Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मृगय
प्राचीन चरित्रकोश
मृलिक
मृगय--एक दानव, जिसे इंद्र ने श्रुतर्वन् आक्ष राजा | पर विजय पा सकते है, इस प्रकार तुम्हारा कहना है। की रक्षा के लिए परास्त किया था (ऋ. १०.४९.५)। फिर भी मृत्यु समस्त प्राणिजातियों के लिए अटल दिखाई.
२. कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । | देता है । इस मृत्यु पर विजय पानी हो, तो क्या करना
मृगवती-कृतवर्मा राजा की कन्या, जो पूर्वजन्म में चाहिये'? इस प्रश्न पर सनत्सुजात जवाब देते है :अलंबुसा नामक देवस्त्री थी (अलंबुसा देखिये)।
धीरास्तु धैर्येण तरन्ति मृत्युम् । मृगव्याध--ग्यारह रुद्रों में से एक, जो ब्रह्माजी के ।
(धैर्यशील लोग अपने धैर्य से मृत्यु पर विजय पाते है). आत्मज स्थाणु का पुत्र था। यह आकाश में मृग नामक
(म. उ. ४२.१२)। नक्षत्र के रूप में दिखाई देता है (ऐ: ब्रा. ३.३३)।
___ मृत्यु से बचने एवं दीर्घायु प्राप्त करने के लिए, अथर्वमृगी-पुलह ऋषि की एक पत्नी, जो कश्यप एवं | वेद में अनेक प्रकार के अभिचार
| वेद में अनेक प्रकार के अभिचार दिये गये है (अ. वे.. क्रोधा की कन्याओं में से एक थी। संसार के समस्त मृग का इसीके ही संतान माने जाते हैं।
___ महाभारत में, मृत्यु एवं इक्ष्वाकु के बीच हुआ संवाद मृगेद्रस्वातिकणे--(आंध्र. भविष्य.) एक आंध्र- | प्राप्त है (म. शां. १९२)। उसी ग्रंथ में अन्यत्र इसे वंशीय राजा, जो मत्स्य के अनुसार स्कंदस्वाति राजा का | कर्माधीन एवं परतंत्र कहा गया है (म. अन, १.७४)। पुत्र था। इसने तीन वर्षों तक राज्य किया था।
२. समस्त प्राणियोंका नाश करनेवाला एक पुरुषदेवता, .. मृतपस-दानवों के सुविख्यात दस कुलों में से एक |
मोन लिकेतीन पचों में से IST (म. आ. ५९.२८)।
| समस्त लोगों का अंतक है, इसी कारण इसे कोई पत्नी, मृत्यु--एक स्त्रीदेवता, जो ब्रह्मा के द्वारा जगत्- | या पुत्र न थे (म. आ. ६०.५३, ५४९*)। . संहार के लिए उत्पन्न की गयी थी। ऋग्वेद एवं महा- अजुनक नामक व्याध एवं सर्प से इसका संवाद हुआ। भारतादि ग्रंथों में निर्दिष्ट यमदेवता से इसका काफी | था (म. अनु. १.५०-६७)। इसने नचिकेतस् कोसाम्य है । ऋग्वेद में कई स्थानों पर इसे यम से समीकृत | ब्रह्मविद्या सिखायी थी (क. उ. ३.१६, ६.१८)। किया गया है (ऋ. १.१६५)। अथर्ववेद में मृत्यु को ३. एक आचार्य, जो प्रजापति नामक आचार्य का शिष्य .. यम का दूत कहा गया है (अ. वे. ५.३०)। उसी ग्रंथ | था। इसके शिष्य का नाम वायु था (वं. बा.२)। में अन्यत्र मृत्यु को मनुष्यों का, एवं यम को पितरों का ४. कलि एवं दुरुक्ति की कन्याओं में से एक। अधिपति कहा गया है (अ. वे. ५.२४)। यम के भाँति, ५. एक व्यास (व्यास देखिये)। इसे भी समस्त प्राणियों का नाशक माना गया है ( यम ६. वेन नामक सुविख्यात राजा का मातामह, जिसकी देखिये)।
मानसकन्या का नाम सुनीथा था (वेन. २ देखिये)। ब्रह्मा से संवाद-इसकी उत्पत्ति के पश्चात् ब्रह्मा ने । | मृद-(सो. वृष्णि.) एक यादव राजा, जो विष्णु के इसे जगत्क्षय करने के लिए कहा । ब्रह्मा के इस आज्ञा | अनुसार श्वफल्क राजा का पुत्र था। को सुन कर, यह रोदन करने लगी, एवं इसने उसकी मृदु-(सो. कुरु. भविष्य.) एक राजा, जो विष्णु के प्रार्थना की, 'मृत्यु से प्राणिमात्र को अत्यंत दुःख होता | अनुसार नृपंजय राजा का पुत्र था। है । अतः यह कार्य मैं करना नही चाहती हूँ। उस पर | मृदुर-(सो. वृष्णि.) एक यादव राजा, जो वायु ब्रह्मा ने इसे कहा, 'जगत्संहार का प्रत्यक्ष काम रोग | एवं भागवत के अनुसार श्वफल्क राजा का पुत्र था। करेंगे। उस संहार का तुम्हे केवल निमित्त बनना है। मृदवित्--एक यादव राजा, जो भागवत के अनुसार उत्पत्ति की तरह मृत्यु भी हर एक प्राणिमात्र के लिए | श्वफल्क राजा का पुत्र था। आवश्यक है, एवं वही कार्य तुम्हे करना है' (म. द्रो. मृध्रवाच--दस्यु लोगों का नामान्तर । मृध्रवाच का परि. १. क्र. ८. पंक्ति ६७-२१५, शां. २४९-२५०)। | शब्दशः अर्थ 'शत्रु की भाषा बोलनेवाला' होता है, एवं
सनत्सुजातआख्यान-महाभारत के 'सनत्सुजातीय' ! इसी अर्थ से दस्युओं के लिए इस शब्द का प्रयोग किया नामक आख्यान में, मृत्यु के संबंध में तात्विक विवेचन | गया है ( दस्यु देखिये)। प्राप्त है । उस आख्यान में धृतराष्ट्र सनत्सुजात नामक मृलिक-एक देव, जो स्वायंभुव मन्वन्तर के जिदाजित् ऋषि से प्रश्न करता है, 'देव एवं असुर ब्रह्मचर्य से मृत्यु | देवों में से एक था।
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