Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मंथरा
प्राचीन चरित्रकोश
मंदार
२.२.४४; आ. रा. १.६.४१)। तोरवो रामायण में | है । इस ऋण को उतारने के लिए तुम्हें सन्तान उत्पन्न मंथरा को विष्णु की माया का अवतार माना गया है। करके अपनी वंशपरम्परा को अविच्छन्न बनाने का प्रयत्न
'रामचरित मानस' में--इस प्रकार प्राचीन एवं करना चाहिए। अर्वाचीन राम साहित्य में इसका नाम सर्वत्र प्राप्त है। ___यह सुनकर शीघ्र संतान उत्पन्न करने के लिए, इसने तुलसीदास के द्वारा रचित 'रामचरित मानस' में कवि ने | शार्ङ्गक पक्षी होकर जरितृ नामवाली शागिका से अधिदैविक तत्व का योग कर इसे निर्दोष साबित किया है।। संबंध स्थापित किया। उसके गर्भ से चार ब्रह्मवादी तुलसी मंथरा का कटु चित्रण करने के पूर्व कह देते है-- पुत्रों को जन्म देकर, यह लपिता नामवाली यक्षिणी के 'गई गिरा मति फेरि'। राम के अवतार कारण का लक्ष्य पास चला गया। बच्चे अपनी माँ के साथ ही खाण्डवदेवों की दुःखनिवृत्ति बतलाया गया है, अतएव देवताओं |
वन में रहे । जब अग्निदेव ने उस वन को जलाना आरम्भ को रामवनवास की प्रेरणा सरस्वती के द्वारा देना संगतपूर्ण | किया, उस समय इसने अग्नि की स्तुति की, तथा अपने जान पड़ता है। तुलसीद्वारा चित्रित मंथरा बड़ी वाक्पटु |
पुत्रों की जीवनरक्षा के लिए वर माँगा। तब अग्निदेव ने अनुभवी, कुशल दती की भाँति है, जो बड़े मनोवैज्ञानिक | 'तथास्तु' कह कर इसकी प्रार्थना स्वीकार की (म. ढंग से केकयी के हृदय के भावों को परिवर्तित कर, राम | आ. २२०)। को वन भेजने के लिए उसे विवश कर देती है। । इसने अपने बच्चों की रक्षा करने की बात
२. विरोचन दैत्य की कन्या। यह दैत्यकन्या सम्पूर्ण | अपनी दूसरी पत्नी लपिता से कहीं, किन्तु उसने इससे पृथ्वी को विनाश करने के लिए तत्पर हुयी, तब इन्द्र ने | ईष्योयुक्त वचन कहे, एवं इसे अपने पुत्रों के पास जाने इसका वध किया।
से रोक लिया। तब इसने स्त्रियों के सौतिया डाह रूपी इसकी कथा रामायण में राम के द्वारा तारकावध के | दोष का वर्णन करते हुए बताया कि, वह चाहे जितना समय कही गयी है। इसी की कथा बता कर राम ने लक्ष्मण | सत्य कहे, यह उस पर विश्वास नहीं कर सकता। से कहा था कि, स्त्री का वध करना अवश्य उचित नहीं है, पश्चात् यह अपनी पूर्वपत्नी जरितु, तथा पुत्रों के किन्तु जब आवश्यकता ही आ पड़े, तो स्त्रीवध किसी प्रकार पास गया। किन्तु वे इसे पहचान न सके । बाद को इसने हेय कार्य नहीं है (वा. रा. बा. २५.२०)। | जरितृ तथा अपने पुत्रों के साथ देशान्तर में प्रस्थान मंथिनी--स्कंद की अनुचरी एक मातृका (म. श.
किया (म. आ. २२२; जरितृ देखिये)। ४८.२५ )। इसके नाम के लिए 'स्थेरिका' पाठभेद मंदर--एक दुराचारी ब्राह्मण, जो पिंगला नामक वेश्या प्राप्त है।
पर आसक्त था। आगे चलकर इसने ऋषभ नामक योगी - मंथु-(स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो वीरव्रत राजा की सेवा की। इस पुण्यकर्म के कारण अगले जन्म में यह का पुत्र था।
भद्रायु नामक राजकुमार हुआ (भद्रायु देखिये)। मंद--रावण के पक्ष का एक राक्षस ।
मंदाकिनी--पुलस्त्यपुत्र विश्रवस् नामक ऋषि की दो मन्दपाल--एक विद्वान् महर्षि, जिसे मृत्यु के बाद | पत्नियों में से एक । भगवान् शंकर के प्रसाद से इसे पितृऋण को न उतारने के कारण स्वर्ग की प्राप्ति न | कुबेर नामक पुत्र उत्पन्न हुआ (पन. पा. ६)। . हुयी थी।
मंदाकिन्य--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। पितृऋण--मन्दपाल धर्मज्ञों में श्रेष्ठ तथा कठोरव्रत | मंदार--एक असुर, जो हिरण्यकशिपु का ज्येष्ठ पुत्र का पालन करनेवाला था । यह ऊर्ध्वरेता मुनियों के मार्ग | था । भगवान् शंकर ने इसे एक वर प्रदान किया था, का आश्रय लेकर सदा वेदों के स्वाध्याय, धर्मपालन तथा | जिसके बल से यह एक अर्बुद वर्षों तक इन्द्र से युद्ध करता तपस्या में संलग्न रहता था। अपनी तपस्या पूर्ण कर | रहा । युद्ध में यह अजेय था, जिस कारण भगवान् देहत्याग कर, जब यह पितृलोक पहुँचा, तब इसे सत्कर्मों | विष्णु का सुदर्शन चक्र, एवं इन्द्र का वज्र इसके शरीर पर के फलानुसार स्वर्ग की प्राप्ति न हुयी । तब इसने देवताओं | | टकरा कर तिनके के समान जीर्ण-शीर्ण हो गये (म. से इसका कारण पूछा । देवताओं ने बताया, 'आपके | अनु. १४.७४-८२)। उपर पितृऋण है। जब तक वह पितृऋण तुम्हारे द्वारा २. धौम्य ऋषि का पुत्र, जिसका विवाह मालव देश न उतारा जायेगा, तब तक स्वर्ग की प्राप्ति असम्भव | में रहनेवाले और्व नामक ब्राह्मण की शमिका नामक
प्रा. च. ७८]