नेय अस्त्र' छोड़ कर उस अमृत को सुखा दिया, एवं रावण का वध किया ( अध्या. रा. युद्ध. ११.५३, आ. रा. १. ११.२७८९ )
महाभारत के अनुसार, रावण ने अंतीम युद्ध के समय राम एवं लक्ष्मण का रूप धारण करनेवाले बहुत से मायामय योद्धाओं का निर्माण किया था। किन्तु राम ने अपने ब्रह्मास्त्र से इन सारे योद्धाओं को रावण के साथ ही जला दिया, जिस कारण उनकी राख भी शेष न रही (म. ६.२७४.८ ३१ ) |
राम
रावणवध से राम-रावण युद्ध समाप्त हुआ। तत्पश्चात् राम के अनुरोध पर विभीषण ने अपने भाई रावण का विधिवत् अभिसंस्कार किया ( वा. रा. यु. १११ ) | मंदोदरी आदि रानियों को सांत्वना दे कर इसने उन्हें लंका के लिए रवाना किया। रावण की अंतीम क्रिया होने के उपरान्त, राम ने लक्ष्मण के द्वारा विभीषण को लंका का राजा बना कर उसका राज्याभिषेक किया। बाद में, राम ने समुद्र में बनाया हुआ सेतु भी तोड़ा, जिससे आगे चराको परकीय आक्रमण का भय न रहे (पद्म. सु. ३८ ) ।
अनि परीक्षा तत्पश्चात् विभीषण के द्वारा सीता को शिबिका में बैठा कर राम के पास लाया गया। इस समय राम ने सीता से कहा, रावण से युद्ध कर मैंने तुझे आज विमुक्त किया है। मैंने आज तक किया हुआ तुम्हारे आसक्ति के कारण नहीं, बल्कि एक क्षत्रिय के नाते मेरा कर्तव्य निभाने के लिए किया है । तुझे पुनः प्राप्त करने में मुझे आनंद जरूर हुआ है किन्तु इतने दिनों तक एक अन्य पुरुष के घर तुम्हारे रहने के कारण, तुम्हारा पुनः स्वीकार करना असंभव है।
--
राम का यह कथन सुन कर, सीता ने अपने सतीत्व की सौगंध खायी एवं लक्ष्मण के द्वारा चिता तैयार कर, वह अभिपरीक्षा के लिए सिद्ध हुई ( वा. रा. यु. ११६ ) । इतने में अनेक देवता के सम्मुख अभि देवता नें सीता के सतीत्वका साथ दिया, एवं उसका स्वीकार करने के लिए राम से कहा । तत्र राम ने सीता के अग्निपरीक्षा के संबंध में अपनी भूमिका विशद करते हुए कहा, 'मुझे सीता पर संदेह नहीं है, एवं कभी नहीं था। मैंने यह सब कुछ इसलिये कहा कि, कोई भी सीता के चरित्र पर आक्षेप न करें ( वा.रा.यु. ११८ ) ।
दक्षिण की विजययात्रा - इस तरह रावण से युद्ध कर, उसका वध करने के कारण, राम का वनवास पाण्डवों के वनवास की भाँति केवल एक वनवास ही न रह कर, दक्षिण भारत की विजययात्रा में परिणत हुआ ।
अपने चौदह वर्षों के वनवास में से १२|| वर्ष इसने पंचवटी में वनवासी तपस्वी की भाँति व्यतीत किये। बनवाल के बाकी बचे हुए || वर्ष इसने राक्षसों के संग्राम में व्यतीत किया, जो कार्तिक कृष्ण १० के दिन शूर्पणखा वध से प्रारंभ हुआ, एवं अगले साल के वैशाख शुक्ल १२ के दिन रावणवध से समाप्त हुआ । इस राक्षससंग्राम के कारण, रावण के द्वारा लंका में
७३४