Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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युधिष्टिर
प्राचीन चरित्रकोश
युधिष्ठिर
किस तरह आचरण करना चाहिये, इस विषय में उपदेश | सकती है ? शत्रुत्व युद्ध से घटता नही, बल्कि बढ़ता है। किया था । पश्चात् अपने बन्धु एवं द्रौपदी के साथ, इसी कारण शांति में जो सुख है, वह युद्ध में कहाँ ? मत्स्य राज विराट के यहाँ इसने अज्ञातवास का एक वर्ष इसी दौत्यकर्म के समय धृतराष्ट्र के राजगृह में रहनेबिताया (म. वि. ६. ११)।
| वाली अपनी माता कुन्ती से मिलने के लिए, इसने श्रीकृष्ण ___ यह द्यूतक्रीडा का बड़ा शौकिन एवं ब्रडा प्रवीण | को बार बार प्रार्थना की थी। इसने कहा, 'हमारी खिलाडी था । यह द्यूत में विराट के धन को जीतता था, माता कुन्ती को जीवन में दुख के सिवा अन्य कुछ भी एवं गुप्त रूप से वह अपने भाईयों से देता था ( म. वि. नही प्राप्त हुआ। फिर भी बाल्यकाल में उसने दुर्योधन १२.५ )। एक बार मृत खेलते समय इसने बृहन्नला से हमारा संरक्षण किया। (अर्जुन ) की काफी तारीफ की, जिस कारण क्रुद्ध होकर कृष्णदौत्य-युधिष्ठिर के कहने पर श्रीकृष्ण दुर्योधन विराट ने इसकी नाक पर एक पासा फेंक कर मारा। के दरबार में गया, एवं उसने कहा, 'अविस्थल, वृकस्थल उससे इसकी नाक से खून बहने लगा, जिसे द्रौपदी ने माकंदी (आसंदी), वारणावत आदि पाँच गाँव अपने पल्ले से पोंछ लिया था (म. वि. ६३)।। पाण्डवों के भरणपोषण के लिए आप युधिष्ठिर को दे दे ।
संधि का प्रयत्न--ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी के दिन पाण्डव इतना छोटा हिस्सा प्राप्त होने पर भी, युधिष्ठिर धार्तराष्ट्रों अपने वनवास एवं अज्ञात वास से प्रकट हुये। तत्पश्चात् से संधि करने के लिए तैय्यार है (म. उ. ७०-७५)। इसने द्रुपद राजा के पुरोहित को राज्य का आधा हिस्सा किन्तु दुर्योधन ने सूई का नोंक के बराबर भी भूमि माँगने के लिए भेज दिया (म. उ. ६.१८)। पुरोहित | पाण्डवों को देना अमान्य कर दिया (म. उ. १२६.२६)। ने धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर का संदेश कह सुनाया, एवं भीष्म अन्त में कुरुक्षेत्र में हिरण्यवती नदी के किनारे खाई खोद द्रोणादि ने भी उसका समर्थन किया। धृतराष्ट्र ने युधिष्ठिर कर युधिष्ठिर ने अपनी सेना एकत्र की (म. उ. १४९.७की माँग का सीधा जवाब नहीं दिया, किन्तु संजय के ७४)। युद्ध टालने का अखीर का प्रयत्न करने के लिए, हाथों इतना ही संदेश भेद दिया, 'मैं आप से सख्य | इसने फिर एकबार उलूक राजा को मध्यस्थता के लिए भाव रखना चाहता हूँ। जो लोग मूढ एवं अधर्मज्ञ दुर्योधन के पास भेज दिया, एवं कहा 'भाईयों का यह होते है, वे ही केवल युद्ध की इच्छा रखते है। तुम स्वयं रिश्ता न टूटे तो अच्छा'। किन्तु मामला उलझता ही ज्ञाता हो । इसी कारण अपने बांधवों को युद्ध से परावृत्त | गया, सुलझा नही, एवं भारतीय युद्ध का प्रारंभ हुआ करो, यही उचित है ।
| (म. उ. १५७). इस पर युधिष्ठिर ने जवाब दिया, 'वनवास के आपत्काल | भारतीय युद्ध-पाण्डवपक्ष के योद्धा--भारतीय युद्ध में पाण्डवों ने भिक्षा माँग कर अपना गुजारा किया है। प्राचीन भारतीय इतिहास का पहला महायुद्ध माना जाता अभी आपत्काल समाप्त होने पर भिक्षावृत्ति से जीना है। इस कारण इस युद्ध में तत्कालीन भारतवर्ष का हर हमारे लिए असंभव है। फिर भी शान्ति का आखिरी एक राजा, कौरव अथवा पाण्डव किसी न किसी पक्ष में प्रयत्न करने के लिए मैं श्रीकृष्ण को धृतराष्ट्र के दरबार में शामिल था। भारतीय युद्ध में पाण्डवों के पक्ष में निम्नभेज देता हूँ।
लिखित देश शामिल थे:__युधिष्ठिर-कृष्ण संवाद-युधिष्टिर पहले से ही युद्ध १. मध्यदेश के देश-वत्स, काशी, चेदि, करूष, करने के विरुद्ध था। इसी कारण,इसने कृष्ण से हर प्रयत्न दशार्ण एवं पांचाल । पार्गिटर के अनुसार, मध्यदेश में से से युद्ध टालने की प्रार्थना की। इसने कहा, 'युद्ध में मत्स्य, पूर्व कोसल; एवं विंध्य एवं आडावला पर्वत में सर्वनाश के सिवा कुछ संपन्न नही होता है। जिस तरह रहनेबाली वन्य जातियाँ भी पाण्डवों के पक्ष में शामिल थी। पानी में मछलिया एक दूसरी के साथ झगडती हैं, एवं २. पूर्व भारत के देश--पूर्व भारत में से केवल पश्चिम एक दूसरी को खा जाती है, उसी तरह युद्ध में क्षत्रिय, मगध देश एवं उसका राजा जरासंधपुत्र सहदेव पाण्डवों क्षत्रिय के साथ झगड़ते है, एवं एक दूसरे का संहार करते | के पक्ष में थे। है । क्षत्रिय लोग युद्ध में पराजय की अपेक्षा मृत्यु को | ३. पश्चिम भारत--गुजरात में एवं गुजरात के पूर्व अधिक पसंत करते है। किन्तु जिस युद्ध में अपने सारे | भाग में रहनेवाले. यादव राजा, जैसे कि, वृष्णि राजा बान्धवों का संहार होता हैं, उससे सुख की प्राप्ति कैसे हो युयुधान एवं यादव राजा सात्यकि ।
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