Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मान्धात
प्राचीन चरित्रकोश
मान्धात
किया था। किन्तु पश्चिमी भारत में स्थित हैहय राजाओं यह इतना बहादुर था कि, एक दिन में ही इसने सारी को इसने जीता था।
पृथ्वी जीत ली थी (म. शां. १२४.१६ ), तथा जयसूचक __ जन्म-इसके पिता युवनाश्व राजा को सौ पत्नियाँ थी, सौ राजसूय तथा अश्वमेध यज्ञ किये थे । इसके पराक्रम परन्तु उनमें से किसी को भी कोई संतान न थी। अतएव | का वर्णन विष्णु पुराण में निम्नलिखित रूप से किया वह हमेशा दुःखी रहता था। एक बार वह जंगल में घूमते | गया है-- घूमते एक आश्रम में आ पहुँचा। वहाँ के ऋषियों ने उसके
यावत्सूर्य उदेति स्म, यावच्च प्रतितिष्ठति ।। द्वारा पुत्रप्राप्ति के लिए एक यज्ञ करवाया। यज्ञ समाप्त
सर्व तद्यौवनाश्वस्य, मांधातुः क्षेत्रमुच्यते॥ होने के बाद, जब सारे लोग भोजन कर रात्रि को सो रहे
(विष्णु. ४.२.१९) थे, तब युवनाश्व राजा की नींद टूटी, तथा वह अत्यधिक प्यासा हआ। प्यास बुझाने के लिए यज्ञमंडप में रक्खे शूरवीर होने के साथ साथ यह दानवीर भी था । इसने हुए हविर्भागयुक्त पेय पदार्थ ( पृषदाज्य ) उसने भूल से बृहस्पति से गोदान के विषय में प्रश्न किया था (म. प्राशन किया, जो ऋषियों ने उसकी राजपत्नियों को गर्भवती अनु, ७६.४)। यही नहीं, यह सदा लाखों गोदान भी। होने के लिए रक्खा था। कालान्तर में उसके द्वारा पिया करता था (म. अनु. ८१.५-६)। दस्युओं से इसने गया 'पृषदाज्य जल' इसके उदर में गर्भ का रूप धारण
अपने प्रजा की रक्षा की थी, जिससे इसे 'त्रसदस्यु' कर बढ़ने लगा, तब ऋषियों ने युवनाश्व राजा की कुक्षि नाम प्राप्त हुआ था। इसने एक बार दानस्वरूप अपना का भेद कर उसके उदर से बालक को बाहर निकाला। रक्तदान भी दिया था। यही मांधातृ है।
व्रतवैकल्य--प्रजापालन के प्रति इसकी कर्तव्यभावना संगोपन एवं नामकरण--अब यह समस्या थी कि, तथा दयालुता का परिचय पद्मपुराण से मिलता है। इसका पालनपोषण कौन करे। उसी समय भगवान् इन्द्र एक बार इसके राज्य में वर्षी न हुयी, जिसके कारण' प्रत्यक्ष प्रकट हुए, तथा उन्होंने कहा, 'यह मुझे पान | सारे देश में अकाल पड़ गया। सारे देश में करेगा (मां धाता), अर्थात इसका पोषण मैं करूँगा। हाहाकार मच गया, लोग अपने नित्यकर्मों को भूल ऐसा कह कर इंद्र ने अपनी अमृतपूर्ण करांगुली इसे पीने गये । वेदों का पठनपाठन बन्द हो गया। प्रजा की इस :. के लिए दे दी । इसीलिए इस बालक का नाम 'मांधातृ दशा को देखकर यह बड़ा दुःखी हुआ, एवं इसका (मुझे चूसनेवाला) रक्खा गया (म. व. १२६; द्रो. कारण जानने के लिए इसने आमिरस ऋषि से पृच्छा परि. १. क्र. ८ पंक्ति. ५२८-५४१; शां. २९.७४-८६ की। तब उसने बताया, 'तुम्हारे राज्य में एक वृषल दे. भा. ७.९-१०)।
तप कर रहा है, इसीलिए यह अकाल फैला है। जब पराक्रम---इन्द्रहस्त के पान करने के कारण, यह तक उसका वध न किया जायेगा, तब तक जलवर्षा न अत्यन्त बलवान् हुआ, एवं शीघ्रता के साथ बढ़ने होगी। किन्तु इसने तपस्वी का वध करना उचित न लगा। बारह दिन की ही आयु में यह बारह वर्ष के समझा, तथा दुर्भिक्ष को समाप्त करने के लिए, पद्मा नामक लड़के के समान दिखाई देने लगा। शीघ्र ही यह सब | एकादशी का व्रत करना प्रारंभ किया। उस व्रत के कारण, विद्याओं का परमपंडित हो कर तप करने में तत्पर | सारे राज्य में खूब वर्षा हुयी, एवं लोगों को भी हुआ। अपने तप के सामर्थ्य पर ही इसने 'अजगव' अकाल से छुटकारा मिला (प. उ.५७)। पम्मपुराण नामक धनुष, तथा अन्य दिव्यास्त्रों को प्राप्त किया। यह में अन्यत्र कहा है कि, इसने 'वरुथिनी एकादशी' का बड़ा वीर एवं पराक्रमी राजा था, जिसने अंगार, मरुत्त, | व्रत भी किया था (पन. उ. ४८)। गय तथा बहद्रथ आदि को युद्ध में परास्त किया था। संवाद-इसका विभिन्न ऋषिमुनियों के अतिरिक्त गुह्य राजवंश के बभ्रु राजा के पुत्र रिपु के साथ इसका | अन्य देवीदेवताओं के साथ भी संबंध था। इंद्र इसका चौदह माह तक घोर संग्राम चलता रहा । किन्तु अन्त में | परम मित्र था। सृञ्जय को समझाते हुए नारदजी ने इसकी इसने उसे पराजित कर उसका वध किया (वायु. ९९. महत्ता का वर्णन किया था (म. द्रो. ५०)। श्रीकृष्ण ने ८)। यही नहीं, इसने अपने बलपौरुष से रावण को भी | स्वयं अपने मुख से इसके गुणों का गान करते हुए. इसके यज्ञों पराजित किया था (भा. ९.६.२६-३८)। | के प्रभाव का वर्णन किया था (म. शां. २९.७४-८६)।
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