Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भूरिश्रवस्
प्राचीन चरित्रकोश
रह था। उस स्वयंवर में देवकी ने शिनि का वरण किया।। भृगवाण--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १.१२०. उससे क्रुद्ध हो कर सोमदत्त ने शिनि से युद्ध प्रारंभ | ५)। ऋग्वेद में एक स्थान पर यह उस व्यक्ति का नाम किया, जिसमें शिनि ने सोमदत्त को जमीन पर घसीट | है, जिसे 'शोभ' कहा गया है। किन्तु लुड्विग के दिया, एवं उसके केश पकड़ कर उसे लत्ताप्रहार किया | अनुसार, इसका सही नाम 'घोष' था। कक्षिवत् नामक (शिनि एवं सोमदत्त देखिये)।
| आचार्य से यह संबंधित था, किन्तु उस संबंध का स्वरूप भरिश्रवस् ने भी इस वैर की परंपरा अखंडित रखी | अत्यंत संदिग्ध है। थी। भारतीय युद्ध के प्रारंभ में ही इसने सात्यकि के दस ऋग्वेद में अन्यत्र यह शब्द अग्नि की उपाधि के रूप पुत्रों का वध किया था (म. भी. ७०.२५)।
में आता है, जिससे भृगुओं के द्वारा की जानेवाली .... __भूरिश्रवस् एवं सात्यकि के दरम्यान हुए युद्ध में, यह
अग्निपूजा का आशय प्रतीत है (ऋ. १.७१.४, ४. सात्यकि का वध करनेवाला ही था, कि इतने में सात्यकि | ७.४)। को बचाने के लिए अर्जन ने पीछे से आ कर इसका। भृगु-एक वैदिक पुरोहित गण । ऋग्वेद में इसका दाहिना हाथ तोड़ दिया (म. द्रो. ११७.६२)। क्षत्रिय |
निर्देश अग्निपूजकों के रूप में कई बार किया गया है के लिए अशोभनीय इस कृत्य से यह अत्यधिक क्रुद्ध हुआ, | (ऋ. १.५८.६; १२७.७)। इन्हे सर्व प्रथम अमि की एवं अपना टूटा हुआ दाहिना हाथ अर्जुन के सम्मुख फेक | प्राप्ति हुयी, जिसकी कथा ऋग्वेद में अनेक बार दी गयी है। कर, इसने उसकी काफी निर्भर्त्सना की (म. द्रो. ११८)। (ऋ. २.४.२; १०.४६.२: तै. सं. ४.६.५.२) । मात.. पश्चात् इस कृत्य का निषेध करने के लिए इसने आमरण रिश्वन् के द्वारा इनकी अग्नि लाने की कथा ऋग्वेद में ' अनशन शुरु किया। उसी निःशस्त्र अवस्था में सात्यकि | प्राप्त है (ऋ. ३.५.१०)। ने इसका सर काट कर इसका वध किया (म. द्रो. ११८. ___ दाशराज्ञ युद्ध के समय भृगुगण के पुरोहित लोगों का ३५-३६)।
| निर्देश द्रुह्यओं के साथ अनेक बार आता है (ऋ. ८.३.. इस क्रूरकर्म के कारण, अर्जुन एवं सात्यकि की सभी | ९; ६.१८; १०२.४)। द्रुह्य तथा तुर्वश के साथ साथ लोगों ने काफी निर्भर्त्सना की। किन्तु अर्जुन ने अपने भृगुओं का भी राजा सुदास के शत्रुओं के रूप में उल्लेख
आत्मसमर्थन करते हुए कहा, 'संकुल युद्ध में शत्रु का | प्राप्त है (क्र. ७.१८)। पीछे से हाथ तोड़ने में कोई भी दोष नही है' । सात्यकि यह एक प्राचीन जाति के लोग थे; क्यों कि, स्तोतागण ने भी कौरवों के द्वारा निःशस्त्र अभिमन्यु का किया गया अंगिरसों तथा अथर्वनों के साथ साथ इनकी अपने सोमवध का दृष्टान्त दे कर, अपने कृय का समर्थन किया प्रेमी पितरों के रूप में चर्चा करते हैं । समस्त तैंतीस देवों, (म. द्रो. ११८.४२-४५, ४७)।
मरुतों, जलों, अश्विनों, उषस् तथा सूर्य के साथ शगुओं का __ मृत्यु के पश्चात् यह विश्वेदेवों में सम्मिलित हुआ (म. भी सोमपान करने के लिए आवाहन किया गया है (ऋ. स्व. )।
| १०.१४; ८.३)। इनकी सूर्य से तुलना की गई है, तथा २. एक ऋषि, जो शुक तथा पीवरी के पुत्रों में से एक यह कहा है कि, इनकी सभी कामनाएँ तृप्त हो गयीं था।
थीं (ऋ. ८.३)। ३. एक राजा, जो मेरुसावर्णि मनु के पुत्रों में एक था। अग्नि को समर्पित सूक्तों में बार बार भृगुओं ४. एक आचार्य, जो मध्यमाध्वर्युओं में से एक था। को प्रमुखतः मनुष्यों के पास अग्नि पहुँचाने के कार्य
भूरिश्रुत--शुकपुत्र भूरिश्रवस् नामक आचार्य का | से संबंध दर्शित किया गया है। अग्नि को भृगुओं का नामांतर।
उपहार कहा गया है (ऋ. ३.२)। मंथन करते हुये इन भूरिषेण--एक राजा, जो ब्रह्मसावर्णि मनु के पुत्रों में लोगों ने स्तुति के द्वारा अमि का आवाहन किया था से एक था।
(ऋ. १.१२७)। अपने प्रशस्तिगीतों से इन लोगों ने अग्नि २. (सु. शर्याति.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार को लकड़ी में प्रकाशित किया था (ऋ. १०.१२२)। ये शर्याति राजा को पुत्रों में से एक था।
लोग अग्नि को पृथ्वी का नाभि तक लाये (ऋ. १.१४३)। भूरिहन्--एक राक्षस, जो प्राचीन काल में पृथ्वी का | जहाँ अथर्वन् ने संस्कारों तथा यज्ञों की स्थापना की, शासक था (म. शां. २२०.५०; ५४-५५)। वहीं भृगुओं ने अपनी योग्यता से अपने को देवों के रूप
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