Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भौमाश्वी
प्राचीन चरित्रकोश
मक्षु
जिनके नाम निम्नलिखित थे:--साल्वेय, शूरसेन, श्रृंतसेन, २; मै. सं. १.४; वा. सं. १३.५४ )। इसने 'अतिरात्र' तिन्दुसार, एवं अतिसार।
नामक यज्ञ किया था, जिसके कारण इसे विपुल धन प्राप्त इसके पति बडे धार्मिक एवं आपस में मिलजुल कर हुआ था। रहनेवाले थे। इसी कारण इसने स्वयंवर में उनका वरण
भ्रमर--सौवीर देश का एक राजकुमार, जो सौवीर किया था। इन पाँच पतियों से इसे पाँच पुत्र उत्पन्न हुए,
| नरेश जयद्रथ का भाई था। यह जयद्रथ के रथ के पीछे जिन्होंने आगे चल कर मत्स्य देश में पाँच स्वतंत्र |
हाथ में ध्वज ले कर चलता था। जयद्रथ के द्वारा किये राजवंशों की स्थापना की (म. आ. परि. १०१)।
गये द्रौपदीहरण के समय यह उपस्थित था। उस समय • भौरिक--एक दैत्य, जो अग्नि के द्वारा दग्ध किया हुए युद्ध में अर्जुन ने इसका वध किया (म. व. २५५. गया था। हिरण्याक्ष एवं देवों के दरम्यान हुए युद्ध में,२७)। अग्नि के द्वारा हिरण्याक्ष के पक्ष के सात असुर दग्ध हुये।।
भ्रमि--उत्तानपादपुत्र ध्रुव राजा की पत्नी, जो उनमें से यह एक था (पद्म. सु. ७५)।
शिशुमार प्रजापति की कन्या थी (भा. ४.१०.१)। भौवन--वैदिक राजा विश्वकर्मन् का पैतृक नाम (श. ब्रा. १३.७.१.१५, ऐ. बा. ८.२१.८.१०; नि. १०.२६;
भ्राजिष्ठ-(स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो धृतपृष्ठ विश्वकर्मन् देखिये)।
राजा का पुत्र था। २. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो मथु एवं सत्त्या का भ्रामरि--एक राक्षसी, जो जंभासुर की अनुगामिनी पुत्र था।
थी। उस राक्षस के कथनानुसार, यह अदिति का रूप ३. एक भगुवंशीय गोत्रकार, जो भग एवं पौलोमी का धारण कर, श्रीगणेश का वध करने के लिए कश्यपगृह पुत्र था। ..
में अवतीर्ण हुयीं । इसने श्रीगणेश को विषमिश्रित मोदक
खिलाकर उसका वध करना चाहा। किन्तु श्रीगणेश ने भौवन नामक नगरी का राजा था (ब्रह्म. १७०.१-२)।। उन माद
उन मोदकों को हजम कर अपने मुष्टिप्रहार से इसका भौवायन--कपिवन नामक आचार्य का पैतृक नाम
वध किया (गणेश. २.२१)। • (पं. बा. २०.१३.४) । यजुर्वेद संहिताओं में कपिवन का भ्राष्टकाणि--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । निर्देश प्रायः 'भौवायन' नाम से ही प्राप्त है (का.सं.३२. भ्राटकृत--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ।
मकरकेत-श्रीकृष्णपुत्र प्रद्युम्न राजा का नामान्तर। | पाठभेद (भांडारकर संहिता)-'कनकध्वज' (कनकांगद)। मकरध्वज--हनुमान का पुत्र, जो उसके स्वेदबिन्दु
३. केरल देशाधिपति चंद्रहास राजा का पुत्र । इसके से उत्पन्न हुआ था। एकबार हनुमान् का एक स्वेदबिन्दु नाम के लिए 'मकराक्ष' पाठमेद भी प्राप्त है। दक्षिणसागर में रहनेवाली एक मगर पर गिर पड़ा, जिससे इसकी उत्पत्ति हुयी (आ. रा. सार. ११)। अहिरावण
मकराक्ष--एक राक्षस, जो जनस्थान में रहनेवाले
खर नामक राक्षस का पुत्र था । राम ने इसका वध महिरावण युद्ध के समय, इसकी एवं हनुमान् की भेंट
किया। हुयी थी (अहिरावण-महिरावण देखिये)।
२. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक। मक्षु-एक महर्षि, जो माशव्य नामक सुविख्यात भीम ने इसका वध किया था (म. भी. ९२.२६)। आचार्य का पिता था (माक्षव्य देखिये)।
प्रा. च. ७५]