Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भीष्म
स्वयंवर होने वाला है । अतएव यह वहाँ गया, एवं वहाँ एकत्र हुए सभी राजाओं को चुनौती देकर उसकी तीनों कन्याओं का हरण कर आया । विचित्रवीर्य का उन कन्याओं से विवाह करने लिए इसने मुहुर्तादि भी ठीक कराई। किन्तु बड़ी बहन अंत्रा को छोड़कर अन्य दो बहनों से ही विचित्रवीर्य का विवाह हुआ, जिनका नाम अंबिका एवं अंबालिका था।
प्राचीन चरित्रकोश
अंबाविरोध काशिराज की बड़ी कन्या अंधा ने कहा कि, ‘मैं विचित्रवीर्य से शादी न करूँगी, कारण कि मने मन में शाल्व का वरण किया है ' । भीष्म इस पर राजी हो गया। अंबा शास्त्र के पास गयी, लेकिन वह अंबा की वरण करने को राजी न हुआ । तब उसने आकर भीष्म से कहा, 'मैं शाल्व से विवाह करना चाहती थी. तथा तुम उसमें बाधक बन कर आये। तुमने मेरा हरण । किया है, अतएव शास्त्रोक्त के अनुसार, तुम्हें मुझसे शादी करनी चाहिए। मैं कदापि विचित्रविर्य से विवाह न करूगी, मेरा उससे सम्बन्ध ही क्या ?' किन्तु भीष्म तैयार न हुआ। इस कारण अंबा भीष्म से अत्यधिक क्रुद्ध हुयी, एवं इसके प्राप्ति के लिए तप करने लगी।
तपस्याकाल में, एक दिन अंबा की भेंट अपने नांना हो वाहन संजय से हुयी । उससे अंबा ने अपना सारा रोना कह सुनाया कि, किस तरह वह शाल्य का वरण करना चाहती थी, तथा किसी प्रकार शाल्य एवं भीष्म उसका वरणरूप में स्वीकार करने लिए राजी नहीं है। यह कह कर, अंबा ने सृजय से कुछ मदद चाही । लेकिन उसने कहा, 'यदि तुम मदद ही चाहती हो, तो परशुराम के पास जाओ । वह तुम्हारी मदद करेंगे । '
परशुराम से युद्ध फिर अंबा परशुराम के पास गयी, एवं उससे प्रार्थना की कि वह भीष्म का वध करे, जिसने उसका हरण कर उसका जीवन बर्बाद किया है, तथा वरण करने के लिए भी तैयार नहीं है परशुराम ने कहा 'मैंने किसी ब्राह्मण के कार्य हेतु ही अस्त्रग्रहण करने की, प्रतिज्ञा की है, अतएव मैं असमर्थ हूँ' । अन्त में अंबा द्वारा घर बार प्रार्थना किये जाने पर, परशुराम ने भीष्म को समझा कर मामले को सुलझाने की बात सोची ।
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भीष्म
द्वन्द्वयुद्ध के लिए चुनौती दी । दोनों युद्ध के लिए तत्पर ही थे कि पुत्रचिन्ता से युक्त गंगा ने आकर भीष्म से कहा, 'परशुराम तुम्हारे गुरु हैं, तुम्हें उनसे युद्ध करना शोभा नहीं देता ' । भीष्म ने कहा, 'युद्ध मै नहीं कर रहा, किन्तु अपने सत्य की रक्षा हमें करनी ही है। इस प्रकार यदि तुम्हें समझाना ही है, तो परशुराम से कहो कि वह अपने हठ को छोड़कर मेरी स्थिति पर ध्यान दें । अपने पुत्र भीष्म को परशुराम के फोध से उबारने के लिए, गंगा परशुराम के पास गयी, तथा उसे बहुविध समझाने का प्रयत्न किया । किन्तु परशुराम अपने हठ पर अटल रहे।
परशुराम एवं भीष्म में चार दिन तक घोर युद्ध हुआ ( म.उ. १७६ १८६ ) | अंत में अपने 'प्रस्वाय अस्त्र के बल से भीष्म ने परशुराम को युद्ध में परास्त किया ( म. उ. १८७.४ ) ।
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शिखंडिजन्म - भीष्म को समूल नष्ट करने के लिए अंत्रा पीछे पड़ गयी। पहले उसने घोर तप किया, फिर परशुराम के द्वारा इसे नष्ट करना चाहा। इसे देख कर गंगा नदी ने अंबा को शाप दिया कि, वह टेढी मेड़ी. क्षुद्र नदी बनेगी अंगा अपने अपमान का बदस्य लेने' के लिए जी जान से जुटी ही रही। उसने शिव की . उपासना कर के उससे वरदान प्राप्त किया, 'इस जन्म में न सही, अगले जन्म में शिखण्डी बन कर तुम भीष्म के मृत्यु का कारण बन कर उससे अपना बदला ले सकोगी' । शिवप्रसाद के बल से अगले जन्म में शिखण्डी का जन्म ले कर, अंत्रा ने भीष्म का वध कराया (म. उ. १७०१९३ ) ।
विचित्रवीर्य की मृत्यु -- सात वर्षों तक राज्यभोग के साथ-साथ अत्यधिक भोगविलास में निमन हुआ विचित्रवीर्य राजा राजयक्ष्मा से पीड़ित मृत्यु को प्राप्त हुआ । अपनी पत्नी अंबिका एवं अंबालिका से उसे कोई संतान न थी। अतएव सत्यवती ने भीष्म को आज्ञा दी कि, वह विचित्रवीर्य की पत्नियों से संभोग कर के नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करे। किंतु इसने अपनी सौतेली माता की आशा की अवहेलना कर, अपने ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा पर यह दृढ़ रहा । हार कर सत्यवती ने व्यास के द्वारा संतान उत्पन्न करा कर विचित्रवीर्य के राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में दो पुत्र रत्न प्राप्त किये।
आगे चल कर परशुराम ने गुरु के नाते भीष्म को बहुविध उपदेश दिया, एवं इस बात पर जोर दिया कि, यह अंगा को स्वीकार करे। किन्तु भीष्म अपनी बात पर अटल रहे। इससे क्रोधित होकर परशुराम ने भीष्म को
धृतराष्ट्र एवं पाण्डु का जन्म -- विचित्रवीर्थ के पुत्रों में से प्रथम पुत्र धृतराष्ट्र जन्मान्ध था, अतएव भीष्म ने विचित्रवीर्य
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