Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मरुत्
प्राचीन चरित्रकोश
मरुत्
जीवित बचे हैं, जिन्हे में स्वर्ग में ले जाकर यज्ञ के | षष्ठ गण--१. ईदृशु, २. नान्यादृश् ३. पुरुष, हविर्भाग का अधिकारी बनाकर भाई की भाँति रक्खंगा | ४. प्रतिहत, ५. समचेतन, ६. समवृत्ति, ७. संमित ।। (म. आ. १३२. ५३; शां. २०७.२; भा. ६.१८; मत्स्य. सप्तम गण--इस गणों के मरुतों का नाम अप्राप्य है। ७. १४६)।
किन्तु ब्रह्मांड के अनुसार, देव दैत्य एवं मनुष्ययोनियों इंद्र-दिति संवाद--रामायण में यही कथा कुछ अलग
से मिलकर इस गण के मरुत् बने हुए थे। ढंग से दी गयी है । दिति की गर्भावस्था में साधुवेषधारी
___ उपरनिर्दिष्ट मरुद्गणों में से प्रत्येक गण में वास्तव में इंद्र उसकी सेवा में रहा। इन्द्र की सेवा से संतुष्ट
सात सात मरुत होने चाहिये, किन्तु कई मरुतों के नाम रहकर दिति ने उससे कहा, ' जिस गंर्भ को तुम्हें अप्राप्य होने के कारण, यह नामावली अपूर्ण सी प्रतीत मारने के लिए पाल रही हूँ वह तुम्हें न मारकर सदैव
होती है। महाभारत में मंकणकपुत्रों को मरुद्गण के उत्पादक तुम्हारी सहायता करे यही मेरी इच्छा है' । किन्तु इन्द्र को
कहा गया है (म. श. ३७.३२)। सन्तोष न हुआ, एवं उसने दिति के गर्भ में प्रवेश कर के |
गर्भ में प्रवेशका मरुद्गणों के स्थान-उपर्युक्त मरुद्गणों के निवास गर्भ को नाश करने के लिए उसके सात टकडे किये। के बारे में विस्तृत जानकारी ब्रह्मांड एवं वायु में प्राप्त है, इस पापकर्म करने के उपरांत इन्द्र बाहर आया, एवं सारी | जो निम्न प्रकार कथा बता कर दिति से क्षमा माँगने लगा । फिर दिति ने | उससे कहा, ' तुम्हें मारने की तामसी इच्छा मैने की, |
अनुक्रम निवासस्थान भ्रमण कक्षा अतः यह सर्वप्रथम मेरी ही गल्ती है। अब मेरी यही इच्छा है कि, तुम्हारे द्वारा किये गये गर्भ के वे सात टुकड़े वायु के सप्तप्रवाह में प्रविष्ट होकर देवस्थान प्राप्त करें। प्रथम गण | पृथ्वी पृथ्वी से मेघ तक इन्द्र ने दिति को वर प्रदान किया, जिस कारण मरुत्गणों
द्वितीय गण सूर्य सूर्य से मेघ तक के साथ दिति ने स्वर्ग प्राप्त किया (वा रा. बा. ४७)।।
| तृतीय गण | सोम सोम से सूर्य तक
चतुर्थ गण | ज्योतिर्गण ज्योतिर्गणों से सोम तक इन्द्र ने दिति के साथ इतना पापकर्म किया, फिर पंचम गण ग्रह ग्रहोंसे नक्षत्रों तक भी वह सत्य से अलग न रहा, एवं दिति से सदैव सत्य |
षष्ठ गण | सप्तर्षि मंडल सप्तर्षि मंडल से ग्रहों तक
| भाषण ही किया । इसपर सन्तुष्ट होकर दिति ने इन्द्र को
सप्तम गण ध्रुव ध्रुव से साप्तर्षियों तक
(ब्रह्मांड. ३.५.७९-८८; वर दिया । मेरे होनेवाले पुत्र हमेशा तुम्हारे मित्र
वायु. ६७.८८-१३५)। एवं सहयोगी रहेंगे (स्कन्द ६. २४; विष्णु १.२१; ३.४०; पम सृ. ७; भू. २६)।
२. एक पौराणिक मानवजातिसंघ, जो वैशालि नगरी सात मरुद्गण--ब्रह्मांड में मरुतों के सात गणों की | के उत्तरीपर्व प्रदेश में स्थित पर्वतों में निवास करता था नामावली प्राप्त है, जिनमें से हरेक गण में प्रत्येकी सात | ये लोग प्रायः पर्वतीय प्रदेश में निवास करते थे, एवं मरुत् अंतर्भूत हैं । ब्रह्मांड में प्राप्त मरुद्गणों की नामावली अन्य मानवजातियों से इनका विवाहसंबंध भी होता इस प्रकार है:
था। प्रथम गण--१. चित्रज्योतिस् ,२. चैत्य, ३. ज्योतिष्मत्, सम्भव है, राम दाशरथि का परम भक्त हनुमान इस ४. शक्रज्योति, ५. सत्य, ६. सत्यज्योतिस् , ७. सुतपस् । मरुत् जाति में उत्पन्न हुआ था। इस जाति का और एक
द्वितीय गण--१. अमित्र, २. ऋतजित, ३. सत्यजित, | सुविख्यात सम्राट मरुत्त आविक्षित था, जो इक्ष्वाकुवंशीय. ४. सुतमित्र, ५. सुरमित्र, ६. सुषेण, ७. सेनजित् । दिष्ट कुल का राजा था। मरुत्त आविक्षित भी वैशालि देश ___ तृतीय गण--१. उग्र, २. धनद, ३. धातु, ४. भीम, | काही राजा था। वैदिक पूजाविधि में अंतर्गत 'मंत्रपुष्प' ५. वरुण
के मंत्रों से प्रतीत होता है कि, मरुत्त आविक्षित राजा के चतुर्थ गण--१. अभियुक्ताक्षिक, २. साहूय यज्ञों में मरुत् लोगों ने 'परिवेष्ट' का काम किया था। पंचम गण-१. अन्यदृश, २. ईदृश्, ३. द्रुम, इन जाति के लोग पहले तो मानव थे, किन्तु कालो४. मित, ५. वृक्ष, ६. समित् ७. सरित् । | परान्त इन्हे देवत्व प्राप्त हुआ। यही कारण है कि, पहले