Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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म्लेच्छ
प्राचीन चरित्रकोश
यक्ष
को जीता था, एवं उन से मणि, रत्न, सुवर्ण, रजत, भारतीय युद्ध में ये लोग कौरवपक्ष में शामिल थे। चंदन आदि भेटवस्तुएँ प्राप्त की थी (म. स. २७. इस युद्ध में, इन्होंने पाण्डवसेना पर क्रोधी गजराज २५-२६)।
छोड़ दिये थे (म. क. १७.९) । किन्तु अर्जुन ने समस्त सहदेव ने अपनी दक्षिण दिग्विजय में, एवं नकुल ने 'जटिलानन' म्लेच्छों का संहार किया (म. द्रो. ६८.४२)। अपनी पश्चिम दिग्विजय में, इन लोगों पर विजय प्राप्त यादवराजा सात्यकि ने भी इनका संहार किया था (म. की थी (म. स. २८.४४; २९.१५ ) । युधिष्ठिर के द्रो. ९५.३६ )। इनके अंग नामक राजा का वध नकुल के अश्वमेध यज्ञ के समय भी, अर्जुन ने इन्हे जीता था। द्वारा हुआ था (म. क. १४.१४-१७)।
इससे प्रतीत होता है कि, महाभारतकाल में इन लोगों के उपनिवेश पश्चिम, पूर्व एवं दक्षिण भारत में समुद्र के | म्लेच्छहन्तु--म्लेच्छयज्ञ करनेवाले प्रद्योत राजा का तट पर भी थे।
| नामान्तर (प्रद्योत २. देखिये)।
यक्ष-देवयोनि की एक जातिविशेष, जो पुलह एवं । २. कुबेरसभा में उपस्थित यक्ष-मणिमंत्र, मणिवर, पुलस्त्य ऋषिओं की संतान मानी जाती है (म. आ. जिसके पुत्र 'गुह्यक' सामूहिक नाम से प्रसिद्ध थे। इन्ही ६०.५४२) । महाभारत में इन लोगों को 'शूद्रदेवता' कहा | पुत्रों के कारण कुबेर को 'गुहयकाधिपति' उपाधि प्राप्त गया है, एवं कुवेर को इनका राजा कहा गया है (म. हुयी थी। आ. १. ३३; व. ११९.१०-११)। ये लोग कुबेर की भीमसेन ने मणिमत् , कुबेर आदि यक्षों को परास्त सभा में लाखों की संख्या में उपस्थित रह कर, उसकी | किया था (म. व. १५७; भीमसेन देखिये)। सुंद एवं उपासना करते थे (म. स. १०.१८)।
उपसुंद नामक राक्षसों ने भी इन्हे पराजित किया था (म. पन के अनुसार, ब्रह्मा के पाँचवें शरीर से यक्ष एवं | आ. २०२.७)। राक्षस उत्पन्न हुये । इन्हे कोई माता न थी, क्यों कि, कुबेर यक्ष लोगों का राजा था, किन्तु उसके रावण ब्रह्मा ने अपने मनःसामर्थ्य से इन्हे उत्पन्न किया था। विभीषणादि चार पुत्र राक्षस थे। इन राक्षसपुत्रों की (ब्रह्मन् देखिये)।
सन्तति भी राक्षस ही थी। इसी कारण कुबेर को यक्ष
एवं राक्षसों का राजा कहा गया है। ... उत्पन्न होते ही इन्होंने ब्रह्मा से पूछा, 'हमारा | १ कर्तव्य क्या है ?' (किं कुर्मः) । फिर ब्रह्मा ने इन्हे | २. एक यक्ष, जिसने पाण्डवों के वनवासकाल में कहा, 'तुम यज्ञ करो' (यक्षध्वम्)। इसीकारण इन्हे युधिष्ठिरादि पाण्डवों को तत्त्वज्ञानविषयक प्रश्न पूछे थे 'यक्ष' नाम प्राप्त हुआ (वा. रा. उ. ४.१३) । यक्ष नाम (म. व. २९८.६-२५)। ये सारे प्रश्न धर्म ने यक्ष की यह उपपत्ति कल्पनारम्य प्रतीत होती है। केन उप- का वेष धारण कर पूछे थे (धर्म १. देखिये)। निषद में 'यक्ष' शब्द का अर्थ 'आदि कारण ब्रह्म' दिया
"| ३. एक राक्षस, जो कश्यप एवं खशा का पुत्र था ।
इसका जन्म संध्यासमय में हुआ था। अपने बाल्यकाल ये लोग विद्याधरों के निवासस्थान के नीचे मेरु | में यह अपनी माता को खाने के लिए दौडा। किन्तु पर्वत के समीप रहते थे। महाभारत एवं पुराणों में इसके छोटे भाई रक्षस् ने इसका निवारण किया। निम्नलिखित यक्षों का निर्देश प्राप्त है:
स्वरूपवर्णन-ब्रह्मांड में इसका स्वरूपवर्णन प्राप्त १. कुबेर के सेनापति-मणिकंधर, मणिकार्मुकधर, है, जहाँ इसे विलोहित, एककर्ण, मुंजकेश, हस्वास्य, मणिभूष, मणिमत्, मणिभद्र, पूर्णभद्र, मणिस्रग्विन् (दे. दीर्घजिह्व, बहुदंष्ट्र, महाहनु, रक्तपिंगाक्षपाद, चतुष्पाद, भा. १२.१०)।
| दो गतियों का, सारे शरीर पर बालवाला, चतुर्भुज, सुंदर