Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मंकि
प्राचीन चरित्रकोश
मंजुघोषा
अनुसरण करनेवाला था। सम्राट अशोक के समय आजीवक स्कन्द के अनुसार, शिव के अश्रुबिंदुओं से इसकी संप्रदाय का काफी प्रचार था, एवं समाज उसका काफी | उत्पत्ति हुयी थी (स्कन्द. ७.१.४५)। स्कंद में इसके
आदर करता था। अशोक के शिलालेखों में आजीवक | उत्पत्ति की कथा इस प्रकार दी गयी है:-- शंकर ने लोगों का बड़े सम्मान के साथ निर्देशन किया गया है। हिरण्याक्ष की विकेशी नामक कन्या से विवाह किया था। नागार्जुन पहाडियों में उपलब्ध शिलालेखों में आजीवकों | एक दिन शंकर विकेशी से संभोग करने ही वाला था कि, को गुहा प्रदान करने का निर्देश प्राप्त है। | वहाँ अग्नि आ पहुँचा । उसे देख कर शंकर क्रोध से लाल ___ आगे चलकर बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रचार के कारण हो उठा, तथा उसकी आँखों से अश्रुबिंदु टपकने लगे।
आजीतकों की लोकप्रियता धीरे धीरे विनष्ट हो गयी, उन अश्रुबिंदुओं में से एक तेजोमय अश्र विकेशी के मुख में तथा आजीवकों के द्वारा प्रतिष्ठापित भोगप्रधान देववाद | जा गिरा, जिससे वह गर्भवती हो गयी। किंतु आगे चल के स्थान पर तप के द्वारा ब्रह्मप्राप्ति की प्रधानता का कर शंकर के तेजोमय गर्भ को वह सहन न कर सकी, तथा बोलबाला हुआ।
उसने उसे बाहर गल दिया । बाद को उस गर्भ से एक २. त्रेतायुग का ऋषि, जो कौषीतक नामक ब्राह्मण का | पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसे पृथ्वी ने स्तनपान करा कर बड़ा पुत्र था। यह वैदिकधर्म का पालन करनेवाला, अग्निहोत्र | किया । यही पुत्र मंगल कहलाया। करनेवाला, एवं वैष्णवधर्म पर विश्वास करनेवाला परम भविष्यपुराण में मंगल की उत्पत्ति कुछ दूसरे प्रकार सदाचारी ब्राह्मण था।
से दी गयी है। उसमें इसकी उत्पत्ति शिव के रक्तबिन्दु इसे स्वरूपा एवं विश्वरूपा नामक दो पत्नियाँ थी, किन्तु | से कही गयी है (भवि. ब्राह्म. ३१)। गणेशपुराण में कोई पुत्र न था। इसी कारण इसने अपने गुरु की आज्ञा | इसे भारद्वाज का पुत्र कहा गया है, एवं गणेश की कृपा से साबरमती नदी के तट पर चार वर्षों तक तपस्या की, | के द्वारा किस प्रकार यह ग्रह बना, उसकी भी कथा दी. जिससे इसे अनेक पुत्र उत्पन्न हुये।
गयी है। साबरमती के तट पर जिस स्थान पर इसने तप किया | ३. एक देव, जो स्वायंभुव मन्वंतर के जित देवों में से उसे 'मंकितीर्थ' नाम प्राप्त हुआ। इस तीर्थ को | एक था। 'सप्तसारस्वत नामांतर भी प्राप्त था।
मंगला--एक देवी, जिसने त्रिपुरवध के समय भगवान् द्वापर यग में पाण्डव इस तीर्थ के दर्शनों के लिए | शंकर को वरप्रदान किया था (ब्रहावे..३.४४ )। आये थे। उस समय उन्होंने इस तीर्थ को 'सप्तधार'
मचक्नुक-एक यक्ष, जो समन्तपंचक एवं कुरुक्षेत्र नाम प्रदान किया था ( पद्म. उ. १३६)।
के सीमा पर स्थित 'मचक्नुक तीर्थ' में रहता था। उस मंगल--बौधायन श्रौतसूत्र में निर्दिष्ट एक आचार्य
स्थान में यह द्वारपाल के रूप में निवास करता था। (बौ. श्री. २६.२)।
| इसको प्रणाम करने पर सहस्र गोदान का पुण्य प्राप्त होता २. एक शिवपुत्र, जो शिव के धर्मबिन्दु से पैदा हुआ
था (म. व. ८९.१७१)। इसके नाम के लिए 'मचक्रुक' था । दक्षयज्ञ में सती की मृत्यु हो जाने के कारण, उसके
पाठभेद भी प्राप्त है। पाठभेद (भांडारकर संहिता)विरहताप से पीड़ित हो कर, शंकर उसकी प्राप्ति के | अान्तक। लिये तप करने लगा। तप करते समय शंकर के मस्तक से
मच्छिल्ल-(सो. ऋक्ष.) एक राजा, जो सम्राट उपरिएक धर्मबिंदु पृथ्वी पर गिरा । उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ,
चर वसु का चतुर्थ पुत्र था। इसकी माता का नाम गिरिका जिसे मंगल नाम प्राप्त हुआ। आगे चल कर शंकर ने
था (म. आ. ५७.२९)। युधिष्ठिर केराजसूय यज्ञ के समय नवग्रहों में उसकी स्थापना की। यह समस्त पृथ्वी
यह उपस्थित था (म. स. ३१.१३)। का पालनकर्ता माना जाता है। ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से,
| महाभारत (बम्बई संस्करण) एवं विष्णु में इसे मंगल भूमि एवं भार्या का संरक्षणकर्ता माना जाता है ।
'मावेल्ल', एवं वायु में इसे 'माथैल्य' कहा गया है। इसीसे इसे 'भौम' भी कहते है (शिव, रुद्र. २.१०; स्कन्द. ४.१.१७) । अग्नि के संपर्क से उत्पन्न होने के
| मज्जान-रकंद का एक सैनिक (म. श. ४४.६५)। कारण, इसे 'अंगारक' नाम भी प्राप्त हुआ था मंजुघोषा--एक अप्सरा, जिसे मेधाविन् ऋषि ने (विष्णुधर्म. १.१.६; पन. स. ८१)।
पिशाच बनने का शाप दिया था (मेधाविन, ४. देखिये)।