Book Title: Bharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Author(s): Siddheshwar Shastri Chitrav
Publisher: Bharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
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भीष्म
प्राचीन चरित्रकोश
भीष्म
के उपरांत पाण्डु को राजगद्दी पर बैठाया। किन्तु पाण्डु की | एवं अभृत लोगों से कार्य चलाना, सैन्यसंचलन एवं शीघ्र ही मृत्यु हो गयी, अतएव राज्य की सारी व्यवस्था | आक्रमण कर्मों में प्रवीण हूँ। युद्धशास्त्र में मेरा ज्ञान धृतराष्ट्र ही देखने लगा। धृतराष्ट्र का व्यवहार अपने तथा देवगुरु बृहस्पति के समान है। मैं तुम्हे विश्वास दिलाना पाण्डु के पुत्रों में भिन्न था, जिसका परिणाम यह हुआ चाहता हूँ कि, मैं तुम्हारा सैनापत्ये का कार्य अच्छी तरह कि, कौरवों एवं पाण्डु के पुत्रो (पाण्डवों) के बीच एक | से निभाऊंगा, एवं एक महिने से पहले पांडवसेना को खाई पैदा हो गयी, जो कालांतर में चौडी ही होती गयी। ध्वस्त कर दूंगा' (म. उ. १९४)। अपने पिता शंतनु एवं उसके बाद विचित्रवीर्य के काल से कौरव एवं पांडव सेना का बलाबल-भारतीय युद्ध लेकर, उसकी मृत्यु तक भीष्म हस्तिनापुर राज्य के सर्वांगीण आरम्भ होने के पूर्व सेनापति भीष्म ने कौरव एवं पांडवों विकासपथ की ओर ले जाने के लिए सदैव प्रयत्नशील | के चतुरंगिणी सेना की विस्तृत जानकारी एवं बलाबल रहा । यह राज्य का सब से बड़ा कर्ताधर्ता सलाहकार | दुर्योधन को बताया था (म. उ. १६४)। महाभारत के एवं हर प्रकार की व्यवस्था का निर्देशक था।
'रथसंख्यान' पर्व (१६१-१६९) में प्राप्त इस जानकारी धृतराष्ट्र के व्यवहार में पक्षपात देखकर, द्रुपद राजा
से प्रतीत होता है कि, जिस प्रकार पदाति-दल, अश्वके पुरोहित ने. आकर भीष्म से शिकायत की, कि |
दल आदि में सैनिकों की विभिन्न श्रेणियाँ थी, उसी प्रकार धृतराष्ट्र अपने पुत्रों की ओर सजग, एवं पाण्डवों की ओर | कुशलता की मात्रा से रथसेना में भी अनेक पद थे। उपेक्षित व्यवहार करता है। भीम ने परोडित का योग्य भीष्म के द्वारा बतायी गयी श्रेणियाँ इस प्रकार थी:स्वागत कर पाण्डवों की ओर पूरी तरह से ध्यान देने | रथयूथपयूथप, महारथ, अतिरथ, अर्धरथ एवं रथोदार । का उन्हे वचन दिया (म. उ. २१)।
उनमें से रथयूथपयूथप सबसे बड़ा पद था, एवं रथीदार
सबसे छोटा पद था। भीष्म के द्वारा निर्देश किये गये - युधिष्ठिर द्वारा किये गये राजसूययज्ञ में पाण्डवों |
कौरवसेना के विभिन्न रथयोद्धा निम्न प्रकार थे:ने चतुर्दिशाओं में दिग्विजय प्राप्त कर यशःकीर्ति प्राप्त किया। पाण्डवों के इस दिग्विजय को देखकर
कौरवपक्ष भीष्म ने कर्ण से कहा, 'अर्जुन तुमसे अधिक पराक्रमी है । (१) अतिरथ-भीष्म, कृतवर्मन् भोज, बाह्रीक, शल्य । 'जिसका उदाहरण सम्मुख है। पाण्डवों के ये दिग्विजय का | (२) अर्धरथ--कर्ण । कारण अर्जुन ही है। भीष्म की इस कठोर वाणी को सुनकर (३) एकरथ--शकुनि, सुदक्षिण कांबोज, दंडधार । कर्ण तिलमिला गया, तथा कहने लगा कि, वह अर्जुन से (४) महारथ--अश्वत्थामन् , जो रथ योद्धाओं में कहीं अधिक श्रेष्ठ है। इतना कहकर वह दिग्विजय के | अतुल्य माना जाता था, और पौरव । लिए निकल पड़ा (म. व. परि १. क्र. २४)।
(५) रथ--अचल, वृषक गांधार | भारतीय युद्ध--पाण्डवों से बन्धत्व भाव रखने के लिए (६) रथयूथपयूथप--उग्रायुध, कृप शारद्वत, द्रोण, भीष्म ने अनेक बार दुर्योधन को समझाया, किन्तु उसका | भूरिश्रवस् । कुछ भी फायदा न हुआ। आखिर बात युद्ध तक आ गयी,
(७) रथवर--जलसंध मागध । एवं इसे दुर्योधन की मनमानी के बीच अपनी विचार- | (८) रथसत्तम--बृहद्वल कौसल्य, वृषसेन. दुर्योधनधारा की हत्या करनी पड़ी। इसे कौरवपक्ष के सेना- पुत्र लक्ष्मण, विंद एवं अनुविंद, शल्य, जयद्रथ, अलायुध । पतित्व का भार भी ग्रहण करना पड़ा । इस भार वहन (९) रथोदार--दुर्योधन, सुशर्मन् , एवं उसके चार करने के पूर्व उसने दुर्योधन से दो शर्ते रखी थी। पहली | भाई। शर्त यह थी कि, यह पाण्डवो से युद्ध कर उन्हें पराजित
पांडवपक्ष अवश्य करेगा, किन्तु युद्ध में किसी पाण्डव की हत्त्या अपने (१) अतिस्थ--धृष्टद्युम्न (सेनापति), कुंतिभोज हाथों न करेगा । दूसरी शर्त थी कि, जिस समय यह युद्ध पुरुजित्, वसुदान, श्रेणिमत् , सत्यजित् (द्रपदपुत्र)। करेगा उस समय कर्ण इसके साथ युद्ध न करेगा, उसे (२) अधरथ--क्षत्रधर्मन् (धृष्टद्युम्नपुत्र)। इसके पीछे रहना पडेगा (म. उ. १५३.२१-२४)। (३) महारथ-अज, अमितौजस् चेकितान, जयन्त,
कौरवसेना का अधिपत्य स्वीकारते समय भीष्म ने द्रुपद, द्रौपदेय, धृष्टकेतु (शिशुपालसुत), भोज, रोचमान, दुर्योधन से विश्वास दिलाया, 'मैं सेनाकर्म, व्यूहरचना, भृत विराट, शंख, श्वेत, सत्यजित्, सत्यधृति ।