Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मणिवर
प्राचीन चरित्रकोश
मतंग
सारण, सुक्रमल, सुगंध, सुचंद्र, स्थूलकर्ण, हिरण्याक्ष एवं| २. एक महर्षि, जिसके मतंगाश्रम का निर्देश महाभारत हैमवंत (ब्रह्मांड. ३.७.१२७-१३१)।
में प्राप्त है (म. व. ८२.४२३ पंक्ति ३)। सम्भव है, मणिवरा--रजतनाभ नामक यक्ष की पत्नी। मतंगकेदार नामक तीर्थस्थान का नामकरण इसीके नाम
मणिवाहन--(सो. ऋक्ष.) एक राजा. जो महाभारत | पर किया गया हो (म. व. ८३.१७ )। के अनुसार कुशांब का, एवं वायु के अनुसार कुश ३. एक तपस्वी, जिसकी व्यभिचरिणी ब्राह्मणी माँ ने राजा का नामान्तर था। मत्स्य में इसे 'हरिवाहन' कहा | एक नाई के साथ संभोग करके इसे जन्म दिया था। गया है, एवं इसे कुश राजा से अलग व्यक्ति माना गया | अपने इस दूषित जन्म के कलंक को धोने के लिए, इसने
आजीवन तपस्या की, किन्तु यह इस दोष से मुक्त न हो __मणिस्थक--एक नाग, जो कश्यप एवं कद्रु के पुत्रों | सका । 'वंशानुक्रम से प्राप्त कलंक किसी प्रकार मिटाया में से एक था।
नहीं जा सकता, इसी सत्य को प्रमाणित करने के लिए मणिस्कंध-धृतराष्ट्र कुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमे- | महाभारत में इसकी निम्न कथा दी गयी है (म. अन, जय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१७)।। २७-२९)।
माणसाग्वन्–एक यक्ष, जो कुबेर का सेनापति था।| गर्दभी से संवाद-एक बार इसके ब्राह्मण पिता ने
मंड--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार | इसके नाम के इसे यज्ञ करने के लिए जंगल से समिधा तथा दर्भ लाने । लिए 'मुण्ड' पाठभेद प्राप्त है।
को कहा। पिता की आज्ञा को मानकर, गाडी में एक मंडक--एक यक्ष, जो मणिभद्र एवं पुण्यजनी के पुत्रों गर्दभी एवं उसके बच्चे को जोतकर यह जंगल की में से एक था।
ओर चल पड़ा। राह में गर्दभी का बच्चा छोटा । मंडलक--तक्षक कुल का एक नाग, जो जनमेजय के | होने के कारण माँ के बराबर न चल पा रहा. था, सर्पसत्र में दग्ध हुआ (म. आ. ५०.६०)। जिससे क्रोधित हो कर इसने उस बच्चे के नाक पर •
मंडूक--एक आचार्य, जिसने अथर्ववेद की 'शिक्षा' लगातार चाबुक से कई चोटें की। गर्दभी का बच्चा लिखी थी। उस शिक्षाग्रंथ में कुल १८९ श्लोक हैं। चोटों से जख्मी हो गया, एवं दर्दपीड़ा में विह्वल होकर
२. एक जनसंघ, जिनके राजा का नाम आयु था। माँ की ओर देखने लगा। तब गर्दभी ने उसे सान्त्वना आयु राजा की सुशोभना नामक कन्या थी, जिसका विवाह | देते हए कहा, 'ब्राह्मण दयालु होते है, तथा- चाण्डाल क्रूर । इक्ष्वाकुवंशीय परिक्षित् राजा से हुआ था। सुशोभना को यह अपना जाति के अनुसार, तुमसे व्यवहार कर रहा परिक्षित् राजा से शल, दल एवं बल नामक तीन पुत्र है, इस लिए तुम्हें सहना ही पड़ेगा। उत्पन्न हुए थे (म. व. १९०; शल देखिये)। ____३. एक महर्षि, जो मांडुकेय नामक सुविख्यात आचार्य
___ गर्दभी की इस बात को सुनकर इसने तत्काल पूछा,
'मैं ब्राह्मण हूँ, मेरे माता-पिता ब्राह्मण है, तब मै चाण्डाल का पुत्र था।
कैसे हुआ ? मैने किस प्रकार अपना ब्राह्मणत्व नष्ट कर मतंग--एक प्राचीन राजा, जो शाप के कारण व्याध बना । व्याध होने के कारण ही इसे 'मतंग' नाम प्राप्त
दिया है, और मैं आज चाण्डाल हँ ?'। तब गर्दभी ने
बताया, तुम्हें 'जन्म देनेवाला पिता एक नाई था, जो जिस समय यह व्याध की अवस्था में जीवन यापन
तुम्हारा माता का पति न था। अतएव तुम ब्राह्मण कहा ।
से हुए, और तुममें ब्राह्मणत्व कहाँ ?। . करता था, उस समय इसने महर्षि, विश्वामित्र की पत्नी का दुर्भिक्ष काल में भरणपोषण किया था (म. आ. ६५. तपस्या-इस कथा को सुन कर यह तत्काल घर ३१)।
आया, और अपने पिता को अपने जन्म की कहानी आगे चलकर यह पुनः राजा हुआ, और इसने एक | बताकर, ब्राह्मणत्वप्राप्त करने के लिए तपस्या के लिए यज्ञ किया, जिसमें इसके उपकार का बदला चुकाने के चल पडा । इसकी तपस्या से प्रसन्न होकर इन्द्र ने इसे लिये स्वयं महर्षि विश्वामित्र पुरोहित बना। इस यज्ञ में | दर्शन दिया, किन्तु इसके द्वारा ब्राह्मणत्व मांगे जाने पर इन्द्र भी सोमपान के लिए उपस्थित हुआ था (म. आ. इन्द्र ने कहा, 'चांडालयोनि में उत्पन्न व्यक्ति को ब्राह्मणत्व ६५.३३)।
मिलना असम्भव है। तब इसने एक पैर पर खड़े होकर
हुआ।