Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मित्रवत्
प्राचीन चरित्रकोश
मिथु
मित्रवत्-एक तपस्वी, जो सौपुर नामक नगर में मित्रसेन-दुर्योधन के पक्ष का एक राजा, जो अर्जुन रहता था। एक बार इसने शिव के मंदिर में गीता के के द्वारा मारा गया (म. क. १९.२०)। पाटभेद दूसरे अध्याय का पाठ किया, जिस कारण इसके मन को (भांडारकर संहिता)-'मित्रदेव'। पूर्णशान्ति प्राप्त हुयी।
२. रुद्रसावणि मनु का एक पुत्र । ___ आगे चल कर, देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण को मनः मित्रहन्--रुद्रसावर्णि मनु का एक पुत्र । शान्ति की इच्छा उत्पन्न हुयी । फिर मुक्तकर्मा नामक मित्रा--मैत्रेय कोषारव नामक आचार्य की माता तपस्वी के कहने पर वह इसके पास आया । पश्चात् इसने | (मैत्रेय कोषारव देखिये)। देवशर्मा को भी गीता के दूसरे अध्याय का पठन करने २. देवी उमा की अनुगामिनी सखी (म. व. २२१. के लिए कहा (पन. उ. १७६ )।
२०)। . २. पांचजन्य अग्नि का एक पुत्र, जो पाँच देव विनायकों | मित्रातिथि--एक राजा, जो कुरुश्रवण राजा का में से एक माना जाता है (म. व. २१०.११)। पिता, एवं उमश्रवस् राजा का पितामह था (ऋ. १०.३३. ३. रुद्रसावर्णि मनु के पुत्रों में से एक।
७)। इसकी मृत्यु के पश्चात् , कवष ऐलुष नामक ऋषि ने मित्रवर्चस् स्थैरकायण--एक आचार्य, जो सुप्रतीत इसके पौत्र उमश्रवस् की सांत्वना की थी। औलुण्डय नामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का मित्रावरुण-मित्र एवं वरुण' देवताओं के लिए नाम ब्रह्मवृद्धि छांदोग्यमाहकि था (वं. ब्रा. १)। प्रयुक्त संयुक्त नामांतर (म. श. ५३.१२; मित्र एवं वरुण
'स्थिरक' का वंशज होने के कारण, इसे 'स्थैरकायण' | देखिये)। इनका आश्रम 'कारपवनतीर्थ' के समीप था। पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा।
२. वसिष्ठकुलोत्पन्न एक प्रवर, जिनके पुत्रों का नाम मित्रवर्धन--पांचजन्य अग्नि का पुत्र, जो पाँच देव अगस्त्य एवं वसिष्ठ था (भा. ६.१८.५)। विनायकों में से एक माना जाता है (न. व. २१०.११)। मित्रेयु--नीलवंशीय राजा मित्रयु के लिए उपलब्ध
मित्रवर्मन्--त्रिगर्तराज सुशर्मन् का भाई, जो भारतीय | पाठभेद (मित्रयु १. देखिये )। . युद्ध में अर्जुन के द्वारा मारा गया (म. क. १९.९)। मिथि--(सू . निमि.) विदेह देश का एक राजा,
मित्रविंद -रुद्रसावर्णि मनु का एक पुत्र। जो निमिराजा के मृत देह का मंथन करने पर उत्पन्न हुआ
२. एक देवता । रथन्तर नामक अग्नि को दी हुयी हवि था । मंथन से उत्पन्न होने के कारण, इसे 'मिथि' अथवा इसे प्राप्त होती है (म. व. २१०.१९)।
'मिथिल' नाम प्राप्त हुआ था (भा. ९.१३. १३)। मित्रविंद काश्यप-एक आचार्य, जो सुनीथ कापटव विदेह देश की राजधानी मिथिला की स्थापना इसीनामक आचार्य का शिष्य था। इसके शिष्य का नाम ने की थी। इसके पुत्र का नाम उदावपु था (वायु. ८९. केतु वाज्य था (वं. बा.१)।
४-६; ब्रह्मांड. ३.६४.१-६)। मित्रविंदा-अवंतीनरेश जयसेन राजा की कन्या, मिथिल-(सो. अज.) एक राजा, जो भरत का जो श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थी। इसकी |
वंशज था। इसके पुत्र का नाम जह्न था (म. अनु. ७. माता का नाम राजाधिदेवी था, जो श्रीकृष्ण की फूफा
२)। महाभारत के बम्बई संस्करण में प्राप्त वंशावली में, थी। इसे दिन्द एवं अनुविंद नामक दो भाई थे।
इसके स्थान पर अजमीढ़ राजा का नाम प्राप्त है। इसके स्वयंवर के समय, श्रीकृष्ण ने इसका हरण
२.(सू. निमि.) निमिपुत्र मिथि राजा का नामान्तर। किया। श्रीकृष्ण से इसे निम्नलिखित दस पुत्र उत्पन्न हुयें थे:-वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, उन्नाद, महाश, पावन, मिथु-एक शूर दानव । एक समय सरस्वती नदी के वह्नि एवं क्षुधि (भा. १०.५८. ३०-३१, ६१.१६)। | किनारे, आर्टिषेणपुत्र भर राजा अपने उपमन्यु नामक
द्वारका में इसका महल वैदूर्य मणि के समान कान्ति- पुरोहित के साथ अश्वमेध यज्ञसमारोह कर रहा था। मान, एवं हरे रंग का था। देवगण भी उसकी सराहना | इसने भर एवं उपमन्यु इन दोनों को उठा कर पाताल में करते थे (म. स. परि. १.२१.१२६०)।
भगाया। पश्चात् उपमन्यु के देवापि नामक पुत्र ने शिव मित्रसह-इक्ष्वाकुवंशीय कल्माषपाद राजा का की उपासना कर उन दोनो की मुक्तता की (ब्रह्म. १२७. नामांतर।
| ५६-५७)। ६५३