Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
View full book text
________________
मेनका
प्राचीन चरित्रकोश
मैत्रेय
विश्वामित्र की तपस्या में बाधा डालने के लिए, इंद्र ने ४. पद्म के अनुसार, ग्यारहवें मन्वन्तर का अधिपति इसे उसके पास भेज़ा दिया था। इसने विश्वामित्र को | मनुः। मोहित कर, उसका तपोभंग किया। उससे इसे शकुन्तला | मेष - स्कंद का एक सैनिक (म. श. ४४.५९)। नामक कन्या उत्पन्न हुयी। इसके अतिरिक्त, इसके मेषकिरीटकायन-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार वयश्व नामक एक पति का भी निर्देश प्राप्त है। ऋषिगण । २. पितृकन्या मेना का नामान्तर ।
मेषप-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । ३. पितृकन्या मेना की एक कन्या ।
मेषहृत्-गरुड के पुत्रों में से एक। मेना-एक पितृकन्या, जो आप्य नामक पितरों की मैत्रावरुण अथवा मैत्रावरुण-वसिष्ठ एवं अगस्य कन्या, एवं हिमवत् की पत्नी थी। कई ग्रंथों में इसे वैराज | ऋषियों का नामांतर (वसिष्ठ देखिये)। नामक पितरों की मानसकन्या कहा गया है।
मैत्रि--एक ऋषि, जो 'मैत्रि उपनिषद' का प्रवर्तक इसे मैनाक तथा क्रौंच नामक दो पुत्र, एवं अपर्णा, |
माना जाता है। इसकी माता का नाम मित्रा था (मै. उ. एकपर्णा, एकपाताला एवं मेनका नामक चार कन्याएँ थी
२.२.२)। (भा. ४७; ह. वं. १.१८.११-१५, मार्क, ५०.१६, |
___ मैत्रि उपनिषद-'मैत्रि उपनिषद' नामक सुविख्यात मत्स्य. १३; पितर देखिये)।
ग्रंथ का कर्ता इसे मानते है। विचार एवं शब्दसंपत्ति इन मेरु-एक पर्वत, जिसे निम्नलिखित नौ कन्याएँ
| दोनों दृष्टि से, यह उपनिषद अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता ' थी :-मेरुदेवी, प्रतिरूपा, उग्रदंष्ट्री, लता, रम्या, श्यामा, |
है। इस ग्रंथ में सात अध्याय हैं, जिसमें से पहले चार ' नारी, भद्रा, एवं देववीति । मेरू की इन नौ कन्याओं के
काफ़ी पूर्वकालीन हैं। विवाह सुविख्यात सम्राट आनीध्र के नौ पुत्रों के साथ हुए |
___ इस ग्रंथ के प्रारंभ में बताया गया है कि, एक बार थे (भा. ५.२.२३, आग्नीध्र देखिये)।
बृहद्रथ राजा शाकायन्य ऋषि के पास आत्मज्ञान के हेतु ।
गया । उस समय शाकायन्य ऋषि ने अपने गुरु-मैत्रि ऋमि भागवत में इसके आयति एवं नियति नामक और दो ।
का तत्त्व उसे समझाया । वही ' मैत्रि उपनिषद' है। कन्याओं का निर्देश प्राप्त है, जिनके विवाह क्रमशः धान
इस उपनिषद में अंतरात्मा को मानवी शरीर का एवं विधातृ से हुए थे (भा. ४.१.४४)।।
| चालक कहा गया है, एवं उसीकी प्रेरणा से मानवी शरीर मेरुदेवी-मेरुपर्वत की एक कन्या, जिसका विवाह
कुम्हार के चक्र की भाँति घूमता है, ऐसा कहा गया है। आग्नीध्र राजा का पुत्र नाभि राजा से हुआ था। इसके
आत्मा के सचेतनत्व का 'मैत्रि उपनिषद' का यह सिद्धांत पुत्र का नाम ऋषभदेव था (भा. १.३.१३; ५.४.२)।
प्लेटो के सिद्धान्त से मिलता जुलता है। मेरुसावर्णि अथवा मेरुसावर्ण-एक ऋषि, जिसने
___ इस ग्रंथ में मानवी शरीर का वर्णन करते समय, उसे युधिष्ठिर को हिमालय पर्वत पर धर्म एवं ज्ञान का उपदेश
एक रथ कहा गया है, जिसके अश्व कमेंद्रियों से बने है, दिया था (म. स. ६९.१२)। यह अत्यंत तपस्वी,
एवं ज्ञानेंद्रिय को उसकी बागडोर, मानवी मन को उसका जितेंद्रिय एवं त्रैलोक्य में विख्यात था (म. अनु. १५०.
सारथी, एवं देहस्वभाव को उसका चाबुक (सचेतक) ४४-४५)।
कहा गया है (मै. उ. २.९)। २. दक्षकन्या सुव्रता के चार पुत्रों का सामूहिक नाम | इस उपनिषद में सात्विक, राजस एवं तामस गुणों का (वायु. १००.४२)। इस समूह में निम्नलिखित चार पुत्र | जो वर्णन प्राप्त है, वह भगवद्गीता से साम्य रखता है। शामिल थे, जो नौवें, दसवें, ग्यारहवें एवं बारहवें मन्वन्तर | मैत्री-दक्ष की तेरह कन्याओं में से एक, जो के अधिपति 'मनु' कहलाते है:-दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, स्वायंभुव मन्वन्तर के धर्मऋषि की पत्नी थी। इसके पुत्र धर्मसावर्णि एवं रुद्रसावर्णि (मार्के. ५०)।
का नाम प्रसाद था। इन्होंने मेरुपर्वत पर तपस्या की थी, जिस कारण इन्हें | मैत्रेय--अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । मन्वन्तरों का अधिपतित्व प्राप्त हो गया (ब्रह्मांड. १.२४)।। २, ग्लाव एवं बक दाल्भ्य नामक आचार्यों का पैतृक ___३. मत्स्य के अनुसार, दसवें मन्वन्तर का अधिपति | नाभ (छां. उ. १.१२.१; गो. बा. १.१.३१; अ. वे..
| ११०)।
मनु।
६६४