Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भीष्म
प्राचीन चरित्रकोश
भीष्म
भीष्म-(सो. कुरु.) सुविख्यात राजनीति एवं रणनीति हो कर ही मुझे मृत्यु प्राप्त करनी है । अतएव, मुझे युद्ध शास्त्रज्ञ जो कुरु राजा शन्तनु के द्वारा गंगा नदी के गर्भ से | में हरा कर, तुम विजय प्राप्त करो'। उत्पन्न हुआ था । अष्टवसुओं में से आठवें वसु के अंश से योग्यता-भीष्म सर्वशास्त्रवेत्ता, परम ज्ञानी एवं यह उत्पन्न हुआ था (म. आ. ९०.५०)। इसका मूल नाम तत्त्वज्ञान का महापंडित था। यह किसी की समस्या'देवव्रत' था। गंगा का पुत्र होने के कारण, इसे 'गांगेय' | ओं की तत्काल सुलझा देनेवाला, संशय का शमन 'जाह्नवीपुत्र, ''भागीरथीपुत्र' आदि नामांतर भी प्राप्त करनेवाला, तथा जिज्ञासुओं की शंकासमाधान करनेवाला थे। 'भीष्म' का शाब्दिक अर्थ 'भयंकर' है। इसने अपने सात्विक विचारधारा का उदार महापुरुष था। यह पिता शन्तनु के सुख के लिए आजन्म अविवाहित रहने | रणविद्या, राजनीति, अर्थशास्त्र, एवं अध्यात्मज्ञान के एवं राज्यत्याग करने की भयंकर प्रतिज्ञा की थी। इसीसे | साथ धर्म, नीति, एवं दर्शन का परमवेत्ता था। इसे 'भीष्म ' कहा गया।
गंगा ने वसिष्ठद्वारा, इसे समस्त वेदों में पारंगत ध्येयवादी व्यक्तित्त्व-एक अत्यधिक पराक्रमी एवं कराया था। बृहस्पति तथा शुक्राचार्य के द्वारा इसने ध्येयनिष्ठ राजर्षि के रूप में भीष्म का चरित्रचित्रण श्री
अस्त्रशस्त्र का ज्ञान प्राप्त किया था। परशुराम से अन्य व्यास के द्वारा महाभारत में किया गया है। परशुराम
आस्त्र शास्त्रो के साथ धनुर्वेद, राजधर्म तथा अर्थशास्त्र जामदग्न्य के समान युद्धविशारदों को युद्ध में परास्त करने
मी सीखा था (म. आ. ९४.३१-३६)। इसके । वाला भीष्म महाभारतकालीन सर्वश्रेष्ठ पराक्रमी क्षत्रिय | अतिरिक्त च्यवन भार्गव से साङ्गवेद, वसिष्ठ से महाबुद्धि... माना जा सकता है।
पितामहसुत से अध्यात्म, एवं मार्कण्डेय से यतिधर्म का अपने इस पराक्रम के बल पर कुरुकुल का संरक्षण | ज्ञान प्राप्त किया था। शुक्र तथा बृहापति का तो यह ' करना, एवं उस कुल की प्रतिष्ठा को बढाना, यही ध्येय साक्षात् शिष्य ही था। यह किसी के मारने से न मरने. . भीष्म के सामने आमरण रहा। कुरुवंशीय राजा शंतनु वाला 'इच्छामरणी' था, अर्थात जब यह चाहे तभी . से ले कर चित्रांगद, विचित्रवीर्य, पाण्डु, धृतराष्ट्र तथा | इसकी मृत्यु सम्भव थी (म. शां. ३८.५-१६, ४६. दुर्योधन तक कौरववंश की 'संरक्षक देवता के रूप में | १५-२३)। यह प्रयत्नशील रहा।
| जन्म-ब्रह्मा के शाप के कारण, गंगा नदी को पूरुअपने इस ध्येय की पूर्ति के लिये, अपनी तरुणाई वंशीय राजा शंतनु की पत्नी बनना पड़ा। वसिष्ठ के में सभी विलासादि से यह दूर रहा, एवं वृद्धावस्था में मोक्ष- शाप तथा इंद्र की आज्ञा से अष्टवसुओं ने गंगा के उदर में प्राप्ति के प्रति कभी उत्सुक न रहा। यह चाहता था | जन्म लिया। उनमें से सात पुत्रों को गंगा ने नदी में डबो केवल कुरुवंश का कल्याण एवं प्रतिष्ठा, जिसके लिए यह दिया । आठवाँ पुत्र 'द्यु' नामक वसु का अंश था, जिसको सदैव प्रयत्नशील रहा।
| डुबाते समय शंतनु ने गंगा से विरोध किया। यही पुत्र भीष्म का दैवदुर्विलास यही था कि, जिस कुरुवंश की | भीष्म है, जिसे साथ ले कर गंगा अन्तर्धान हो गयी । इस महत्ता के लिए यह आमरण तरसता रहा, उसी कुरुकुल आठवें पुत्र को वसुओं द्वारा यह शाप दिया गया था कि, का संपूर्ण विनाश इसके आँखों के सामने हुआ, एवं | यह निःसंतान ही होगा।' इसके सारे प्रयत्न विफल साबित हुए। चित्रांगद, विचित्र- अपने पुत्र भीष्म को गंगा को दे देने के उपरांत, वीर्य, पाण्डु, धृतराष्ट्र जैसे अल्पायु, कमजोर एवं शारिरीक
करीब छत्तीस वर्षों के उपरांत शंतनु मृगया खेलने गया । व्याधीउपाधियों से पीडित राजाओं के राज्य को अपने
हिरन के पीछे दौड़ता हुआ गंगा नदी के पास आ कर मजबूत कंधों पर सँभलनेवाला भीष्म, भारतीययुद्ध के काल
उसने देखा कि, यकायक उसका पानी कम हो गया। शंतनु में कुरुवंश को आपसी दुही से न बचाया सका।
को आश्चर्य की सीमा न रही। जब उन्होंने देखा कि, इसी कारण, भारतीय युद्ध के दसवें दिन, इसने | एक सुन्दर बालक ने अपने अचूक शरसंधान के द्वारा अत्यंत शोकाकुल हो कर अर्जुन से कहा, 'मुझे युद्ध में | गंगा का प्रवाह रोक रक्खा है। इस प्रकार बालक की परास्त कर मेरा पराजय करने की ताकद दुनिया में किसी | अस्त्रविद्या को देख कर, वह चकित हो गया (म. आ.. को भी नही है । किंतु मेरा दुर्भाग्य यही है कि, पराजित | ९४.२२-२५)।
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