Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
रंभा
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, विश्वामित्र ने इसे ब्राह्मण के द्वारा उद्धार होने का उःशाप भी प्रदान किया था।
स्कंद में श्वेतमुनि के द्वारा इसका उद्धार होने की कथा प्राप्त है । एकबार श्वेतमुनि का एक राक्षसी से युद्ध हुआ । उस समय तमुनि के द्वारा छोडे गये' वायु अस्त्र' के कारण वह राक्षसी एवं शिलाखंड बनी हुयी रंभा, दोनों भी आँधी में फँसकर 'कपितीर्थ में जा गिरी। इस कारण रंभा एवं राक्षसी का रूप प्राप्त हुयी वारांगना दोनों भी मुक्त हो गयीं (स्कंद्र. ३.१.३९ ) ।
महाभारत में अन्यत्र इसे तुंबरू नामक गंधर्व की पत्नी कहा गया है (म. उ. १०.११.११२ ) । किन्तु वाल्मीकि रामायण में इससे संबंध रखने के कारण, तुंबरू को विराध नामक राक्षस का रूप प्राप्त होने की कथा प्राप्त है ( वा. रा. अर. ४.१६-१९ ) । इससे प्रतीत होता है कि, सुंब इसका वास्तव पति नहीं था।
प्राचीन चरित्रकोश
२. मयासुर की पत्नी, जिससे इसे निम्नलिखित छः संतान उत्पन्न हुयी थी :-- मायाविन्, दुंदुभि, महिष, कालिका, अजकर्ण एवं मंदोदरी ( ब्रह्मांड. ३.६.२८ - २९) ।
रम्यक - - ( स्वा. प्रिय. ) ' रम्यककर्ष' नामक देश का राजा, जो भागवत के अनुसार, आशीघ्र राजा का पुत्र था । इसकी माता का नाम ' पूर्णवित्ति ' एवं पत्नी का नाम " रम्या' था।
रहूगण
"
रशाद -- (सो. क्रोष्टु. ) एक यादव राजा, जो विष्णु एवं वायु के अनुसार 'स्वाहि राजा का भागवत के अनुसार 'श्राहि राज्य का एवं मास्य के अनुसार 'स्वाह' राजा का पुत्र था। भागवत में इसे कोकु, एवं विष्णु तथा मत्स्य में इसे 'रुपद्गु ' कहा गया है।
6
रश्मि -- सुतप देवों में से एक ।
के द्वारा मारा गया था (बा. रा. ६ . ९४०) । रश्मिकेतु-- रावण के पक्ष का एक राक्षस, जो राम यु. रश्मिवत् एक सनातन विश्वेदेव
रस- तुषित देवों में से एक। रसद्वीचि -- अत्रिकुलोत्पन्न गोत्रकार हरप्रीति का नामांतर |
-
रसपासर एक आचार्य, जो वायु के अनुसार, व्यास की सामशिष्य परंपरा में से कुथुमि नामक आचार्य का शिष्य था । ब्रह्मांड में इसे पराशर कहा गया है।
रसमंथरा, रसवल्लरी, रसालया -- श्रीकृष्ण की प्राणसखियाँ (पद्म. पा. ७४) ।
रसिप - एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था।
रहस्युदेव मलिम्लुच -- एक व्यक्ति, जिसने 'मुनिमरण' नामक स्थान पर संततुल्य वैखानसों का वध किया (पं. बा. १४.४.७ ) ।
रहगण - एक परिवार, जिसमें गोतम राहूगण नामक ऋषि का जन्म हुआ था। शतपथ ब्राह्माण में इनका निर्देश 'राहूगण' नाम से प्राप्त है । इस पैतृक नाम को धारण. करनेवाले अनेक 'आचायों का निर्देश यहाँ प्राप्त है
रम्यामेरु की नौ कन्याओं में से पांचवी कन्या, जो (श. ब्रा. १.४.१०-१९ ) । रम्यक राजा की पत्नी थी ( भा. ५.२.६३ )
वेद में गोतमऋषि का पैतृक नाम 'राग' बताया
रय - - (सो. पुरूरवस् ) एक राजा, जो भागवत के गया है । गोतम के द्वारा रचित एक सूक्त में वह कहता अनुसार, पुरूरव राजा का पुत्र था। है, 'हम राहूगण अनि के इन मधुस्तोत्रों की रचना २. एक प्रजापति, जो स्वायंभुव मन्वन्तर के वसिष्ठ करते हैं' (ऋ. १.७८.५ गोतम ३. देखिये ) । गोतम ऋषि का पुत्र था । राहूगण विदेघ देश के माधव राजा का उपाध्याय था ।
२. सिंधुसौवीर देश का एक राजा, जिसका भरत (जड) नामक तत्वज्ञ के साथ संवाद हुआ था ।
"
रवि-सौवीर देश का एक राजकुमार, जो जयद्रथ राजा का भाई था। यह जयद्रथ के पीछे हाथ में ध्वजा लेकर चलता था (म.व. २४९.१० ) । जयद्रथ के द्वारा दौपदी का हरण किये जाने पर हुये युद्ध में अर्जुन के द्वारा इसका वध हुआ था।
एक बार यह पालकी में बैठकर कपिलाश्रम में प्रदाशान का उपदेश सुनने जा रहा था। जब यह इक्षुमती नदी के तट पर जा पहुँचा, उस समय वहाँ के अधिपति ने वह २. धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक, जो भीमसेन के भरत को पालकी उठाने के लिए पकड़ लाया। भरत स्वयं
द्वारा मारा गया था ( म. श. २५.१२ ) ।
एक महान् तत्त्वज्ञ एवं सिद्ध पुरुष है, इसका पता चलते ही यह उसकी शरण में गया, एवं उससे शरीर तथा आत्मा की मिनाता के संबंध में इसने ज्ञान संपादन किया (मा. ५.१०-१४ भरत जड देखिये) ।
भागवत में प्राप्त 'भरत- रहूगण संवाद' में इक्षुमती नदी, चक्र नदी, शालग्राम तीर्थ, पुलख्य एवं पुलह
७२०