Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
याज्ञवल्क्य
प्राचीन चरित्रकोश
यामिनी
इस वेद के श्रौतसूत्र की रचना कात्यायन ने की है। | यातुधान--एक राक्षस, जो कश्यप एवं सुरसा के उसमें "श्रौत' एवं 'गृह्य' ये दोनों सूत्र समाविष्ट किये | के पुत्रों में से एक था। इसके कुल में उत्पन्न राक्षसों को गये है, जिसमें से 'गृह्य' सूत्र 'पारस्कर गृह्यसूत्र' नाम | 'यातुधान' वांशिक नाम प्राप्त था। से सुविख्यात है। इन सूत्रों का प्रतिशाख्य भी कात्यायन २. एक राक्षससमूह, जो रक्षस् एवं जंतुधना की संतान के द्वारा ही विरचित है।
मानी जाती है । इस समूह में निम्नलिखित राक्षस शामिल शुक्लयजुर्वेद का शिक्षाग्रंथ ' याज्ञवल्क्य शिक्षा' है, जो
थे:-- हेति, प्रहेति, उग्र, पौरुषेय, वध, विद्युत्, स्फूर्ज, इस वेद के उच्चारण की दृष्टी से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
वात, आय, व्याघ्र, सूर्य (ब्रह्मांड, ३.७.९०; रक्षस् स्वर एवं उच्चारण की दृष्टी से यह वेद अन्य वेदों से काफी
देखिये)। अलग है । प्रायः इस वेद में 'य' एवं 'ष' का उच्चारण
__ यातुधानी--एक कृत्या, जो राजा वृषादर्भि के द्वारा क्रमशः 'ज' एवं 'ख' जैसे किया जाता है । अनुस्वारों
किये गये यज्ञ में से उत्पन्न हुयी थी (म. अनु. ९३. का उच्चारण भी सानुनासिक किया जाता है। इस वेदों
५३)। वृषादर्भि ने इसे सप्तर्षियों का वध करने के लिए के स्वर भी उच्चारण से व्यक्त करने के बदले, हाथों के
उत्पन्न किया था। 'मनसा' नाम धारण कर यह द्वारा अधिकतर व्यक्त किये जाते हैं।
सप्तिर्षियों के पास उनके नाशार्थ गयी । किन्तु वहाँ
उपस्थित शुनःसखरूपधारी इन्द्र ने इसका वध किया याज्ञवल्क्यस्मृति--इस ग्रंथ में एक हजार श्लोक हैं,।।
(बृषादर्भि देखिये)। जो तीन काण्डों में विभाजित किये गये हैं। यद्यपि इस
याद्व-एक लोकसमूह, जो संभवतः यदु लोगों का ग्रंथ के आरंभ में इसकी रचना का श्रेय 'शतपथ ब्राह्मण"
ही नामांतर होगा। यदु राजा के वंशज होने से इन्हे यह 'योगशास्त्र' आदि ग्रंथों के रचयिता योगीराज याज्ञवल्क्य
नाम प्राप्त हुआ होगा । ऋग्वेद मे इनके संपत्ति का एवं को दिया गया है, फिर भी 'मिताक्षरा' के अनुसार, इस
दानशूरता का उल्लेख प्राप्त है (ऋ. ७.१९.८)। ग्रंथ का रचयिता याज्ञवल्क्य न हो कर, इसका कोई शिष्य
उसी ग्रंथ में अन्यत्र आसंग प्लायोगि नामक आचार्य के था। फिर भी इस ग्रंथ की विचारधारा शुक्लयजुर्वेद
द्वारा इनके पशुसंपत्ति का निर्देश किया गया है (ऋ. एवं तत्संबंधित अन्य ग्रंथों से काफ़ी साम्य रखती है।
८.१.३१)। इस ग्रंथ में प्राप्त व्यवहारविषयक विवरण अग्निपुराण | . पर्श राजा एवं उसका पुत्र तिरिंदर से इन लोगों का में प्राप्त 'व्यवहारकाण्ड' से मिलता जुलता है । इस स्मृति शत्रत्व था। तिरिंदर ने इन्हे दास बना कर इनका दान में प्राप्त वेदान्तविषयक विवरण शंकराचार्य के 'ब्रह्मसूत्र' | किया था (ऋ. ८.६.४८)। सायणाचार्य के अनुसार, से काफी मिलता जुलता है (याज्ञ. ३.६४; ६७; ६९; | इनकी सारी संपत्ति तिरिंदर ने वत्स काण्व नामक आचार्य १०९, ११९; १२५; १४०; २०५)।
को प्रदान की थी। हर एक सप्ताह में अंतर्भूत किये गये 'इतवार',
यान-वसिष्ठ के पुत्रों में से एक । 'सोमवार' आदि वारों का संबंध आकाश में स्थित 'रवि,' | याम--स्वायंभुव मन्वन्तर का एक देवतासमूह (म. 'सोम' आदि ग्रहों से है, ऐसा स्पष्ट निर्देश याज्ञवल्क्यस्मृति | भी. ८.१.१८)। इस समूह में निम्नलिखित बारह देव में, प्राप्त है। इस स्मृति में नाणक आदि सिक्कों का, शामिल थे:- यदु, ययाति, विवध, स्त्रासत, मति, विभास, एवं ताम्रपट, शिलालेख आदि उत्कीर्ण शिलालेखों का भी
ऋतु, प्रयाति, विश्रुत, द्युति, वायव्य एवं संयम (ब्रह्मांड, निर्देश प्राप्त हैं (याज्ञ. १.२९६, ३१५)। इन निर्देशों २.१३.९३)। से प्रतीत होता है कि, इस ग्रंथ का रचनाकाल ई. स. पह
| यामायन-एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित वैदिक ली शताब्दी के लगभग होगा।
सूक्तद्रष्टाओं के लिए प्रयुक्त है:-ऊर्ध्वकृषन (ऋ. १०. याज्ञसेन--शिखंडिन् नामक आचार्य का पैतृक नाम
| १४४ ); कुमार (ऋ. १०.१३५); देवश्रवस् (ऋ. १०. ( सा. बा. ७-४)।
१७); मथित (ऋ. १०.१९): शंख (ऋ. १०.१५) यानसेनी--द्रपदपुत्र शिखंडिन् का नामान्तर (म. | एवं संकुसुक (ऋ. १०.१८)। भी. १०८.१९)।
___ यामिनी-प्राचेतस दक्ष प्रजापति की कन्या, जो कश्यप याज्ञयि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । | ऋषि की पत्नियों में से एक थी। इसकी संतान शलभ
६९३