Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मयूरध्वज
प्राचीन चरित्रकोश
मरीचि
पूर्ण कर, मयूरध्वज राजा कृष्णार्जुन के साथ अश्व के संरक्षण | पर पड़े हुए भीष्म के पास मिलने गया था, एवं अर्जुन के लिए उनके साथ चला गया (जै. अ. ४१-४६)। के जन्मोत्सवमें भी उपस्थित था।
मयूरेश्वर--श्रीगणेश का एक अवतार, जो महाराष्ट्र में | २. एक धर्मशास्त्रकार, जिसके मतों के उद्धरण मितास्थित मोरगाँव स्थान में स्थित है।
क्षरा, अपरार्क, स्मृतिचन्द्रिका आदि ग्रंथों में प्राप्त हैं। मयोभुव--अगस्त्य कुलोत्पन्न एक गोत्रकार एवं प्रवर । | उन ग्रंथों में निम्नलिखित विषयों पर, मरीचि के मतों को
मरण--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसके नाम | उद्धृत किया गया है:-आह्निक, अशौच, श्राद्ध, प्रायश्चित्त के लिए 'मरणाशन' पाठभेद प्राप्त है।
एवं व्यवहार। मरीचि--इक्कीस प्रजापतियों में से एक. जो
___ अपरार्क ने मरीचि के द्वारा लिखित तर्पण के संबंधित स्वायंभुव मन्वन्तर में ब्रह्माजी के नेत्र से उत्पन्न हुआ
एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसमें रविवार के दिन
तर्पण करने का माहात्म्य बताया गया है (अपरार्क. था (म. आ. ३२१.३३)। यह ब्रह्माजी की सभा में रहा कर उनकी उपासना करता था (म. स. ११.१४ )।
१३२, २३५, स्मृतिच. आन्हिक. पृ. १२३)। यह ब्रह्माजी का प्रथम पुत्र था । इसे विष्णु ने खङ्ग
___ मरीचि ने विधान प्रस्तुत करते हुए कहा है कि, श्रावण दिया था, जिसे इसने अन्य महर्षियों को दिया था
भाद्रपद में नदी में स्नान न करना चाहिए (अपरार्क. पृ. (म. शां. १६०.६५)।
२३५)। अपरार्क ने अशौच के सम्बन्ध में मरीचि का
एक उद्धरण दिया है, जो गद्य में है (अपराक. ९०८) यह दक्ष का जामाद तथा शंकर का साढू था। इसने
व्यवहारशास्त्र-मरीचि अचल संपत्ति के बारे में अपना शंकर का अपमान किया था, तब शंकर ने इसे भस्म कर | डाला । दक्ष की कन्या संभूति इसकी पत्नी थी। इसे संभूति
मत देते हुए कहता है, 'अचल सम्पत्ति यदि दूसरे के हाथ
बेचना है, खरीदना है, दान में देना है अथवा उसका से पूर्णमास नामक पुत्र, तथा कृष्टि, वृष्टि, त्विषा तथा उपचिति नामक कन्याएँ हुई । पूर्णमास को सरस्वती से
बटवाँरा करना है, तो यह आवश्यक है कि, किये गए विरुज, पर्वश, यजुर्धान आदि पुत्र उत्पन्न हुए (ब्रह्मांड
सारे वैधानिक कार्य मौखिक न होकर लिखित होने चाहिए। २. ११)।
तभी वे नियमानुकूल है, अन्यथा नही (परा. मा. ३.
१२८; स्मृति. चं.६०)। अगर किसी व्यक्ति ने अधि.. भागवत के अनुसार इसकी दो पत्नियाँ थीं ( भा.
कारियों की सम्मति से किसी व्यापारी की कोई सम्पत्ति ३. २४ २२)। उसमें से एक का नाम कर्दमकन्या
खरीदी, तथा बाद को पता चला कि, व्यापारी द्वारा बैंची कला, तथा दूसरी का नाम ऊर्णा था। इसे कला से दो पुत्र
गयी संपत्ति किसी अन्य की थी, तब उसे उस व्यापारी से हुए, एक कश्यप तथा दूसरा पूर्णिमा । ऊर्णा से इसे स्मर,
उसका पैसा कानून से वापस मिल जायेगा। अगर वह उद्गीथ, परिष्वंग, क्षुद्रभृत तथा घृणी सन्ताने हुयीं (भा.
व्यापारी रुपये ले कर लापता हो गया है, तब संपत्ति के १०.८५, ४७-५१, दे. भा. ४. २२)। अग्निष्वात्त
खरीददार एवं असली मालीक के बीच में ले देकर नामक पितर भी इसका पुत्र था।
समझौता कर देना चाहिए' (अपरार्क. ७७५)। वैवस्वत मन्वन्तर में ब्रह्मदेव ने इसे अग्नि से पैदा
मरीचि के द्वारा मानसिक व्याधियों (आधि) के चार किया था। उस समय इसे कश्यप नामक पुत्र एवं सुरूपा ।
प्रकार बताये हैं-भोग्य, गोप्य, प्रत्यय, एवं अज्ञात । नामक कन्या हुयी थी। यह,इसका पुत्र कश्यप,एवं अवत्सार, असित, नैध्रुव, नित्य तथा देवल ये कश्यप कुलके सात
३. एक ज्योतिषशास्त्रज्ञ, जिसका निर्देश नारदसंहिता मंत्रद्रष्टा थे (मत्स्य. १४४, कश्यप देखिये )। यह |
में प्राप्त है। प्रजापति भी था (वायु. ६५.६७)।
४. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो वृषभदेव के वंश में - इन्द्रप्रस्थ में सात तीर्थों में स्नान करने के कारण, इसे | उत्पन्न सम्राज नामक राजा का पुत्र था। इसकी माता का सात पुत्र हुए थे ( पद्म. उ. २. २२)।
नाम उत्कला था। इसके पत्नी का नाम बिन्दुमती था, महाभारत के अनुसार, 'चित्रशिखण्डी' कहे जाने | जिससे इसे बिन्दुमत् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। वाले ऋषियों में से यह भी एक था । यह आठ प्रकृतियों ५. एक अप्सरा, जो अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित में भी गिना जाता है (म. शां.३२२.२७)। यह शरशय्या | थी (म. आ. ११४.४२)।