Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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मनु
प्राचीन चरित्रकोश
(ऊर्जस्तंब, ऊर्जस्वल)। ब्रह्माण्ड में स्वारोषित मन्वन्तर जल्प ), ज्योतिधर्मन् (ज्योतिर्धामन् , धनद), धातृ के कई ऋषियों के कुलनाम देकर उन्हें सप्तर्षियों का | (धीमत् , पीवर ), पृथु । पूर्वज कहा गया है।
| ३. देवगग-वीर, वैधृति, सत्य (सत्यक, साध्य),' ३. देवगण--तुषित, इडस्पति, इध्म, कवि, तोष, प्रतोष, | सुधी, सुरूप, हरि । मार्कण्डेय के अनुसार, इनकी कुल भद्र, रोचन, विभु, शांति, सुदेव (स्वह्न), पारावत । | संख्या सत्ताइस है। अन्य ग्रंथों में उल्लेख आता है कि, ये
४. इन्द्र--विपश्चित् । भागवत के अनुसार, यज्ञपुत्र | पुत्र एक एक न होकर सत्ताइस सत्ताइस देवों के गण थे। रोचन।
४. इन्द्र--शिखि (त्रिशिख, शिबि)। ५. अवतार-तुषितपुत्र अजित (विभु)।
५. अवतार-हरि, जो हरिमेध तथा हरिणी का पुत्र . ६. पुत्र--अयस्मय अपोमूर्ति (आपमूर्ति), ऊर्ज, था। इसे एक स्थान हां का पुत्र कहा गया है। किंपुरुष, कृतान्त, चैत्र, ज्योति (रोचिष्मत, रवि), नभ, ६. पुत्र--अकल्मष ( अकल्माष ), कृतबंधु, कृशाश्व, . (नव, नभस्य), प्रतीत (प्रथित, प्रसृति, बृहदुक्थ),
केतु, क्षांति, खाति ( ख्याति), जानुजंघ, तन्वीन् , तपस्य, भानु, विभृत, श्रुत, सुकृति (सुषेण), सेतु, हविघ्न तपाद्युति (युति ), तपोधन, तपोभागिन् , तपोमूल, तपो(हविध्र)। इसके पुत्रों के ऐसे कुछ नाम मिलते हैं, किन्तु योगिन् , तपोरति, दृढेषुधि, दान्त, धन्विन् , नर, परंतप, उनमें से कुल नौ या दस की संख्या प्राप्त है। मत्स्य के पराक्षित, पृथु, प्रस्थल, प्रियभृत्य, शतहय, शांत (शांति), अनुसार, इस मन्वन्तर में ऋषियों की सहायता के लिए शुभ, सनातन, सुतपस् । वसिष्ठषुत्र सात प्रजापति बने थे। किन्तु उन सब के नाम
७. योगवर्धन-कौकुरुण्डि, दाल्भ्य, प्रवहण, शग,' मनु पुत्रों के नामों से मिलते हैं, जैसे--आप, ज्योति,
शिव, सस्मित, सित । ये योगवर्धन केवल इसी मन्वंतर में
मिलते हैं। मूर्ति, रय, सृकृत, स्मय तथा हस्तीन्द्र ।
. रैवत मन्वन्तर उत्तम मन्वन्तर
१. मनु-रैवत । १. मनु-उत्तम ।
२. सप्तर्षि--ऊर्ध्वबाहु (सोमप), देवबाहु ( वेदबाहु), २. सप्तर्षि--अनघ, ऊर्ध्वबाहु, गात्र, रज, शुक्र (शुक्ल), पजन्य, महामुनि (मुनि, वसिष्ठ, सत्यनेत्र ), यदुध्र, वेदसवन, सुतपस् । ये सब वसिष्ठपुत्र थे, एवं वासिष्ठ इनका | शिरस् ( वेदश्री, सप्ताश्रु, सुधामन् , सुबाहु, स्वधामन् ), सामान्य नाम था । पूर्वजन्म में ये सभी हिरण्यगर्भ के | हिरण्यरोमन् (हिरण्यलोमन्)। . . . ऊर्ज नामक पुत्र थे।
३. देवगण--आभूतरजस् (भूतनय, 'भूतरजय )। ३. देवगण--प्रतर्दन (भद्र, भानु, भावन, मानव),
इसके रैभ्य तथा पारिप्लव ( वारिप्लव) ये दो भेद हैं। वशवर्तिन ( वेदश्रुति ), शिव, सत्य, सुधामन् । इन सबके
इसके अतिरिक्त अमिताभ, प्रकृति, वैकुंठ, शुभ आदि बारह बारह के गण थे।
देवगणों में प्रत्येक में १४ व्यक्ति हैं। ४. इन्द्र--सुशांति (सुकीर्ति, सत्यजित्)।
४. इन्द्र--विभु ५. अवतार--सत्या का पुत्र सत्य, अथवा धर्म तथा
५. अवतार--विष्णु के अनुसार संभूतिपुत्र मानस, सुन्ता का पुत्र सत्यसेन।
तथा भागवत के अनुसार शुभ्र तथा विकुंठा का पुत्र ६. पुत्र--अज, अप्रतिम, (इष, ईष), ऊर्ज, तनूज
'वैकुंठ'। (तर्ज, तर्ज), दिव्य (दिव्यौषधि, देवांबुज), नभ
६. पुत्र-अव्यय ( हव्यप ), अरण्य (आरण्य), (नय), नभस्य (पवन, परश्रु, परशुचि), मधु, माधव,
अरुण, अर्जुन, कवि ( कपि ), कंबु, कृतिन् , तत्त्वदर्शिन् शुक्र, शुचि (शुति, सुकेतु)।
धृतिकृत् , धृतिमत् , निरामित्र, निरुत्सुक, निर्मोह, प्रकाश
(प्रकाशक), बलबंधु, बाल, महावीर्य, युक्त, वित्तवत् , तामस मन्वन्तर
विंध्य, शुचि, शृंग, सत्यक, सत्यवाच् , सुयष्टव्य (सुसंभाव्य), १. मनु-तामस ।
हरहन्। २. सप्तर्षि--अकपि (अकपीवत् ), अग्नि, कपि
चाक्षुष मन्वन्तर (कपीवत्), काव्य ( कवि, चरक), चैत्र (जन्यु, जल, १. मनु--चाक्षुष ।
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