Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मेघहास
प्राचीन चरित्रकोश
मेधातिथि काण्व
इसने अपने पिता को आकाश की ग्रहमाला में स्थान, | ४. एक प्राचीन महर्षि, जिसका पिता कण्व पूरब के एवं स्वयं के लिए 'नैर्ऋताधिपत्व' प्राप्त किया (ब्रह्म. | सप्तर्षियों में से एक था (म. शां. २०१.२६)। १४२)।
- महाभारत के अनुसार, यह एक दिव्य महर्षि था, एवं मेवक-धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न 'सेचक' नामक सर्प का इसने वानप्रस्थाश्रम का स्वीकार कर, स्वर्ग-प्राति की थी नामान्तर (सेचक देखिये)।
(म. शां. २३६.१५)। उपरिचर वसु राजा के यज्ञ का मेद-ऐरावतकुल में उत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय | यह एक सदस्य था (म. शां. ३२३.७)। यह इंद्रसभा के सर्पसत्र में दग्ध हुआ।
का भी सदस्य था (म. स. ७.१५)। शरशय्या पर पड़े मेदिनी-पृथ्वी का एक नाम । भगवान् विष्णु के | हुए भीष्म से यह मिलने के लिये आया था, एवं द्वारा मधु एवं कैटभ नामक दो दैत्यों का वध होने पर, | युधिष्ठिर के द्वारा यह पूजित हुआ था (म. अनु. २६. . उनकी लाशें जल में डूब कर एक हो गयी, एवं उन्हीके | ३-९)। मेद से सारी पृथ्वी आच्छादित हों गयी । इसी कारण पृथ्वी । ५. सुमेधस् देवों में से एक। को 'मेदिनी' नाम प्राप्त हुआ (मधुकैटभ देखिये)। । ६. एक ऋषि, जो परिक्षित राजा की मृत्यु के समय
मेदोहन-भीषण नामक राक्षस का पुरोहित। | उपस्थित था (भा. १.१९.१०)। मेध--एक यज्ञकर्ता आचार्य, जिसका निर्देश कण्व
। ७. दक्षसावणि मनन्तर के सप्तर्षियों में से एक। .. एवं दीर्घनीथ लोगों के साथ प्राप्त है (ऋ. ८.५०.१०)। मेधातिथि काण्व-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ.१.'
२. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो प्रियव्रत राजा का | १२.२३, ८.१.३-२९; २.४१-४२, ९२)। ऋग्वेद पुत्र था (मार्क. ५०.१६)।
में अन्यत्र इसका निर्देश 'मेध्यातिथि काव' नाम से ' मेधज--सुमेधस् देवों में से एक ।
प्राप्त है (ऋ. १.३६.१०)। इसने स्वयं को ' काण्व । मेधस्--स्वायंभुव मनु के पुत्रों में से एक।
मेधातिथि' कहलाया है (ऋ. ८.२०.४०)। . . २. सुमेधस् देवों में से एक।
वैदिकऋषि--यह कण्व का वंशज, एवं प्रसिद्ध वैदिक मेधा--दक्ष प्रजापति की कन्या एवं धर्म ऋषि की ऋषि था। ऋग्वेद के अनुसार, इंद्र इसके पास एक मेष पत्नी । इसके पुत्र का नाम स्मृति था।
के रूप में आया था. (ऋ. ८.२.४०)। यही पुराकथा मेधातिथि-(स्वा. प्रिय.) शाकद्वीप का एक | सुविख्यात 'सुब्रह्मण्य मंत्र' में भी निहित है, जिसमें इन्द्र सुविख्यात राजा, जो प्रियवत एवं बर्हिष्मती के पुत्रों में | को · मेधातिथि का मेष' कहा गया है, एवं जिसका से एक था। इसे निम्नलिखित सात पुत्र थे:-पुरोजव, | पाठन यज्ञमंडप में सोम को ले आते समय पुरोहित करते मनोजव, पवमान, धूम्रानीक, चित्ररेफ, बहुरूप, एवं
है (जै. ब्रा. २.७९; श. ब्रा. ३.३.४.१८)। विश्वाधार। अपने दधिसमुद्र से वेष्टित शाकद्वीप के पंचविंश ब्राह्मणं में, इसके एवं वत्स ऋषि के दरम्यान राज्य के सात विभाग कर, इसने अपने उपर निर्दिष्ट पुत्रों | हुए वादसंवाद का निर्देश प्राप्त है, जहाँ इसने उसे हीनमें बाँट दिये (भा. ५.१.२०-२५)।
कुलत्व का लांच्छन लगाया था। किन्तु वत्स ने अग्निपरीक्षा मार्कंडेय के अनुसार, यह प्लक्षद्वीप का राजा था, एवं | के द्वारा, अपने कुल की श्रेष्ठता साबित की थी (पं.बा. इसने उस द्वीप के सात भाग कर, अपने निम्नलिखित | १४.६.६)। भाईयों में बाँट दिये थे:-शानभव, शिशिर, सुखोदय. | यह विभिन्दुकियों के यज्ञ का बृहस्पति था, जिन्होने आनंद, शिव, क्षेमक एवं ध्रुव । आगे चल कर प्लक्षद्वीप |
इसे विपुल गायें प्रदान की थी (जै. ब्रा. ३.२३३)। के ये सात भाग इसके भाईयों के सात नाम से सुविख्यात | आसंग राजा ने भी इसे विपुल धन प्रदान किया था। हुयें (मार्क. २९-३१)।
अतः इसने उसकी स्तुति की थी (ऋ.८.२.४१-४२)। २. एक ऋषि, जो वसिष्ठ की अरुन्धती नामक पत्नी
अथर्ववेद में इसका उल्लेख अनेक ऋषियों के साथ प्राप्त का पिता था। इसका आश्रम चन्द्रभागा नदी के तट पर | हैं (अ. वे. ४.२९.६)। था। इसने ज्योतिष्टोम नामक यज्ञ किया था (कालि. | काण्वशाखा-आंगिरस गोत्र के लोगों में से 'काव' २२)।
अथवा 'काण्वायन' गोत्र के आदिपुरुप मेधातिथि, एवं इसके ३. वैवस्वत मन्वन्तर का सत्रहवाँ व्यास । पिता कण्व माने जाते है। वायु, मत्स्य, विष्णु एवं गरुड