Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मुगल
प्राचीन चरित्रकोश
६. अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार, मंत्रकार एवं प्रवर । ५. दस विश्वेदेवों में से एक ।
७. एक आचार्य, जो व्यास की ऋशिष्यपरंपरा में ६. वैवस्वत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । से देवमित्र ऋषि का शिष्य था। इसके नाम के लिए ७. प्रसूत देतों में से एक। 'मौद्गल' पाठभेद प्राप्त है।
८. अमिताभ देवों में से एक । मुक्तिकोपनिषद में इसका निर्देश उपलब्ध है (मु. ९. (स. निमि.) विदेह देश का एक राजा, जो वायु .. उ. १.३५ )। इसके नाम पर एक स्मृति भी प्राप्त है | के अनुसार प्रद्युम्न राजा का पुत्र था। विष्णु एवं भागवत (C.C.)।
में इसे 'शुचि' कहा गया है। ८. चोल देश के राजा का पुरोहित, जिसने अपने १०. एक राजा, जो द्युतिमत् राजा के सात पुत्रों में से राजा के लिए विष्णुयाग नामक यज्ञ किया था। इसके | एक था। इसका देश (वर्ष) इसी के नाम से सुविख्यात द्वारा किया गया यह याग निष्फल शाबित हुआ, जिस | था (मार्क. ५.२४)। कारण चोल राजा ने आत्महत्त्या की, एवं इसने अपनी | ११. एक ऋषिविशेष । महाभारत एवं पुराणों में ऋषि शिखा उखाड डाली । तब से मुद्गल वंश के ब्राह्मण शिखा एवं मुनियों का निर्देष अनेक बार आता है, उनमें से नही रखते है (पन. उ. १११; स्कंद. २.४.२७)। 'मुनि' शब्द की व्याख्या महाभारत में इसप्रकार दी
इसकी स्त्री का नाम भागिरथी था, जिससे इसे मौद्गल्य | गयी है :नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (मौद्गल्य २. देखिये)।
मौनाद्धि स मुनिर्भवति, नारण्यवसनान्मुनिः । पद्म में 'द्वादशीव्रत महात्म्य कथन करने के लिए, मुद्गल
(म. उ. ४३.३५)। नामक एक ब्राह्मण की कथा दी गयी है (पन. उ.६६)। (कोई भी साधक मौनव्रत का पालन करने से मुनि बनता स्कंद में क्षीरकुंड का माहात्म्य कथन करने के लिए, मुद्गल | है. केवल वन में रहने से नही)। की एक कथा दी गयी है (स्कंद. १.३.३७)। संभवतः
| उपनिषदों के अनुसार, अध्ययन, यज्ञ, व्रत एवं श्रद्धा इन सारी कथाओं में निर्दिष्ट मुद्गल एक ही व्यक्ति होगा। | से जो ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त करता है, उसे मुनि कहा गया ९. एक गणेशभक्त ब्राह्मण, जिसने संभवतः गणेश
है (बृ. उ. ३.४.१, ४.४.२५; तै. आ. २.२०)। जीवन पर आधारित 'मुद्गल पुराण' की रचना की थी।
| सन्तान एवं दक्षिणा की प्राप्ति आदि पार्थिव विचारों मुद्गला--एक ब्रह्मवादिनी स्त्री।
का आचरण करनेवाले व्यक्तियों को प्राचीन ग्रंथों में मुद्गलानी--मुद्गल नामक राजा की पत्नी, जिसे | पुरोहित कहा गया है। इंद्रसेना नालायनी नामान्तर भी प्राप्त था (म. व. ११४. |
__ मुनिवीर्य-एक सनातन विश्वेदेव (म. अनु. ९१. २४; मुद्गल देखिये)। भांडारकर संहिता में इसके नाम । के लिए 'नाडायनी' पाठभेद प्राप्त है।
मुनिशर्मन्--एक विष्णुभक्त ब्राह्मण । इसने पिशाचमुद्गलायन--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। | योनि में प्रविष्ट हुए निम्नलिखित व्यक्तियों का उद्धार किया
मुनि--कश्यप ऋषि की पत्नी, जो प्राचेतस दक्ष | था:-वारिवाहन, चन्द्रशर्मा, वेदशर्मा, विदुर, एवं नंद प्रजापति की कन्या थी। इसकी माता का नाम असिनी । (पन. पा.९४)। था। इसे कश्यप ऋषि से भीमसेन आदि सोलह देवगंधर्व | ममचु--दक्षिण दिशा में रहनेवाला एक ऋषि पुत्र उत्पन्न हुए थे (म. आ. ५९.४१-४३; कश्यप | (म. अनु.१६५.३९)। देखिये)।
__मुर--एक दैत्य, जो ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न हुए २. अहन् नामक वसु का एक पुत्र (म. आ. ६७. | तालजंघ नामक दैत्य का पुत्र था। इसकी राजधानी चंद्रवती २३)।
नगरी में थी। इसके नाम के लिए मुरु 'पाठभेद प्राप्त है। . ३. (सो. पूरु.) कुरु राजा के पाँच पुत्रों में से एक, वध-ब्रह्मा के अंश से उत्पन्न होने के कारण, इसने जिसकी माता का नाम वाहिनी था। इसे निम्नलिखित | समस्त देवों का ही नहीं, बल्कि साक्षात् श्रीविष्णु का भी चार भाई थे:--अश्ववान् , अभिष्यन्त, चैत्ररथ एवं । पराजय किया। इससे घबरा कर, श्रीविष्णु ने रणभूमि से जनमेजय (म. आ.८८.५०)।
पलायन किया, एवं वह बद्रिकाश्रम की सिंहावती नामक ४. रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक ।
| गुंफा में योगमाया का आश्रय ले कर सो गया । किन्तु मुर प्रा. च. ८३]